क्या धर्म बदलने से जाति भी बदलेगी? सरकारी नौकरी में लाभ मिलेगा? जाने मद्रास हाईकोर्ट का फैसला
यदि आप अपना धर्म परिवर्तन कर लें तो क्या आपकी जाति भी बदल जाएगी? और यदि ऐसा हुआ तो क्या आप सरकारी नौरकी में मिलने वाले आरक्षण का लाभ ले सकते हैं? इस मामले पर गुरुवार (25 नवंबर) मद्रास हाई कोर्ट ने यह महत्वपूर्ण फैसला दिया।
दरअसल, एक दलित शख्स ने अपना धर्म बदलकर ईसाई धर्म अपना लिया था। उसकी शादी एक दलित समुदाय की लड़की से हुई थी, हालांकि उसने उसका धर्म परिवर्तित नहीं किया। इसके बाद शख्स ने दावा किया कि उसकी शादी अंतरजातीय यानी इंटर-कास्ट मेरिज है, ऐसे में उसे सरकारी नौकरियों में आरक्षण का बेनीफिट मिलना चाहिए।
कानून क्या कहता है
यदि कोई दलित धर्म बदलता है तो कानून के अनुसार उसे आरक्षण के लिहाज से पिछड़े समुदाय (बैकवर्ड कम्युनिटी यानी BC) के रूप में दर्जा दिया जाता है, वह अनुसूचित जाति के तौर पर नहीं देखा जाता है। अब जिस शख्स ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी वह अनुसूचित जाति में आने वाले आदि-द्रविड़ समुदाय से ताल्लुक रखता था। हालांकि बाद में उसने ईसाई धर्म अपना लिया था जिसके चलते उसे ‘बैकवर्ड क्लास’ का दर्जा मिल गया।
डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने रिजेक्ट की थी याचिका
शख्स की 2009 में एससी समुदाय में आने वाले अरुन्थातियार समुदाय की लड़की से शादी हुई थी। शादी के बाद उसने इंटर-कास्ट मैरिज सर्टिफिकेट की मांग के लिए सलेम डिस्ट्रिक्ट कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उसका दावा था कि उसकी शादी बैकवर्ड क्लास एवं एससी का यूनियन है।
ऐसे में बीसी-एससी इंटर-कास्ट मैरिज होने के चलते उसे सरकारी नौकरियों में उसे बैकवर्ड क्लास की तुलना में आरक्षण का अधिक लाभ मिलना चाहिए। इस चीज का बेनीफिट पाने के लिए उसने कोर्ट में याचिका दायर की थी। हालांकि 2015 में सलेम डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने उसकी यह याचिका खारिज कर दी थी।
हाई कोर्ट में दी चुनौती तो मिला ये जवाब
डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के याचिका खारिज करने के बाद शख्स ने मद्रास हाई कोर्ट में इस फैसले को चुनौती दी। यहाँ गुरुवार को जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम ने इस मामले पर अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि यदि कोई दलित धर्म परिवर्तित करता है तो उसे बैकवर्ड क्लास का मेंबर माना जाता है। यदि उसने किसी अन्य दलित से शादी कर की इस आधार पर वह इंटर-कास्ट मैरिज सर्टिफिकेट दावेदार नहीं हो सकता है।
धर्म बदलने से जाति नह बदलती
मद्रास हाई कोर्ट ने आगे कहा कि जब जब पति और पत्नी दोनों ही जन्म से एससी समुदाय से संबंध रखते हैं तो सिर्फ धर्म बदल लेने से उनकी जाति नहीं बदल जाती है। केवल इस कारण किसी दलित ने धर्म बदला है और इस आधार पर उसे ‘बीसी’ का सर्टिफिकेट मिला है तो, किसी दलित समुदाय के शख्स संग उसकी शादी को इंटर-कास्ट नहीं माना जा सकता है।
कोर्ट ने आगे कहा एससी, एसटी, बैकवर्ड क्लास के तौर पर जातियों का बंटवारा इंटर-कास्ट मैरिज सर्टिफिकेट का आधार नहीं हो सकता है। यदि हर धर्म बदलने वाला इंटर-कास्ट सर्टिफिकेट का दावा करने लगा तो ये आरक्षण के दुरुपयोग का रास्ता खोल देगा।