जयबाण तोप : जो 400 साल में चली एक बार चली और एक गोले की वजह से 35 KM दूर बन गया था तालाब
कहानी एक ऐसी शक्तिशाली तोप की, जिसके एक गोले की वजह से 35 किलोमीटर दूर बन गया था बड़ा तालाब
मानव सभ्यता के विकास के साथ ही वर्चस्व की लड़ाई भी शुरू हो गई थी। शायद इसी को आधार बनाते हुए डार्विन ने जीवन-संघर्ष (Struggle for Existence) को प्राणी के विकास का आधार माना है। अगर विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में देखें तो, जनसंख्या बढ़ जाने के कारण भोजन तथा आवास के लिए प्राणियों में एक सक्रिय संघर्ष उत्पन्न होता है, जिसे जीवन-संघर्ष कहते हैं। लेकिन हम यहां आपको भोजन और आवास से जुड़े संघर्ष के बारे में नहीं बल्कि एक दूसरे ही प्रकार के संघर्ष के बारे में बताने जा रहें।
जिसके लिए तमाम घातक हथियारों के जरिए दुश्मन सेना के दांत खट्टे किए जाते थे। जी हां यह संघर्ष है वर्चस्व की लड़ाई का, दूसरे के ऊपर अधिपत्य स्थापित करने का। बता दें कि इस काम के लिए प्राचीन समय मे तोप को सबसे घातक हथियार माना जाता था। ऐसा हथियार, जिसमें बारुदी गोले को रखकर दूर तक फेंका जा सकता था।
इतना ही नहीं तोप ऐसा हथियार रहा है, जिसमें जंग के दौरान भारी तबाही मचाने की पूरी क्षमता थी। कई बार यह जंग की तस्वीर और परिणाम पूरी तरह पलट देता था। आज भी सभी देश जंग में तोप का इस्तेमाल जरूर करते हैं। हां, अब यह तोप काफी अत्याधुनिक और पहले से अधिक खतरनाक हो गई है। मगर यह जानकर आप हैरान होंगे कि 13 वीं और 14 वीं सदी में तोप का इस्तेमाल शुरू हो गया था। 1313 ईस्वी में यूरोप में तोप के इस्तेमाल के प्रमाण मौजूद हैं। ऐसे भी तथ्य सामने आए कि पानीपत की पहली लड़ाई में बाबर ने तोप का इस्तेमाल किया था।
वहीं, भारत में एक खास तोप है, जिसे दुनिया की सबसे बड़ी तोप का दर्जा हासिल है। जी हाँ साथ ही, इसके बारे में चर्चा यह भी मशहूर है कि इसके एक गोले ने बड़ा तालाब बना दिया था। दरअसल, इस तोप का नाम है ‘जयबाण’। यह जयपुर के किले में रखी है। इसे दुनिया की सबसे बड़ी तोप कहा गया है। इस विशाल तोप को 1720 ईस्वी में जयगण किले में स्थापित किया गया था। तोप का निर्माण राजा जय सिंह ने कराया था, जो जयपुर किले के प्रशासक भी थे। उन्होंने इसका निर्माण अपनी रियासत की सुरक्षा के लिए कराया था।
दिलचस्प बात यह है कि इस तोप को कभी किले से बाहर नहीं ले जाया गया और न ही किसी युद्ध में इसके इस्तेमाल की नौबत आई, क्योंकि यह काफी वजनी है। माना जाता है कि इसका वजन करीब 50 टन है। इसे दो पहिया गाड़ी में रखा गया है। वहीं जिस गाड़ी पर इसे रखा गया है उसके पहियों का व्यास करीब साढ़े चार फीट है। इसके अलावा इसमें दो और अतिरिक्त पहिये भी लगे हैं। इनका व्यास करीब नौ फीट है। इस तोप में करीब 50 किलो वजनी गोला इस्तेमाल किया जाता था। इसके बैरल की लंबाई 6.15 मीटर है। बैरल के आगे की ओर नोक के पास की परिधि 7.2 फीट की है। वहीं, इसके पीछे की परिधि 9.2 फीट की है। बैरल के बोर का व्यास 11 इंच है और छोर पर बैरल की मोटाई 8.5 इंच है।
आखिर में बता दें कि इस भारी भरकम तोप को बनाने के लिए जयगढ़ में ही कारखाने का निर्माण कराया गया। इसकी नाल भी यहीं विशेष सांचे में ढाली गई। हालांकि, इस कारखाने में और भी तोप का निर्माण कराया गया था। दशहरे के दिन इस तोप की पूजा होती है। अब आपको बताते हैं इस तोप और इसमें लगने वाले गोले की खासियत। एक बार इसका परीक्षण किया गया। जब गोला दागा गया तो वह करीब 35 किलोमीटर दूर चाकसू नामक कस्बे में जाकर गिरा। जहां यह गोला गिरा वहां एक बड़ा तालाब बन गया था। इस तालाब में आज भी पानी है और स्थानीय लोग इसे अपने दिनचर्या में इस्तेमाल करते हैं।