चार दिन में ही पाई-पाई को मोहताज़ हुआ तालिबान, ड्रैगन से मांगी आर्थिक मदद…
अफगानिस्तानी खनिज संपदा पर है ड्रैगन की टेढ़ी नज़र। जानिए अपार प्राकृतिक संपदा के बावजूद ग़रीब क्यों है अफगानिस्तान......
तालिबान ने अभी बीते कुछ दिन पहले ही अफगानिस्तान पर कब्ज़ा जमाया है। इसी बीच अब जो ख़बर निकलकर आ रही है। वह सभी को चकित कर रही है। जी हाँ ऐसी खबरें काबुल से निकलकर आ रही है कि अब तालिबान कटोरा लेकर चीन के सामने खड़ा हो गया है। ऐसे में सवाल यही क्या तालिबान ने ड्रैगन को वो मौका दे दिया है, जिसका इंतजार चीन पिछले कई सालों से कर रहा था?
आज ये सवाल अफगानिस्तान समेत पूरी दुनिया में इसलिए पूछे जा रहे हैं, क्योंकि तालिबान ने बंदूक के बल पर काबुल पर तो कब्जा कर लिया, लेकिन अफगानिस्तान में सरकार चलाने के लिए उसके पास पैसा नहीं है। तालिबान पाई-पाई को मोहताज हो चुका है और उसने जिन शर्तों के साथ चीन की तरफ हाथ बढ़ाया है, उससे साफ जाहिर हो गया है कि आने वाले वक्त में ड्रैगन अफगानिस्तान का खून चूस लेगा।
बता दें कि अमेरिका ने अफगानिस्तान के बैंक खातों को सील कर दिया है, जिसके बाद तालिबान के पास सरकार चलाने के लिए पैसा ही नहीं बचा है और आलम ये है कि तालिबानी आतंकी माथा पकड़ कर बैठे हैं। तालिबान ने पाकिस्तान के सामने पैसों की डिमांड रखी, लेकिन कंगाल पाकिस्तान के पास तालिबान की मदद के लिए पैसे कहां हैं?
तालिबान ने सरकारी कर्मचारियों को ऑफिस आने के लिए कहा है, इसके साथ ही सरकार चलाने के सौ खर्च अलग होते हैं, ऐसे में पाकिस्तान ने तालिबान के सामने चीन की दलाली करनी शुरू कर दी और इस वक्त सिर्फ चीन ही है, जिसने तालिबान को मदद करने की बात सार्वजनिक तौर पर की है। लिहाजा, तालिबान अब चीन की शरण में पहुंच गया है और रिपोर्ट के मुताबिक चीन भी तालिबान की मदद करने के लिए तैयार हो गया है।
गौरतलब हो कि तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने चीन की सरकारी मीडिया को दिए इंटरव्यू में कहा है कि चीन ने अफगानिस्तान में शांति सुलह को बढ़ावा देने में रचनात्मक भूमिका निभाई है और देश के पुनर्निर्माण में योगदान देने के लिए उनका स्वागत है। इतना ही नहीं चीन की मीडिया से बात करते हुए तालिबानी प्रवक्ता ने कहा कि, ” चीन एक बहुत बड़ी शक्ति है और अफगानिस्तान में चीन का खुले दिल से स्वागत है और तालिबान का मानना है कि अफगानिस्तान के पुननिर्माण में चीन बहुत बड़ी भूमिका निभा सकता है।
” इसके अलावा तालिबान के प्रवक्ता ने कहा कि, ”तालिबान को उम्मीद है कि चीन अफगानिस्तान में निवेश करेगा, जिससे अफगानिस्तान के लोगों की आय बढ़ेगी और अमेरिकी प्रतिबंधों का असर नहीं पड़ेगा।”
चीन-तालिबान में हुई डील…
तालिबान ने सीधे तौर पर चीन को अफगानिस्तान बुला लिया है और पिछले महीने पहले चीन और तालिबान के बीच डील भी हो चुकी है, जिसकी वजह से जब तालिबान अफगानिस्तान पर कब्जा कर रहा था, उस वक्त चीन पूरी तरह से खामोश था। इसके साथ ही चीन की सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स कह चुका है कि तालिबान को मान्यता देने में चीन को कोई दिक्कत नहीं है। इसके साथ ही विशेषज्ञों का मानना है कि तालिबान के धार्मिक मामलों में नहीं पड़कर चीन का एकमात्र उद्देश्य अफगानिस्तान से दुर्लभ धातुओं का खनन करना है।
अमेरिका ने 2005 में ही अनुमान लगाया था कि अफगानिस्तान में एक ट्रिलियन से ज्यादा रुपयों की दुर्लभ धातुएं मौजूद हैं और चीन इसी को हड़पने की फिराक में है। लिहाजा जब पिछले महीने तालिबान के प्रतिनिधियों और चीन के विदेश मंत्री वांग यी की मुलाकात हुई थी तो चीन ने तालिबान को फ्री हैंड दे दिया था, और सिर्फ एक मांग रखी थी कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल चीन के खिलाफ नहीं होने पाए।
