जब राजीव गांधी ने नाले में फेंक दी थी सभी कार की चाबियां, SPG जवानों के हाथ-पाव फूल गए थे
इस वज़ह से कार की चाबियां नाली में फेंक दी थी राजीव गांधी ने।
राजीव गांधी का नाम सिर्फ़ इसलिए याद नहीं किया जाता है कि वे गांधी-नेहरू परिवार से तालुक रखते थे, बल्कि राजीव गांधी को उनके द्वारा किए गए कई कार्यों के लिए याद किया जाता हैं। बीते दिनों 20 अगस्त को उनकी जयंती थी। इतना ही नहीं बता दें कि राजीव गांधी को देश के सातवें और भारतीय इतिहास में सबसे कम उम्र के प्रधानमंत्री के अलावा देश में कंप्यूटर क्रांति के लिए याद किया जाता है।
बता दें कि राजीव गांधी को भारत में कंप्यूटर क्रांति लाने का श्रेय दिया जाता है और उन्होंने ना सिर्फ कंप्यूटर को भारत के घरों तक पहुंचाने का काम किया बल्कि भारत में इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी को आगे ले जाने में अहम रोल निभाया। आइए जानते हैं आज राजीव गांधी से जुड़ा हुआ एक क़िस्सा। बता दें कि एक बार जब राजीव गांधी ने अपने कार की चाबियां नाले में फेंक दी थी और बीच सड़क पर एसपीजी (SPG) के जवान हक्के बक्के रह गए थे। तो आइए उठाते हैं इसी बात से पर्दा कि आख़िर राजीव गांधी ने उस दौरान ऐसा क्यों किया था…
गौरतलब हो कि कैंब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज और लंदन के इंपीरियल कॉलेज से पढ़े राजीव गांधी की सियासत में रत्ती भर भी दिलचस्पी नहीं थी। वह पायलट की नौकरी करते थे और उसी में खुश थे। जून 1980 में छोटे भाई संजय गांधी की विमान दुर्घटना में निधन के बाद वह अनमने ढंग से मां इंदिरा की मदद के लिए राजनीति में आ गए। राजीव सियासत का ककहरा सीख ही रहे थे कि इसी बीच साल 1984 में उनकी मां इंदिरा गांधी की भी हत्या कर दी गई।
इसके बाद हुए चुनाव में कांग्रेस को प्रचंड बहुमत मिला और राजीव गांधी सबसे कम उम्र के प्रधानमंत्री बने। टेक्नोलॉजी में गहरी दिलचस्पी रखने वाले राजीव गांधी को ही देश में टेलीकॉम और कंप्यूटर क्रांति का श्रेय दिया जाता है। राजीव के बारे में कहा जाता है कि वह दोस्तों के दोस्त थे और बेहद जिंदादिल इंसान थे।
इतना ही नहीं मां की हत्या के बाद जब राजीव प्रधानमंत्री बने तो एहतियान उनकी सुरक्षा कहीं ज्यादा बढ़ा दी गई थी, लेकिन वह फक्कड़ मिजाज के थे। अक्सर सुरक्षाकर्मियों को गच्चा देकर अकेले निकल जाते थे। वहीं राजीव गांधी को अपनी जीप खुद चलाना पसंद था। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक 1 जुलाई 1985 को तत्कालीन वायुसेना अध्यक्ष एयर चीफ मार्शल लक्ष्मण माधव काटरे के निधन की खबर आई। दोपहर में राजीव और सोनिया शोक व्यक्त करने उनके घर पहुंचे।
प्रधानमंत्री के साथ उनका पूरा काफिला था। इस काफिले में सोनिया के सुरक्षाकर्मी भी शामिल थे। चूंकि सुरक्षाकर्मियों को यह नहीं पता था कि वहां पहुंचने के बाद सोनिया गांधी कहीं अकेले जाएंगी या राजीव के साथ वापस लौटेंगी, ऐसी में उनके सुरक्षाकर्मी भी काफिले में साथ-साथ काटरे के घर तक गए थे। काटरे के घर से बाहर निकलने के बाद राजीव गांधी ने बाहर तमाम कारें देखीं। उन्होंने एक पुलिस अधिकारी से कहा कि वे तय करें कि ये कारें उनके पीछे ना आएं।
इसके बाद राजीव गांधी, सोनिया के साथ अपनी जीप में बैठकर चलने लगे। थोड़ी देर में सभी कारें भी उनके पीछे चलने लगीं। उस वक्त तेज बारिश हो रही थी। राजीव गांधी ने अचानक अपनी जीप रोक दी और बारिश में ही बाहर निकले। अपने ठीक पीछे आ रही एस्कॉर्ट कार का दरवाजा खोला और उसकी चाबी निकाल ली। फिर पीछे आ रही और कारों की चाबी निकाल ली।
वहीं सुरक्षाकर्मी जब तक कुछ समझ पाते तबतक राजीव गांधी ने सारी चाबियां नाली में फेंक दी और अपनी जीप से आगे बढ़ गए। यह देख एसपीजी( SPG) सुरक्षा कर्मियों के हाथ-पाव फूल गए। करीब 15 मिनट बाद जब सुरक्षाकर्मियों को पता लगा कि राजीव गांधी सकुशल 7 रेस कोर्स रोड पहुंच गए हैं, तब उनकी जान में जान आई।
इतना ही नहीं राजीव से जुड़ा एक और दिलचस्प वाकया है और यह है कि जब वे कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करते थे। तभी उनकी मुलाकात सोनिया से हुई थी। हालांकि लंबे वक्त तक राजीव ने सोनिया से भी अपनी पहचान छिपाकर रखी थी। उन्होंने सोनिया को यह नहीं बताया था कि वह भारत के प्रधानमंत्री इंदिरा के बेटे हैं। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक राशिद किदवई ने अपनी किताब में इस किस्से का जिक्र किया है।
राशिद किदवई लिखते हैं कि कैंब्रिज में पढ़ने वाले एक अन्य भारतीय छात्र ने सोनिया गांधी को बताया था कि राजीव, इंदिरा गांधी के बेटे हैं, जो कि भारत की प्रधानमंत्री हैं। इसी तरह राजीव जब पायलट की नौकरी करते थे तब भी अपना पूरा नाम नहीं बताते थे। सिर्फ पहले नाम से ही परिचय दिया करते थे। इसकी वजह यह थी कि वे बेवजह की अटेंशन से बचना चाहते थे।