अफगानिस्तान में क्या है ‘बच्चाबाजी’ प्रथा। जानिए तालिबानियों का इस प्रथा से क्या है सम्बंध…
जानिए अफगानिस्तान की बच्चाबाजी प्रथा के बारे में, जो खड़े कर देगी आपके रोंग...
पूरी दुनिया में आजकल कोई चर्चा का विषय है, तो वह सिर्फ़ तालिबान का अफगानिस्तान पर कब्जा और कहीं न कहीं यह चिंता का विषय बना हुआ है। जहां तालिबान का अफगानिस्तान पर कब्जा होते ही लोगों में डर और असुरक्षा की भावना जागने लगी है क्योंकि आने वाले समय में तालिबान के कट्टर कानूनों के कारण उनके भविष्य पर भी संकट गहराने लगा है। बता दें कि तालिबानियों के अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद वहां की पूरी पृष्ठभूमि ही बदल गई है।
ख़ासतौर पर महिलाओं की आजादी पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया है। लोगों के मन में डर घर करने लगा है कि आने वाले समय में अफगानिस्तान में बहुत सारी कुप्रथाओं का जन्म हो जाएगा लेकिन अफगानिस्तान में इससे पहले से ही एक कुप्रथा चली आ रही है, जिसे ‘बच्चा बाजी’ के नाम से जाना जाता है। इसका विरोध सारी दुनिया में होता रहता है लेकिन 21वीं सदी में भी ये बदस्तूर जारी है। आइए आज हम आपको बताते हैं कि क्या है ये कुप्रथा और कैसे इस दलदल में फंसते जाते हैं अफगान के नाबालिग बच्चें…
क्या होती है बच्चा बाजी कुप्रथा?…
बता दें कि बच्चा बाजी एक ऐसी कुप्रथा है जिसमें रसूखदार लोगों द्वारा 10 साल की उम्र के आसपास वाले लड़कों को पार्टियों में डांस करवाया जाता है। इतना ही नहीं उन्हें लड़कियों के कपड़े पहनाए जाते हैं और लड़कियों की तरह मेकअप भी करवाया जाता है। इस बारे में कहा जाता है कि इसके बाद छोटे लड़कों के साथ पुरुषों द्वारा यौन शोषण और रेप भी किया जाता है।
ये लड़के अत्याचार का शिकार होते रहते हैं और इस घिनौने दलदल में फंसते चले जाते हैं। गौरतलब हो कि इस प्रथा में सिर्फ कम उम्र के लड़कों के साथ ही नहीं बल्कि महिलाओं के साथ भी दुर्व्यवहार होता है। यही कारण है कि हमेशा से ही इस प्रथा का विरोध किया जाता है।
इस वज़ह से दलदल में फंस जाते हैं लड़के…
मालूम हो जो बच्चे पार्टियों में जाकर डांस करते हैं, ज्यादातर वे गरीबी की वजह से इस काम को करने के लिए मजबूर होते हैं। बेहतर जिंदगी पाने की चाह में बच्चे इस ओर आकर्षित हो जाते हैं तो कई बार इन बच्चों को किडनैप भी किया जाता है और अभिजात्य वर्ग के लोगों के हाथों बेच दिया जाता है। इन बच्चों को इस काम के बदले सिर्फ और सिर्फ कपड़े और खाना मिल पाता है। बता दें कि अमीर लोग इन बच्चों को खरीदने के बाद अपने मनमुताबिक इस्तेमाल करते हैं।
बन चुकी है इस विषय पर डॉक्यूमेंट्री…
वहीं एक ओर जहां अफगानिस्तान में समलैंगिकता को गैर-इस्लामिक और अनैतिक माना जाता है। वहीं दूसरी तरफ ये कुप्रथा आम है। इन बच्चों को ‘लौंडे’ या ‘बच्चा बेरीश’ कहकर बुलाया जाता है। इस प्रथा पर 2010 में ‘द डांसिंग बॉयज ऑफ़ अफ़ग़ानिस्तान’ नाम की एक डॉक्यूमेंट्री भी बनी है। जिसे अफगान पत्रकार नजीबुल्लाह कुरैशी द्वारा निर्देशित किया गया था।
क्यों नहीं लगता है इस कुप्रथा पर प्रतिबंध…
आप सभी को जानकर हैरानी होगी कि अफगानिस्तान में इस प्रथा को अवैध माना जाता है लेकिन इस बच्चा बाजी से संबंधित गतिविधियों में रसूखदार और सशस्त्र पुरुषों का हाथ शामिल होने के कारण शायद ही यह प्रथा कभी बंद हो पाए। यही कारण है कि इस प्रथा के अवैध होने और अंतर्राष्ट्रीय चिंता के बावजूद भी इस पर रोक नहीं लगाई जा सकी है और अब इसके और बढ़ने की संभावना है।