सिद्धार्थ के निधन के बाद मां ने कहे बस 2 शब्द, रोई भी नहीं. देखें दिल छूने वाली तस्वीरें
सिद्धार्थ का उनकी मां से बहुत गहरा लगाव था
सिद्धार्थ शुक्ला भले ही दुनिया छोड़ कर चले गए हो, लेकिन उनके फैंस और परिवार वाले इस बात पर यकीन नहीं कर पा रहे हैं किस सिद्धार्थ अब नहीं रहे। सिद्धार्थ और उनकी मां के बीच जो लगाव था उसको पूरा देश महसूस कर रहा है। लेकिन इसी बीच एक चौंकाने वाली बात सामने आई है कि सिद्धार्थ के जाने के बाद उनकी मां ने केवल दो शब्द कहे थे और वो रोई भी नहीं।
क्या थे वो दो शब्द
यह बात सभी जानते हैं कि सिद्धार्थ और उनकी मां ब्रह्मकुमारी नामक धार्मिक संस्था से जुड़े थे। दोनों अक्सर ब्रह्मकुमारी आश्रम जाया करते थे। सिद्धार्थ और उनकी मां के ब्रह्मकुमारी आश्रम में रहने वाली बहनों से भी अच्छे रिश्ते थे। जब सिद्धार्थ का देहांत हुआ तो ब्रह्मकुमारी में रहने वाली एक बहन का फोन उनकी मां के पास आया, फोन उठाने पर सिद्धार्थ की मां न तो रोई और ना ही उनकी हिम्मत टूटी बल्कि उन्होंने दो ही शब्द कहे और वो थे “ओम शांति”।
Rita Maa is indeed very strong. A glimpse from #siddharthshukla prayer meet yesterday organised on Zoom by #brahmakumaris Om Shanti ? #sistershivani #dadijanki pic.twitter.com/sBUEWF8vz2
— Viral Bhayani (@viralbhayani77) September 7, 2021
जब ब्रह्मकुमारी की तरफ से फोन पर सिद्धार्थ की मां से पूछा गया कि आप ठीक हैं तो उन्होंने कहा “मुझे क्या होगा मेरे पास तो ईश्वर की शक्ति है, मेरा अब एक ही संकल्प है कि वह जहां भी रहे खुश रहे।”
रक्षाबंधन पर ही आश्रम गए थे सिद्धार्थ
मां की तरह ही सिद्धार्थ भी ब्रह्माकुमारी से जुड़े हुए थे हाल ही में रक्षाबंधन पर वो ब्रह्मकुमारी बहनों से राखी बंधवाने भी गए थे। ब्रह्मकुमारी की ही हर्षा बहन ने उन्हें मेडिटेशन का कोर्स कराया था। अपने नए घर में भी वह मेडिटेशन के लिए अलग से हॉल बना रहे थे।
सिद्धार्थ ब्रह्मकुमारी को इतना मानते थे कि उनका कहना था कि उन्होंने ईश्वर को कई जगह ढूंढने की कोशिश की लेकिन उन्हें ईश्वर का सबसे ज्यादा एहसास यहीं पर आकर हुआ। गौरतलब है कि उनका अंतिम संस्कार भी ब्रह्मकुमारी की विधि से ही हुआ था।
कौन है ब्रह्मकुमारी
ब्रह्मकुमारी एक धार्मिक संस्था है। जो योग और अध्यात्म से जुड़ी है। ब्रह्मकुमारी का मानना है कि हमारी पहचान हमारी आत्मा से है और सभी आत्माएं अच्छी होती है और इसका केवल एक स्त्रोत है वह है भगवान। इसकी स्थापना 1936 में लेखराज कृपलानी ने की थी फिलहाल ब्रह्मकुमारी का संचालन राजस्थान के माउंटआबू से होता है।