जानिये श्राद्ध में कौए का महत्व, इन के बिना पितरों को नहीं मिलता है आहार, पढ़िए पूरी कहानी
श्राद्ध में कौए को भोजन देते वक्त इन बातों का ध्यान जरूर रखें
गणेश महोत्सव खत्म होते ही श्राद्ध की शुरुआत हो चुकी है। इन दिनों हर कोई अपने पितृ और पूर्वजों को याद कर उनका आशीर्वाद प्राप्त कर रहा है। हिंदू धर्म में मान्यता है कि श्राद्ध मैं पितृ धरती पर आकर भोजन और जल ग्रहण करते हैं। मतलब साल भर में केवल एक ही मौका होता है जब हम अपने पितृों की सेवा कर सकते हैं।
माना जाता है कि कौए में पितरों की आत्मा वास करती है। इसीलिए श्राद्ध के दिन पितरों की पूजा अर्चना धूप ध्यान करने के बाद सबसे पहले कौए कोई ही भोजन कराया जाता है। लेकिन इसको लेकर कहीं मिथक है तो आइए जानते हैं कि श्राद्ध में कौए का क्या महत्व है और सबसे पहले इन्हें भोजन क्यों कराया जाता है।
हिंदू धर्म के जानकारों का कहना है की श्राद्ध में कौए का बहुत ही ज्यादा महत्व है। मान्यता के अनुसार कौवा यम का प्रतीक होता है यम यानी कि यमराज। यमराज मृत्यु के देवता है इसीलिए ऐसा कहा जाता है कि अगर कौवा भोजन खा ले तो यमराज इससे खुश होते हैं, यमराज के खुश होने से उनका संदेश पूर्वजों तक पहुंच जाता है। कहा जाता है कि श्राद्ध कराने के बाद जितना जरूरी ब्राह्मण को भोजन कराना है उतना ही कौए का भोजन करना भी महत्वपूर्ण है। श्राद्ध के समय कौए पितृों का रूप धारण करके हमारे पास आते हैं।
कैसे खिलाएं
कौवे की थाली रखते वक्त एक बात और ध्यान में रखनी चाहिए। जब भी छत पर या चौराहे पर कौवे की थाली रखें तो केवल ऐसे ही रख कर ना आए। भोजन रखते वक्त अपने पितरों को याद करें और तीन बार “क्वास क्वास क्वास” का उच्चारण करें।
कौए न मिले तो क्या करें
बढ़ते शहरीकरण और प्रदूषण के कारण कौए इतनी आसानी से नहीं मिलते शहरों में तो कौए का दिखना भी लगभग नामुमकिन है। ऐसे में समस्या यह है कि अगर कौए ना दिखे तो क्या करें। दरअसल श्राद्ध की थाली लगाते वक्त तीन थालियां लगाई जाती है एक कौवे की दूसरी कुत्ते की और तीसरी गाय की। अब कुत्ते और गाय तो आसानी से दिख जाते हैं लेकिन कौए इतनी आसानी से नहीं दिखते। इसीलिए जानकार इसका उपाय बताते हैं कि अगर ये ना दिखे तो किसी भी पक्षी को भोजन कराया जा सकता है। लेकिन श्रेष्ठ यही होता है कि कौए को ही भोजन खिलाया जाए।
प्राकृतिक संतुलन बनाते हैं
पर्यावरणविद कहते हैं कि कौए प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह प्राकृतिक तौर पर सफाई कर्मी होते हैं जो छोटे कीड़ों के साथ ही प्रदूषण के कारकों को भी खा लेते हैं इससे प्राकृतिक तौर पर कचरा प्रबंधन हो जाता है। यह फसलों और पेड़ में लगने वाले कीड़ों को खाकर उनकी सुरक्षा भी करते हैं।