दुनिया पर छाया ऊर्जा संकट: चीन में नहीं बिजली, UK में खत्म हो रहा तेल, जाने भारत का हाल
चीन और यूके जैसे दुनिया के दो बड़े देश इस समय भारी ऊर्जा संकट से गुजर रहे हैं। जहां चीन में कोयले का उत्पादन कम होने से बिजली संकट हो गया है तो वहीं ब्रिटेन को पेट्रोल-डीजल की अप्रत्याशित किल्लत का सामना करना पड़ रहा है। इसकी मुख्य वजह कोरोना महामारी बताई जा रही है, लेकिन ये सिर्फ एक अकेली वजह नहीं है। एक्सपर्ट की माने तो जल्द ही दुनिया के बाकी देशों को भी इस तरह की समस्या से जूझना पड़ सकता है। इस लिस्ट में अमेरिका का नाम भी शामिल है, वहीं भारत में इसका क्या असर होगा ये भी हम आपको बताएंगे।
उत्तरी चीन में इस समय लाखों लोग भारी बिजली कटौती झेल रहे हैं। यहां फैक्ट्रियां बंद हो गई है। जब पावर सप्लाई बंद हुई तो फैक्ट्रियों में लगे वेंटिलेटर जैसे उपकरण भी बंद हो गए। इससे मजदूरों के शरीर में कार्बन मोनोऑक्साइड घुस गया और उन्हें हॉस्पिटल जाना पड़ गया।
वहीं यूनाइटेड किंग्डम की बात करें तो वह भारी तेल संकट से जूझ रहा है। पेट्रोल पंप ‘सॉरी आउट ऑफ यूज’ के बोर्ड लटकाने को मजबूर हैं। नैचुलर गैस के भाव आसमान छू रहे हैं। संपूर्ण यूरोप में ही तेल की कीमतों ने रिकॉर्ड तोड़ इजाफा किया है। अमेरिका में हर ठंड में ऊर्जा खपत बढ़ जाति है। ऐसे में अभी से गैस और कोयला उत्पादकों के पास डिमांड बहुत बढ़ गई है। अब सवाल यह उठता है कि इस वैश्विक ऊर्जा संकट का कारण क्या है और ये कितना बुरा साबित हो सकता है?
इस संकट की पहली वजह कोरोना महामारी बताई जा रही है। इस दौर में ऊर्जा की मांग पहले अचानक कम हुई और फिर एकदम बढ़ गई। इसने सप्लाई चेन का संतुलन गड़बड़ा दिया। वहीं एक अन्य कारण भी है। पिछले 5-10 सालों में जलवायु परिवर्तन हुए हो-हल्ला और वैश्विक जोर के चलते निवेशकों ने नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों पर अधिक निवेश कर दिया। इसका नतीजा ये हुआ कि परंपरागत ईंधन पर निवेश में कमी रह गई।
बता दें कि दुनिया अभी भी तेल, कोयला और गैस जैसे जीवाश्म ईंधन या परंपरागत ऊर्जा पर ज्यादा निर्भर है। गोल्डमैन सैच ग्रुप के कमोडिटीज रिसर्च के ग्लोबल हेड जेफ करी इसे पुरानी अर्थव्यवस्था का बदला कहते हैं।
तेल की कीमतें फिलहाल लगभग 80 डॉलर प्रति बैरल के आसपास चल रही है जो कि तीन साल के उच्चतम स्तर पर है। कोयला, गैस और पानी की किल्लत ने यूरोप को परेशान कर रखा है जिससे यहां ऊर्जा के दाम काफी बढ़ गए हैं। वहीं चीन के पास तत्काल उपयोग लायक पर्याप्त कोयला नहीं है जिसने परंपरागत ईंधनों की कीमते बढ़ा दी है। चीन पूरे विश्व में सबसे अधिक कोयले का उपयोग करता है। वह दुनिया का सबसे बड़ा कोयला उत्पादक भी है, लेकिन फिर भी सप्लाई की कमी के कारण वह बिजली संकट का सामना कर रहा है।
चीन के ऊर्जा संकट के पीछे और भी कई वजहें हैं। जैसे यहां बिजली की कीमतें नियंत्रित हैं। ऐसे में कोयले की कीमतें बहुत बढ़ गई जिसकी लागत कंपनियां उपभोक्ताओं या फैक्ट्रियों से नहीं वसूल सकी। इससे कई कंपनियों को घाटा हुआ इसलिए वह डिमांड पूरी करने हेतु कोयले का उत्पादन बढ़ाने में हिचक रही है। चीन के नेशनल डेवलपमंट एंड रिफॉर्म कमीशन ने कंपनियों को डिमांड और सप्लाई के बेस पर कीमतों में इजाफा करने की अनुमति दी तो है, लेकिन ये स्पष्ट नहीं है कि कितनी कीमतें बढ़ सकती है। चीन सरकार भी जनता और फैक्ट्रियों से बिजली के अधिक दाम वसूलने पर विचार कर रही है।
यूके में अभी अनलेडेड पेट्रोल करीब 1.83 डॉलर प्रति लीटर तो डीजल 1.86 डॉलर के आसपास है। ऊर्जा संकट के डर से लोग घबराहट में अधिक पेट्रोल-डीजल खरीद रहे हैं, इससे 90 फीसदी पेट्रोल पंप की टंकी खाली हो गई है। वहीं ब्रेक्जिट इस स्थिति को और गंभीर बना रहा है। इससे लॉरी ड्राइवरों की कमी है और पेट्रोल पंपों पर तेलों की सप्लाई करने में समस्या आ रही है।
वैसे तो ब्रिटिश पीएम बोरिस जॉनसन ने 10,000 विदेशी लॉरी ड्राइवरों को तात्कालिक वीजा प्रदान करने का कहा है लेकिन ये शायद ही पर्याप्त होगा। वहीं ब्रिटिश सरकार ने सेना को ट्रक चलाने के लिए रेडी रहने को भी कहा है।
भारत व दुनिया के बाकी हिस्सों का क्या होगा ?
एक्सपर्ट की माने तो सर्दियों में अमेरिका भी ये संकट फेस कर सकता है। यहां पहले ही महामारी के दौरान सबकुछ ठप पड़े रहने के कारण और मजदूरों की कमी के चलते ऑयल सेक्टर दबाव में है। कंपनियों को कुशल कामगार नहीं मिल रहे हैं, यदि मिलते भी हैं तो वह उन्हें उनकी मांग के अनुसार पैसा देने की हालत में नहीं है। इसका मतलब ये हुआ कि अमेरिका अपना तत्काल उत्पादन नहीं बढ़ा सकता और ना ही दुनिया के दूसरे देशों की ऊर्जा की पूर्ति कर सकता है।
ऐसे में दुनिया के सभी देशों को महंगी ऊर्जा के लिए अभी से रेडी रहना होगा। वैसे भारत में हम सरकार से ये उम्मीद रख सकते हैं कि वह आम जनता को राहत देने की हर संभव कोशिश करे। ग्रीन एनर्जी की बात करें तो ये भविष्य पर निर्भर करता है कि इस संकट से निपटने के लिए इस दिशा में कितना तेजी से काम होता है।