मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की मांग, रद्द हो CAA और बनें ईशनिंदा क़ानून,11 प्रस्ताव पास।
CAA वापसी की मांग, कॉमन सिविल कोड का विरोध सहित मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक में 11 प्रस्ताव पास
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के दो दिवसीय अधिवेशन के अंतिम दिन यानी रविवार को 11 प्रस्ताव पारित किए गए। जी हां इतना ही नहीं बोर्ड के सदस्यों ने हाल के दिनों में असामाजिक तत्वों के द्वारा इस्लाम पैगंबर की प्रतिष्ठा का खुलेआम अपमान किए जाने के मुद्दे पर सरकार की ओर से कोई कार्रवाई न किए जाने पर रोष भी जताया। इसके साथ सरकार से मांग की है कि ऐसे असामाजिक तत्वों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाए।
वहीं बता दें कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (Muslim Personal Law Board) ने समान नागरिक संहिता की चर्चाओं के बीच इस पर अपनी आपत्ति जताई है और बोर्ड के पदाधिकारियों और सदस्यों का कहना है कि मुस्लिम समाज इसे कतई स्वीकार नहीं करेगा।
कानपुर के मदरसा दारुल तालीम और सनअत (डीटीएस) जाजमऊ में दो दिवसीय अधिवेशन के अंतिम दिन रविवार को 11 प्रस्ताव पारित किए गए। इसमें वक्फ संपत्तियों और धर्मांतरण के मुद्दे अहम थे। वहीं बोर्ड ने जबरन धर्मांतरण और गैर मजहबी शादियां करने का विरोध भी किया है। बोर्ड ने कहा कि सरकार को ईशनिंदा कानून (Blasphemy Law) बनाना चाहिए।
बोर्ड के मीडिया समन्वयक डॉ कासिम रसूल इलियास ने अधिवेशन के बाद प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि संविधान में हर नागरिक को यह अधिकार दिया गया है कि वह अपने धर्म में आस्था रखता है और दूसरों को इसके बारे में बताता है। बहु-धार्मिक समाज में समान नागरिक संहिता उचित नहीं है और यह संविधान के मौलिक अधिकारों के विपरीत है। इतना ही नहीं बोर्ड ने सरकार से मांग की है कि मुस्लिमों पर समान नागरिक संहिता न लगाई जाए।
उन्होंने कहा कि बोर्ड जबरन धर्मांतरण कराने वालों के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि वक्फ कर रहे किसी भी व्यक्ति, संगठन या सरकार को वक्फ की मंशा के खिलाफ इसे बेचने या किसी उद्देश्य के लिए इस्तेमाल करने का अधिकार नहीं है और यह मुसलमानों के धार्मिक अधिकारों और शरीयत कानून का हस्तक्षेप है।
ईशनिंदा कानून बनाए सरकार…
वहीं बता दें कि बोर्ड ने कहा कि इस्लाम के पैगंबर पर टिप्पणी करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। इसके साथ ही बोर्ड ने अधिवेशन में अल्पसंख्यकों, दलितों और अन्य कमजोर वर्गों पर बढ़ते अत्याचार को रोकने के लिए सरकार से विशेष पहल की मांग की।
सम्मेलन में मुस्लिम समाज से शरीयत का पालन करने, सादगी से शादी करने और दहेज न मांगने की अपील की गई और कहा कि मध्यस्थता के माध्यम से आपसी विवादों को सुलझाएं और अगर किसी का समाधान नहीं होता है तो दारुल क़ज़ा जाएं।
अंतर-धार्मिक विवाह से बचें मुस्लिम…
इतना ही नहीं बोर्ड ने मुस्लिमों को सलाह दी है कि वह अंतर-धार्मिक विवाह से बचें, क्योंकि इससे समाज में विभाजन पैदा होता है और सांप्रदायिक सौहार्द प्रभावित होता है। धार्मिक नियम और किताबें आस्था से जुड़ी हैं, इसलिए सिर्फ धर्म को समझने वालों को ही इसकी व्याख्या करने का अधिकार है और सरकारों या अन्य संस्थाओं को धार्मिक पुस्तकों या धार्मिक शब्दावली की व्याख्या करने से बचना चाहिए।
इस्लाम में दबाव, लालच देकर धर्मांतरण की इजाजत नहीं…
इसके अलावा अधिवेशन में इस बात की भी चर्चा हुई कि किसी को लालच देकर या दबाव बनाकर धर्मांतरण कराने की इजाजत इस्लाम कतई नहीं देता। यही वजह है कि भारत में एक हजार साल हुकूमत करने के बाद भी मुसलमान आज अल्पसंख्यक हैं। आज तक किसी मुसलमान ने पुलिस से यह नहीं कहा कि दबाव बनाकर उसे मुस्लिम बनाया गया। उत्तर प्रदेश में धर्मांतरण के नाम पर मुसलमानों की गिरफ्तारियां करना अफ़सोसजनक है। यह संविधान में दिए गए धर्म के प्रचार की आजादी के अधिकार के खिलाफ है। सरकार को किसी के साथ अन्याय नहीं करना चाहिए।
सीएए, एनआरसी को वापस कराने के लिए आंदोलन की जरूरत…
वहीं आख़िर में बता दें कि इस अधिवेशन में दिल्ली से आए बोर्ड के सदस्य व वरिष्ठ वकील महमूद पराचा ने बोर्ड को पत्र भेजकर राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यकों के लिए कोरम बनाने और गंभीर मुद्दों पर फैसले लेने का प्रस्ताव दिया है। पत्रकारों से वार्ता करते हुए वकील महमूद पराचा ने कहा कि वर्तमान समय में किसान आंदोलन की तरह सीएए, एनआरसी कानून वापस लेने के लिए शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन चलाने की जरूरत है।