पुराणों में भी है मिट्टी के गणेशजी का महत्व, जाने कितना होना चाहिए साइज़, क्या है पूजा विधि
गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) का पावन पर्व शुरू हो चुका है। भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला यह पर्व भक्तों के लिए बेहद खास होता है। इसे लेकर भक्तों में एक अलग ही लेवल का उत्साह देखने को मिलता है। इस दिन हर भक्त अपने घर में भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करता है। अधिकतर लोग बाजार से प्लास्टर ऑफ पेरिस की बनी मूर्ति ही लाते हैं। लेकिन ऐसी मूर्तियाँ न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान करती है बल्कि शास्त्रों में भी इनकी मनाही है।
हिंदू ग्रंथों और पुराणों में भी मिट्टी से बनी गणेश मूर्ति के लाभ बताए गए हैं। मिट्टी से बनी गणेशजी की मूर्ति पर्यावरण के लिए तो लाभकारी होती ही है, लेकिन साथ में इसके पूजन से गणेशजी भी जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। आज के सोशल मीडिया के जमाने में मिट्टी के गणेशजी का चलन जरूर बड़ा है। बहुत से लोगों ने मिट्टी के गणेशजी घर लाना शुरू कर दिया है। वहीं कुछ इसे खुद अपने घर भी बनाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर पुराणों में भी मिट्टी के गणेशजी पर ही इतना जोर क्यों दिया गया है? आखिर इसके क्या फायदे हैं? इसका क्या धार्मिक महत्व है? मिट्टी के गणेश जी की पूजा कैसे की जाती है? आइए जानते हैं।
मिट्टी के गणेशजी का महत्व
मिट्टी की मूर्ति में पंचतत्व होते है, जिसके चलते पुराणों में भी ऐसी प्रतिमा की पूजा की सलाह दी गई है। वहीं शिवपुराण की माने तो देवी पार्वती को पुत्र पाने की इच्छा थी जिसके चलते उन्होंने मिट्टी का पुतला बनाया था। इसके बाद शिवजी ने उसमें प्राण फूंक दिए थे। इस तरह गणेशजी का जन्म हुआ था। इसलिए शिव महापुराण में धातु की बजाय पार्थिव और मिट्टी की मूर्ति को ज्यादा अहमियत दी गई है। मान्यता है कि मिट्टी से बनी गणेश प्रतिमा की पूजा करने से कई यज्ञों का फल एकसाथ प्राप्त होता है। वहीं आचार्य वराहमिहिर ने भी अपने ग्रंथ बृहत्संहिता में पार्थिव या मिट्टी की प्रतिमा पूजन को शुभ बताया है।
क्या होना चाहिए मूर्ति का साइज़?
ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र की माने तो घर के अंदर गणेशजी कि मूर्ति 12 अंगुल मतलब लगभग 7 से 9 इंच तक की होनी चाहिए। इससे बड़ी प्रतिमा को घर में नहीं रखना चाहिए। हालांकि मंदिरों और सार्वजनिक जगहों पर मूर्ति की उंचाई को लेकर कोई भी नियम नहीं है।
इस विधि से करें मिट्टी के गणेशजी की पूजा
गणेश चतुर्थी की सुबह स्नान कर नए वस्त्र धारण कर लें। अब नदी से साफ़ी मिट्टी ले लाएं। किसी छोटी कन्या से इस मिट्टी को गुंथवा लें। अब आप खुद इस मिट्टी से गणेशजी की मूर्ति बना सकते हैं। मूर्ति बनाने के बाद उस पर शुद्ध घी और सिंदूर का चोला अवश्य चढ़ाएं। इसके बाद मूर्ति को जनेऊ भी पहनाएं। अब मूर्ति के समक्ष प्रार्थना कर बोलें कि ‘हे श्रीगणेश। आप इस मूर्ति में स्थापित हों।’
मूर्ति को धूप-दीप दिखाना न भूलें। मूर्ति पर पांच लाल रंग के फूल भी चढ़ाएं। लड्डुओं का भोग सबसे अहम है। गणेश चतुर्थी पर इस मिट्टी के गणेशजी की सुबह शाम पूरे मन से पूजा करें। फिर अनंत चतुर्दशी पर नदी में यह पूर्ति विसर्जित कर दें।