पुजारी को हुआ मगरमच्छों से प्यार, उसकी एक आवाज पर आ जाते हैं तालाब से बाहर
पालतू जानवरों से प्रेम और दोस्ती की कई मिसाल आप ने देखी और सुनी होगी। लेकिन क्या यही दोस्ती और प्रेम जंगली जानवरों के साथ भी बरकरार रखा जा सकता है? जंगली जानवर बहुत खतरनाक होते हैं। वह कब कहां से हमला बोल दे कुछ कहा नहीं जा सकता है। इसलिए अधिकतर लोग जंगली जानवरों से दूर रहना ही पसंद करते हैं। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे पुजारी से मिलाने जा रहे हैं जिसने अपना पूरा जीवन मगरमच्छों की सेवा करने में समर्पित कर दिया।
पुजारी को हुआ मगरमच्छों से प्यार
छत्तीसगढ़ के कोटमी सोनार में सीतारम दास (Sitram Das) नाम के एक पुजारी रहते हैं। उन्हें यहां के एक तालाब में रहने वाले मगरमच्छों से प्यार हो गया है। वह इन मगरमच्छों को अपने बच्चे मानते हैं। मगरमच्छ आकार में बड़े और खतरनाक होते हैं। खासकर उनके नुकीले जबड़ों को देखकर ही डर लगता है। इस तरह के जानवरों को लोग चिड़ियाघर में दूर से देखना पसंद करते हैं। लेकिन दास को इनसे इस कदर मोहब्बत हो गई है कि ये दिन रात उन्हीं की सेवा में लगे रहते हैं।
एक आवाज पर आ जाते हैं तालाब से बाहर
तालाब के मगरमच्छ सीतारम दास की आवाज और इशारे अच्छे से समझते हैं। दास जब भी मगरमच्छों को आवाज लगाते हैं तो वह तालाब से बाहर आकर बैठ जाते हैं। दास उन्हें कई बार खाना भी देते हैं और उनकी जरूरत का हर ख्याल भी रखते हैं।
मगरमच्छ ने उखाड़ दिया था हाथ
15 साल पहले दास मगरमच्छ के हमले का शिकार हो गए थे। इस हमले में उनका एक हाथ उखड़ गया था। हालांकि इतना सब होने के बावजूद दास का मगरमच्छों से प्रेम कम नहीं हुआ। उन्हें इनसे नफरत नहीं बल्कि प्यार है। इस घटना के बारे में वे कहते हैं कि “मगरमच्छ मुझे नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता था। उसने मुझे पकड़ा क्योंकि मैं उसके रास्ते में आ गया था। इसके बाद उसने मुझे जाने दिया।”
Working along with the forest department and local administration, Babaji has nurtured a culture of coexistence with the mugger crocodile population in Kotmi sonar.
There is now a reserve for crocodiles and the area is a case-study on how to avoid conflict! pic.twitter.com/BQuI0wF7Xv— Neha Sinha (@nehaa_sinha) October 25, 2021
पहले करते थे गायों की सेवा
दास मूल रूप से गोरखपुर के रहने वाले हैं। वे यहां गांव में 50 साल पहले आए थे। शुरुआत में वे गायों की देखभाल किया करते थे। लेकिन फिर उनका रुझान तालाब के मगरमच्छों की ओर बढ़ने लगा। उन्होंने वन्य विभाग और स्थानीय प्रशासन की मदद से मगरमच्छों के लिए बहुत काम किया। उनकी इच्छा है कि जब वे मर जाए तो उनके शरीर को इसी तालाब में फेंक दिया जाए।
A very special moment. That’s Babaji Sitaram Das with his copy of Wild and Wilful in Kotmi Sonar, Chhattisgarh. He is a protagonist in the book:having lost his forearm to a mugger crocodile hasn’t deterred him from caring for them!
Priceless insights on living life with meaning. pic.twitter.com/2imnyo5jz9— Neha Sinha (@nehaa_sinha) October 25, 2021
सीताराम दास के जीवन पर एक बुक भी लिखी गई है जिसका नाम Wild and Wilful है।