जाने कैसे अंज़ाम दिया था पूरा वाक़िया..
कांग्रेस के शासन काल में सांप्रदायिक दंगे की आड़ में प्रशासन, पुलिस और कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने जिस तरह मुसलमानों व सिखों का नरसंहार किया था, 2002 का गुजरात दंगा उससे ठीक अलग था। गुजरात के दंगे में मुसलमानों नरसंहार नहीं हुआ था, बल्कि हिंदू-मुसलमान दोनों मारे गए थे। गोधरा में कांग्रेसी नेताओं और कट्टरपंथी मुसलमानों द्वारा साबरमती एक्सप्रेस में 59 कार सेवकों को जिंदा जलाने के बाद अहमदाबाद और गुजरात के अन्य हिस्से में जो दंगा और संप्रदायिक हिंसा भड़की थी, उसमें हिंदू-मुसलमान दोनों जले थे।
नरेंद्र मोदी को किसी राजनेता या जनप्रतिनिधि के रूप में नहीं, बल्कि एक दुश्मन के रूप में लेने वाली इस कांग्रेस चालित यूपीए सरकार ने 11 मई 2005 में संसद के अंदर अपने लिखित जवाब में बताया था कि 2002 के दंगे में 1044 लोगों की मौत हुई थी, जिसमें से 790 मुसलमान और 254 हिंदू थे। अब सवाल उठता है कि कांग्रेस, तीस्ता सितलवाड़, संजीव भट्ट और कांग्रेस व व विदेशी फंड पर पलने वाली मीडिया की बात यदि सच है तो फिर 254 हिंदुओं की हत्या किसने की थी?
इसी यूपीए वन सरकार में लागू प्रसाद यादव जब रेलमंत्री थे तो उन्होंने गोधरा जांच के लिए एक बनर्जी कमीशन का गठन कर दिया था और मुसलानों को खुश करने के लिए आनन-फानन में यह रिपोर्ट भी जारी करवा दिया था कि साबरमती एक्सप्रेस में कार सेवकों ने खुद ही मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा लिया और जल मरे। बाद में गुजरात उच्च न्यायालय ने बनर्जी समिति के गठन को ही अवैध करार दिया। तो क्या दंगे में मरे 254 हिंदुओं के लिए भी छदम धर्मनिरपेक्ष लोग उस घोर सांप्रदायिक लालू का तर्क ही इस्तेमाल कर रहे हैं? यानी 254 हिंदुओं ने क्या खुद को ही जला कर मार डाला था?
दंगे के दौरान की मीडिया रिपोर्ट उस सच्चाई को बयां कर देती है, जिसे छुपाने में आज वही मीडिया हाउस लगे हुए हैं। टाइम्स नाउ ने 2009 में न्यूज एजेंसी को कोट करते हुए दिखाया था कि ”2002 के दंगों में 40 हजार हिंदु शरणार्थी हो गए थे।” यह खबरें दर्शाती हैं कि गुजरात में गोधरा के बाद जो कुछ भी हुआ उसमें दोनों समुदाय को क्षति पहुंची न कि केवल मुसलमानों को- जैसा कि कांग्रेस, मीडिया और अरब फंडेड एनजीओ प्रचारित करते हैं।