मुजफ्फरनगर में बोलें जयंत चौधरी, अभी बनें रहना पड़ेगा आंदोलनजीवी, सिर्फ़ खीर खाना बाकी।
यूपी विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) के नज़दीक आते ही सभी राजनीतिक दलों में गठजोड़ शुरू हो गया है। जी हां सभी राजनीतिक दल अपना नफ़ा-नुकसान देखते हुए ऐसे दलों के साथ गठजोड़ को आगे बढ़ रहें, ताकि सत्ता की चाबी उन्हें मिल सकें। इसी बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कृषि कानूनों को ख़त्म करने की बात कहकर एक मनोवैज्ञानिक बढ़त यूपी में चुनाव से पहले बना ली है।
इतना ही नहीं कृषि कानूनों की वापसी के बाद कई राजनीतिक पंडित और टीवी के एंकर यह भी अनुमान लगाना शुरू कर दिए कि जयंत चौधरी भाजपा के साथ आ सकते हैं लेकिन अब जयंत चौधरी के रूख़ से यह लग रहा है कि वे अभी भाजपा में नहीं आने वाले। ऐसे में आइए जानते हैं क्या है पूरी कहानी…
बता दें कि यूपी की सत्ता हासिल करने के लिए सियासी दल कोई भी कोर कसर और मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहते हैं और यही वजह है कि यूपी के बड़े राजनीतिक दलों में से एक सपा किसान नेता जयंत चौधरी (Jayant Chaudhary) को अपने पाले में करने की प्लानिंग कर रही है।
वहीं किसानों की पैरोकार आरएलडी भी सत्ता हासिल करने के लिए हर जोर आजमाइश कर रही है और यही वजह है कि जयंत चौधरी सपा के साथ जाने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। साथ ही उनका कहना है कि सपा संग बातचीत पूरी हो चुकी है और अब सिर्फ खीर खाना ही बाकी रह गया है।
वहीं बता दें कि केंद्र सरकार की ओर से बीते साल लाए गए कृषि कानूनों का विरोध पंजाब और हरियाणा के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा देखा गया है। इस इलाके में खेती किसानी की बात करने वाली पार्टी राष्ट्रीय लोकदल और उसके नेता जयंत चौधरी ने आंदोलन को लगातार समर्थन दिया।
वो अपनी सभाओं में भी लगातार किसानों की बात करते रहे। उनकी पार्टी को भी इस पूरे समय में काफी फायदा होता दिखा। कानूनों की वापसी के बाद कई लोग उनको नया मुद्दा खोज लेने की बात कह रहे हैं लेकिन जयंत चौधरी ने साफ़ कर दिया है कि किसानों के मुद्दे पर वो भाजपा को कोई राहत नहीं देने जा रहे हैं।
मुजफ्फरनगर में बोलें जयंत- आंदोलनजीवी तो बनना पड़ेगा…
बता दें कि रालोद प्रमुख जयंत चौधरी शनिवार को मुजफ्फरनगर के बघरा में पहुंचे थे। यहां एक बड़ी जनसभा को उन्होंने सम्बोधित किया और यहां पर जयंत चौधरी ने कृषि कानूनों पर बात करते हुए कहा, आप लोगों (किसानों) ने मजबूती से लड़ाई लड़ी तभी सरकार झुकी है और कानून वापस हुए हैं लेकिन हमें अभी संतुष्ट नहीं हो जाना है।
अभी दूसरे बहुत मुद्दे हैं, जिन पर लड़ना है। ऐसे में लगातार आंदोलन के लिए तैयार रहना होगा, ‘आंदोलनजीवी’ ही बनना होगा क्योंकि आंदोलन से ही मसले सुलझते हैं।
‘हमें जिन्ना का नहीं पता, गन्ने पर बात करो’…
इतना ही नहीं जयंत चौधरी ने इस दौरान कहा कि हाल के दिनों में जिन्ना की बातें खूब हो रही हैं ताकि ध्यान मुद्दों से हटाकर कहीं और लगा दिया जाएं, लेकिन ऐसा नहीं होने देना है। उन्होंने कहा, जिन्ना से हमें क्या करना है, हमें नहीं पता वो कौन थे और कैसे थे। हम तो गन्ने की बात करेंगे। हमें ये बताओ गन्ने पर कितने रुपए बढ़ाए हैं और खाद पर कितने बढ़ाए हैं। ऐसे में कहीं न कहीं एक बात स्पष्ट होती दिख रही है कि वह चाहें जयंत चौधरी हो या विपक्ष का कोई और नेता।
सभी किसानों के मुद्दे को चुनाव तक खींचना चाहते हैं। ऐसे में देखने वाली बात यह होगी कि भाजपा इसकी काट कैसे ढूंढती है। वैसे बता दें कि जयंत चौधरी ने मुजफ्फरनगर के बघरा से ये बातें कही, जो पूरी तरह से किसानों का ही इलाका है। जिसमें जाटों की संख्या भी अच्छी-खासी है।
उनकी रैली में पहुंचने वालों में भी जाट और मुसलमान ही सबसे ज्यादा थे। उन्होंने जिन्ना को लेकर ये संदेश देने की कोशिश भी की है कि आपस में हिन्दू-मुस्लिम का बंटवारा नहीं होने देना है।
वहीं कृषि बिलों की वापसी के बावजूद एमएसपी, गन्ने का भाव और समय से भुगतान, आवारा पशु, बिजली बिल की दरों जैसे मुद्दों पर सरकार को घेरने की मंशा भी उन्होंने साफ कर दी है। आख़िर में बता दें कि राष्ट्रीय लोकदल पश्चिम यूपी के दो दर्जन से ज्यादा जिलों में प्रभाव रखती है। ऐसे में अगर राष्ट्रीय लोकदल किसानों के मुद्दों पर चुनाव में जाती है तो जाहिर है भाजपा कानूनों की वापसी के बावजूद कई मसलों में घिर सकती है।