कांग्रेस है बड़ा जहाज़, अगर यह नहीं बची तो डूबेगी सबकी कश्तियां। कन्हैया कुमार ने शुरू किया छोटे दलों को डराना
तमाम ऊहापोह के बीच बीते दिन कल यानी 28 सितंबर को कन्हैया कुमार कांग्रेस के हो गए हैं। जी हां आज के दौर में वैचारिक राजनीति का पतन भले हो रहा है, लेकिन कोई भी पाला बदलने वाला हो वह देश की बात पहले करता है और इसको बोलना जेएनयू वाले कन्हैया कुमार भी नहीं भूलें। बता दें कि कन्हैया कुमार ने कहा कि जो लोग कह रहे हैं विपक्ष कमजोर हो गया है। यह सिर्फ विपक्ष की चिंता की बात नहीं है।
यह मैं नहीं कह रहा हूं- कोई शास्त्र, कोई किताब उठाकर देख लीजिए, जब विपक्ष कमजोर हो जाता है तो सत्ता तानाशाही रुख अख्तियार कर लेती है। मैं यह बात सीधे तौर पर कर रहा हूं कि लोकसभा की 200 ऐसी सीटें हैं जहां बीजेपी के सामने कांग्रेस के अलावा कोई विकल्प नहीं है। कांग्रेस पार्टी एक बड़ा जहाज है, अगर कांग्रेस पार्टी बचेगी तो लाखों-करोड़ों युवाओं की आकांक्षाएं बचेंगी, इसी आशा और उम्मीद के साथ इस पार्टी से जुड़ा हूं।
इतना ही नहीं कन्हैया कुमार ने कहा कि कई बार यह सवाल खड़े हुए कि आखिर अगले लोकसभा चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी के सामने कौन होगा विपक्ष का चेहरा। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की जीत के बाद वो विपक्ष को एकजुट करने के लिए आगे आईं। दिल्ली का दौरा किया और इस कार्य में शरद पवार की ओर से भी कोशिश हुई। ममता बनर्जी की सोनिया गांधी के अलावा कई विपक्षी दलों के नेताओं से दिल्ली में मुलाकात हुई। हालांकि इस दिशा में कोई बात आगे बढ़ नहीं सकी और सवाल उसी जगह कि कौन विपक्ष की अगुवाई करेगा।
ऐसे में अब कहीं न कहीं कन्हैया कुमार की ओर से यह बताने की कोशिश की गई कि कांग्रेस ही है जो बीजेपी का मुकाबला करेगी। कन्हैया कुमार की ओर से यह कहा गया कि कांग्रेस को सबको मिलकर मजबूत करना होगा। अगर सबसे बड़ी पार्टी को नहीं बचाया गया, अगर बड़े जहाज को नहीं बचाया गया तो छोटी-छोटी कश्तियां भी नहीं बचेंगी। कन्हैया कुमार की ओर से जो यह बात कही गई है वह शायद ही किसी क्षेत्रीय दल को पसंद आए। क्योंकि कई बार इन्हीं दलों की ओर से यह सवाल उठाया गया है कि कांग्रेस के भीतर नेतृत्व को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है।
वहीं कन्हैया कुमार ने भले ही बीते दिन कांग्रेस पार्टी जॉइन की है लेकिन कांग्रेस के भीतर ही काफी समय से अंदरखाने विवाद की स्थिति बनी हुई है। जी 23 नेताओं का गुट लगातार पार्टी नीतियों को लेकर सवाल खड़े कर रहा है। आज जो सवाल कन्हैया की ओर से खड़े किए गए हैं उस पर दूसरे क्षेत्रीय दलों की ओर से भी सवाल खड़े किए जाएंगे। इन सबके बीच जो बड़ा सवाल है वह यह रहेगा कि विपक्ष की अगुवाई तो बाद में पहले कांग्रेस पार्टी की अगुवाई कौन करेगा और इसके लिए इंतज़ार की ही स्थिति बनती है तो आगे आगे देखते जाइए कि होता है क्या?