
पूर्ण शराबबंदी के बावजूद शराब पीने में काफ़ी आगे हैं बिहार के लोग। जानिए कैसे पहुँचती है शराब…
क्या है बिहार में आज के समय में पूर्ण शराबबंदी का सच? जानिए...
कहने के लिए सरकारी कागज़ों में बिहार में पूर्ण शराबबंदी है, लेकिन नकली शराब पीने से हो रही मौतों के आंकड़ों पर विराम नहीं लग रहा। जी हां वही अब इसी के मद्देनजर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बीते दिनों सात घंटे तक लगातार मैराथन समीक्षा बैठक की और शराबबंदी के विषय पर चर्चा किया।
गौरतलब हो कि इस दौरान उन्होंने कहा कि जिन्हें जो जिम्मेदारी दी गई है वो पूरी मुस्तैदी और मनोयोग के साथ काम करें। न राज्य में शराब आने देंगे और न किसी को शराब पीने देंगे, इसी मानसिकता के साथ सभी को काम करना है। हालांकि, ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर शराबबंदी राज्य में पूरी तरह से फेल क्यों साबित हो रही है?
बता दें कि सीएम नीतीश कुमार ने बिहार में 5 अप्रैल 2016 से शराब की बिक्री और खपत पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की घोषणा की थी। प्रतिबंध की अवज्ञा पर सख्त सजा के प्रावधान भी किए गए थे। बैन लगने के बाद से ही राज्य पुलिस ने राज्य आबकारी और शराबबंदी विंग के अधिकारियों के साथ मिलकर शराब की आपूर्ति, बिक्री और तस्करी की जांच के लिए स्थानों पर छापेमारी जारी रखी।
शराबबंदी के कारण शराबबंदी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में रिकॉर्ड संख्या में गिरफ़्तारी भी की गईं। इतना ही नहीं कैबिनेट ने मद्य निषेध के लिए ‘आईजी’ का नया पद तक सृजित किया, लेकिन आजतक की जो स्थिति सूबे की नजऱ आती है। वह ढाक के तीन पात वाली ही साबित होती है।
क्या है बिहार में आज के समय में पूर्ण शराबबंदी का सच? जानिए…
बता दें कि जब बिहार में शराबबंदी लागू हुई थी। तब तो सभी में डर बैठ गया था। तमाम लोगों ने शराब से तौबा कर लिया, परंतु समय के साथ चीजें बदलने लगीं और लोग शराब पाने के लिए नए-नए विकल्प तलाशने लगे, जिससे शराब बेचने वालों ने भी नए तरीके ढूंढ निकाले। बिहार में झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और नेपाल से शराब की बड़ी खेप तस्करी कर लाई जाती है। आलम ये है कि पुलिस और मद्य निषेध विभाग की टीम औसतन 1341 लीटर शराब यहां हर घंटे जब्त करती है।
वहीं एक हैरान कर देने वाला आंकड़ा यह भी है कि बिहार में 2016 से पूर्ण शराबबंदी लागू होने के बावजूद यहां महाराष्ट्र की तुलना में शराब की खपत सबसे अधिक पाई गई। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) 2020 के मुताबिक, शराबबंदी के बावजूद बिहार के पुरुष शराब पीने में आगे हैं।
शराब सेवन को लेकर जो आँकड़े सामने आए हैं, उसमें पाया गया है कि बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में 14.05 फ़ीसदी लोग शराब का सेवन करते हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में ये आंकड़ा 15.8 फ़ीसदी है। वहीं, पूरे बिहार का आंकड़ा 15.5 फ़ीसदी है, जबकि महाराष्ट्र के शहरी क्षेत्र में 13 प्रतिशत आबादी ही शराब का सेवन करती है।
बिहार में कब और कहां हुई जहरीली शराब से कितनी मौत?…
बता दें कि इस वर्ष जनवरी से लेकर 31 अक्टूबर तक शराब पीने से नवादा, पश्चिमी चंपारण, मुजफ्फरपुर, सीवान और रोहतास जिलों के करीब 72 लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं फरवरी, 2020 में गिरिडीह जिला में नकली और जहरीली शराब पीने से 4 दिन के भीतर 15 लोगों की मौत हो गयी थी। यह आंकड़ा काफ़ी लंबा-चौड़ा है, ऐसे में आप इन हालिया घटनाओं से ही अंदाजा लगा सकते कि सुशासन बाबू के राज्य में कैसे बेधड़क शराब परोसी जा रही और जिम्मेदार को कानों-कान ख़बर नहीं होती।
ऐसे में कुल-मिलाकर देखें तो शराबबंदी को लेकर सख्ती के बावजूद प्रदेश में नकली शराब से जुड़े नेटवर्क को सरकार कमजोर नहीं कर पाई है। यह एक स्याह पक्ष है और इसका मुख्य कारण प्रदेश में इन माफियाओं को कुछ बड़े दिग्गजों से मिल रहा राजनीतिक संरक्षण भी है। ऐसे में जब तक भ्रष्ट नेता और अफसरों की मिलीभगत का भंडा नहीं फूटेगा। तब तक बिहार में ज़हरीली शराब मौत बनकर अपना तांडव करती रहेगी, यह बिहार सरकार जितनी जल्दी समझ लें। उतना बेहतर है।