अफगानिस्तान में यह चाहता है चीन…
वहीं बता दें कि तालिबान से पहले ही चीन शतरंत की बिसात पर दोस्ती की चाल चल चुका है। चीन ने तालिबान को अफगानिस्तान में पुनर्निर्माण करने का लालच दिया है। तालिबान जानता है कि वो बंदूक के दम पर सत्ता ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रख सकता है, लिहाजा वो चाहेगा कि अफगानिस्तान में विकास के प्रोजेक्ट लॉंच कर वो लोगों के दिलों में जगह बनाए और चीन से बड़ा साथी उसे कोई और मिल नहीं सकता है। इतना ही नहीं चीन भी कहीं न कहीं इसी मौके की ताक में है। दरअसल, एक समय अमेरिकन जियोलॉजिकल सोसायटी के सर्वेक्षण ने अफगानिस्तान के अंदर एक सर्वेक्षण शुरू किया था।
2006 में अमेरिकी शोधकर्ताओं ने चुंबकीय गुरुत्वाकर्षण और हाइपरस्पेक्ट्रल सर्वेक्षणों के लिए हवाई मिशन भी किए थे। जिसमें पता चला था कि अफगानिस्तान में अकूत मात्रा में लोहा, तांबा, कोबाल्ट, सोना के अलावा औद्योगिक रूप से महत्वपूर्ण लिथियम और नाइओबियम के विशालकाय खनिज मौजूद है। ये ऐसे खनिज हैं, जो रातों रात किसी भी देश की तकदीर को हमेशा के लिए बदल सकते हैं।
इतना ही नहीं इन खनिजों में से लिथियम को काफी दुर्लभ माना जाता है। लिथियम की मांग के कारण अफगानिस्तान को ‘सऊदी अरब’ भी कहा जाता है। दरअसल, लैपटॉप और मोबाइल की बैटरी में लिथियम का इस्तेमाल होता है। अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन ने ही कहा था कि अफगानिस्तान का लिथियम सऊदी अरब के तेल के भंडार की तरह है। जलवायु परिवर्तन को देखते हुए यह तय है कि आने वाले वक्त में जीवाश्म ईंधन की जगह इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की मांग काफी ज्यादा बढ़ने वाली है।
ऐसे में लिथियम जैसे खनिजों की भारी मौजूदगी अफगानिस्तान की किस्मत हमेशा हमेशा के लिए बदल सकती है, बशर्ते उसका सही तरीके से इस्तेमाल हो और वो इस्तेमाल अफगानिस्तान के अंदर बनने वाली सरकार करे। उसपर किसी बाहरी शक्ति का नियंत्रण ना हो। चीन इस बात जो जानता है और वो तालिबान को समर्थन देकर लीथियम के खजाने को लूटना चाहता है।
बिन पेंदी का लोटा है चीन…
इसके साथ ही अफगानिस्तान में नरम धातु नाइओबियम भी पाया जाता है, जिसका उपयोग सुपरकंडक्टर स्टील बनाने के लिए किया जाता है। आपको बता दें कि सुपरकंडक्टर कितना जरूरी है, इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि इस साल फरहरी महीने में 2 महीने के लिए एक नामी कार कंपनी को सुपरकंडक्टर के अभाव की वजह से अपना प्रोडक्शन बंद करना पड़ा था।
इतने दुर्लभ खनिजों की मौजूदगी के कारण यह माना जाता है कि आने वाले समय में दुनिया तेजी से खनन के लिए अफगानिस्तान की तरफ रुख करेगी। अब तक अमेरिका यहीं बना हुआ था और उसने एक तरह से अफगानिस्तान की खनिज संपदा की रक्षा ही की है, लेकिन अब चीन ने अफगानिस्तान की तरफ देखना शुरू कर दिया है।
आख़िर अब तक गरीब क्यों है अफगानिस्तान?…
वहीं एक रिपोर्ट के अनुसार अफगानिस्तान में एक ट्रिलियन डॉलर के संसाधन हैं, लेकिन हर साल सरकार को खनन से 30 करोड़ डॉलर के राजस्व का नुकसान ही होता है। अफगानिस्तान खराब सुरक्षा, कानूनों की कमी और भ्रष्टाचार के कारण अपने खनिज क्षेत्र को ना विकसित कर पाया है और ना ही उसकी सुरक्षा करने में समर्थ नजर आ रहा है। बिगड़ते बुनियादी ढांचे के कारण अफगानिस्तान में परिवहन व्यवस्था भी बेहद खराब है साथ ही सरकार के पास इतने पैसे नहीं हैं कि वो खनिजों का खनन कर सके। इन सब वजहों से खनन ने देश के सकल घरेलू उत्पाद में केवल 7-10 प्रतिशत का योगदान दिया। ऐसे में अगर चीन अफगानिस्तान में अपनी जड़ें जमाता है तो जाहिर तौर पर अफगानिस्तान को फ़ायदे से ज्यादा नुकसान ही होगा।