अब बिना परमिट के सैर करें पूरे लद्दाख की, भारतीय सेना ने इनर लाइन परमिट किया ख़त्म
अब बिना रोक-टोक घूम सकते हैं लद्दाख़, सेना के सहयोग से मोदी सरकार ने उठाया यह क़दम...
लद्दाख घूमने का शौक रखने वालों के लिए एक ख़ुशख़बरी है। जी हां लद्दाख में सीमा के पास पर्यटकों को जाने के लिए सेना ने कई इलाकों में इनरलाइन परमिट की अनिवार्यता को अब खत्म कर दिया है। बता दें कि इससे लद्दाख में पर्यटन विकास को एक नई दिशा मिलेगी। गौरतलब हो कि अब देश भर के पर्यटक उन इलाकों में भी सैर कर सकेंगे, जिनसे अब तक वह अछूते रहे हैं। हालांकि, विदेशी पर्यटकों को बिना अनुमति के इन इलाकों में जाने की इजाजत नहीं होगी।
बता दें कि केंद्र सरकार के सहयोग से लद्दाख में सीमा से सटे इलाकों में पर्यटन को बढ़ावा देने की मुहिम के बीच भारतीय सेना ने सरहद से लगते कई इलाकों में पर्यटकों के लिए इनरलाइन परमिट की अनिवार्यता को खत्म कर दिया है। पर्यटकों को अब सियाचिन ग्लेशियर के आधार शिविर तक आने की इजाजत दे दी गई है।
गौरतलब हो कि बीते दिनों दिव्यांगों के एक दल ने सियाचिन की कुमार पोस्ट तक ट्रैकिंग की थी। अब अन्य प्रदेशों के पर्यटकों के साथ प्रदेश के निवासी भी बिना किसी रोकथाम के वास्तविक नियंत्रण रेखा से सटे मान मराक से त्सागल होते हुए चुशुल तक जा सकेंगे। वह लेह के हानले व कारगिल के मुशकोह इलाके में भी घूमने जा सकेंगे। इसके पहले भारतीय सेना बिना इनरलाइन परमिट के इन इलाकों में नहीं जाने देती थी।
लद्दाख पर्यटन विभाग ने जारी किया आदेश…
बता दें कि सेना की अनुमति मिलने के बाद लद्दाख पर्यटन विभाग के सचिव महबूबा खान ने पर्यटकों को बिना परमिट इन इलाकों में जाने का आदेश जारी कर दिया है। इन इलाकों में नो त्सो मोरीरी, दाह, हनु, मान, मराक, न्योमा मुख्य हैं।
पर्यटकों के लिए शुरू हुई दो बसें…
वहीं बता दें कि लद्दाख में पर्यटकों के लिए दो बसें शुरू की गई हैं। यह क्षेत्र को कार्बन मुक्त बनाने की दिशा में भी एक कदम है। एक बस लेह से हेमिस जाएगी। दूसरी बस पर्यटकों को लेकर संगम तक जाएगी। ये दोनों बसें प्रतिदिन लेह के पर्यटक सुविधा केंद्र से सुबह 9 बजे रवाना होंगे। दोनों बसों में एक एक टूरिस्ट गाईड भी होगा। इस बस में सफर करने के लिए प्रति व्यक्ति 500 रुपये का टिकट है।
जानिए क्या होता है इनर लाइन परमिट?…
बता दें कि इनर लाइन परमिट एक आधिकारिक यात्रा दस्तावेज (Official Travel Document) होता है। इस परमिट को संबंधित राज्य सरकार जारी करती है। इस तरह का परमिट भारतीय नागरिकों को देश के अंदर के किसी संरक्षित क्षेत्र में एक तय समय के लिए यात्रा की इजाजत देता है। इस परमिट के एवज में कुछ शुल्क भी सरकारों द्वारा लिया जाता है। लद्दाख के अलावा इनर लाइन परमिट की व्यवस्थाएं पूर्वोत्तर के भी कुछ राज्यों में हैं।
1873 में बना था ब्रिटिश राज का यह नियम…
इनर लाइन परमिट की व्यवस्था को 1873 में ब्रिटिश भारत के कालखंड में लागू किया गया था। कंपनी शासन में इसे तत्कालीन सरकार ने अपने व्यापारिक हितों को संरक्षित करने के लिए बनाया था, जिससे कि प्रतिबंधित इलाकों में भारत के लोगों को बिजनेस करने से रोका जा सके। वहीं इस सिस्टम के तहत भारत और प्रतिबंधित क्षेत्रों के बीच एक काल्पनिक विभाग रेखा सी बनी हुई थी, जिससे कि परमिट के बिना किसी को भी इन संरक्षित इलाकों में जाने से रोका जा सके।