अध्यात्म

देवताओं को प्रिय है तांबा इसलिए सबसे ज्यादा पूजा में वही इस्तेमाल होता है, जानें महत्व

भगवान के पूजन में कई प्रकार के बर्तनों का इस्तेमाल किया जाता है. पूजा करते समय बर्तन किस धातु का है इसका भी काफी ध्यान रखना चाहिए. पूजा में सोना, चांदी, पीतल और तांबे के बर्तनों का उपयोग शुभ माना जाता है. धर्मग्रंथों की माने तो सोने को भगवान की पूजा में सबसे ऊँचा स्थान दिया गया है. अन्य धातुओं के बारे में भी कुछ खास बातें धर्म शास्त्रों में बताई गई है.

देवताओं को तांबा होता है अत्यन्त प्रिय

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तत्ताम्रभाजने मह्म दीयते यत्सुपुष्कलम्।
अतुला तेन मे प्रीतिर्भूमे जानीहि सुव्रते।।
माँगल्यम् च पवित्रं च ताम्रनतेन् प्रियं मम।
एवं ताम्रं समुतपन्नमिति मे रोचते हि तत्।
दीक्षितैर्वै पद्यार्ध्यादौ च दीयते।

अर्थात यह की तांबा मंगलस्वरूप ,पवित्र एवं भगवान को बहुत प्रिय है.

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तांबे के पात्र में रखकर जो वस्तु भगवान को अर्पण की जाती है, उससे भगवान को बड़ी प्रसन्नता होती है. इस धातु के पात्र से सूर्य को जल अर्पित करने से लाभ होता है. इस धातु से हर प्रकार का बैक्टीरिया नष्ट हो जाता है. इसी वजह से पूजा के बाद तांबे के पात्र मे रखे जल को घर में छिड़कने के लिए कहा जाता है. सोना-चांदी की तुलना में तांबा सस्ता होने के साथ ही मंगल की धातु मानी जाती है.

तांबे में रखे जल को पीने से कई तरह के रोग दूर होते हैं और रक्त प्रवाह बढ़ता है. इंसान स्वस्थ होता है.

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तांबे के पात्र में जंग नही, काठ लगता है, मतलब यह कि ऊपर की सतह पानी और हवा के साथ रासायनिक क्रिया कर के एक सतह बनाते हैं लेकिन तांबे के अंदर प्रवेश नही कर पाते. शास्त्रों की माने तो इसलिए पूजा पाठ के बर्तन शुद्ध ही रहते हैं, क्योकि मृतिका से घिसते वक्त ऊपर की रासायनिक परत आसानी से हट जाती है और अंदर का शुद्ध ताम्बा सामग्री के संपर्क में आता है.

चांदी के बर्तन देवकार्य के लिए शुभ नही है

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अभिषेक पूजन के लिए चांदी के पात्रों को सबसे उत्तम माना गया है. तांबे के पात्र से दुग्धाभिषेक वर्जित है. कुछ विद्वानों की माने तो चांदी एक ऐसी वस्तु है जो चंद्र देव का प्रतिनिधित्व करती है. भगवान चंद्र देव शीतलता के कारक माने जाते हैं. चांदी की खरीदारी करने वाले प्रत्येक मनुष्य को भगवान चंद्र देव का आशीर्वाद स्वरूप शीतलता, सुख-शांति प्राप्त होती है. रात्रि के समय में चंद्र देव शीतलता प्रदान करते हैं. लेकिन फिर भी देवकार्य में इसे अशुभ माना जाता है.

शिवनेत्रोद्ववं यस्मात् तस्मात् पितृवल्लभम्।
अमंगलं तद् यत्नेन देवकार्येषु वर्जयेत्।।

अर्थात- चांदी पितरों को तो परमप्रिय है, पर देवकार्य में इसे अशुभ माना जाता है. इसलिए देवकार्य में चांदी को दूर रखना चाहिए.

लोहे के पात्र का महत्व शनिपूजा में
शनिदेव की पूजा में कभी भी तांबे के बर्तनों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए क्योंकि तांबा सूर्य की धातु है और ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि-सूर्य एक-दूसरे के शत्रु हैं. शनिदेव की पूजा में हमेशा लोहे के बर्तनों का उपयोग करना ज्यादा लाभ देगा.

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इन पात्रों को पूजा से करे दूर

पूजा और धार्मिक क्रियाओं में स्टील, लोहा और एल्युमीनियम को अपवित्र धातु माना गया है. इन धातुओं से देवताओं की मूर्तियां भी नहीं बनाई जाती हैं. लोहा में हवा और पानी के साथ क्रिया कर जंग लग जाता हैं. एल्युमीनियम धातु से कालिख निकलती है. पूजन में कई बार मूर्तियों को हाथों से स्नान करवाया जाता है. इसलिए इन धातुओं को पूजा स्थल से ही दूर रखे.

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