इस वज़ह से भगवान श्रीकृष्ण का अनन्य भक्त है अफ़रोज़ जैदी का परिवार। जानिए क्या है कारण…
अफ़रोज़ जैदी के घर आया 'नन्हा कान्हा'। जानिए क्या है पूरी कहानी...
शाहिर लुधियानवी की बड़ी ही सुंदर पंक्ति है कि, “ईश्वर अल्लाह तेरे नाम सबको सन्मति दे भगवान, सबको सन्मति दे भगवान सारा जग तेरी सन्तान। जी हां यह बात सच है कि ईश्वर एक है, लेकिन उसके रूप अनेक हैं और एक बड़ी बात ईश्वर ने मानव बनाएं और मानव ने मज़हब। ऐसे में मजहब एक निजी विचार है लेकिन आस्था का कोई आदि और अंत नहीं। यह निर्भर करता है व्यक्ति के विश्वास पर। गौरतलब हो कि यदि एक बार किसी विषय को लेकर किसी पर विश्वास कायम हो जाए तो इंसान उसका मुरीद हो जाता है। ऐसा ही कुछ हुआ है अफरोज के साथ।
अफ़रोज़ का मज़हब अलग है, लेकिन आस्था है राम और कृष्ण में। इस आस्था के पीछे भी एक बड़ा कारण है। जी हां बेटे की मुराद लेकर भगवान श्रीराम और कृष्ण की पूजा की। श्रद्धा की लहरों पर सवार अफरोज मेहंदीपुर बालाजी धाम तक पहुंच गईं। आखिर, दुआ कुबूल हुई और उन्होंने बेटे को जन्म दिया। ऐसे में शनिवार को उन्होंने जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में बेटे को कान्हा के रूप में सजाया और पूजा की।
बता दें कि मेरठ की कांशीराम कॉलोनी में रहने वाली मुस्लिम महिला अफरोज जैदी एक एनजीओ चलाती हैं। करीब चार साल पहले उन्होंने दूसरे बेटे की मन्नतों के साथ भगवान श्रीराम और श्री कृष्ण की पूजा की। उस वक्त उनका एक बेटा था। इसके बाद उन्होंने राजस्थान में मेहंदीपुर बालाजी धाम पहुंचकर भी पूजा-अर्चना की। जिसके बाद उनकी दुआ कुबूल हुई और कुछ समय बाद उन्होंने दूसरे बेटे को जन्म दिया। तभी से उनकी श्रद्धा श्रीराम और कृष्ण में और ज्यादा बढ़ गई।
बेटे का नाम उन्होंने अबराम उर्फ कबीर रखा। इतना ही नहीं शनिवार को उन्होंने भगवान श्री कृष्ण जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में अपने बेटे अबराम उर्फ कबीर को कृष्ण भगवान की वेशभूषा में सजाया। इसके बाद उनकी पूजा-अर्चना की।
इतना ही नहीं, अफरोज का कहना है कि वह जन्माष्टमी का त्योहार धूमधाम से मनाएंगी। घर में इसकी तैयारियां चल रही हैं। जन्माष्टमी पर वह बेटे के साथ उपवास रखती हैं। इस बार भी उपवास रखेंगी। परिवार की खुशहाली के लिए भगवान श्रीकृष्ण से दुआ करेंगी। वहीं गौरतलब हो कि अफरोज ने बताया काफी प्रयासों के बाद भी जब संतान की प्राप्ति नहीं हुई तो भगवान में आस्था लेकर कई मंदिरों में माथा टेका। वो राजस्थान के बालाजी मंदिर में भी अपनी मुराद को लेकर गईं।
जिसके बाद उनके घर पर नया मेहमान आया। तभी से वह हर बार भगवान की पूजा करती हैं। ऐसे में अफ़रोज़ जैदी की कहानी से एक बात तो स्पष्ट है कि भक्ति और विश्वास धर्म के सांचे से कहीं ज़्यादा विस्तृत है और यही हमारे भारतीय संस्कृति की पहचान है।