पंजशीर घाटी से खौफ खाता है तालिबान, कभी भी नहीं कर पाया यहां पर हमला, जानें इस घाटी का इतिहास
तालिबान अभी तक अफगानिस्तान की पंजशीर घाटी पर अपना कब्जा नहीं जमा पाया है और ये गढ़ जीतना तालिबान के लिए बेहद ही मुश्किल होने वाला है। खुद को अफगानिस्तान का कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित करने वाले अफगानिस्तान सरकार के पहले उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह पंजशीर घाटी में ही हैं और इन्होंने यहां से ही तालिबान के खिलाफ लड़ाई करने की घोषणा भी की है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर इस घाटी में तालिबान दाखिल होने से डरता क्यों है।
कहां हैं पंजशीर घाटी
पंजशीर घाटी काबुल के उत्तर में हिंदू कुश में स्थित है। ये क्षेत्र 1980 के दशक में सोवियत संघ और फिर 1990 के दशक में तालिबान के खिलाफ प्रतिरोध का गढ़ रहा है। एक्सपर्ट्स के अनुसार पंजशीर घाटी ऐसी जगह पर है जो इसे प्राकृतिक किला बनाती है, जिसके कारण इसपर कभी भी तालिबान हमला नहीं कर सका है।
यहीं वजह है कि कभी भी तालिबान इस जगह पर अपना कब्जा नहीं कर पाया है। इस घाटी में डेढ़ लाख से अधिक लोग रहते हैं। इस घाटी में सबसे अधिक ताजिक मूल के लोग रहते हैं। अफगानिस्तान सरकार के पहले उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह का जन्म पंजशीर प्रांत में ही हुआ है और ये यहीं ट्रेन हुए हैं।
पंजशीर घाटी हमेशा से प्रतिरोध का केंद्र बना रहा, इसलिए इस क्षेत्र को न सोवियत संघ, न अमेरिका और न तालिबान अपना नियंत्रण कर सका। इस घाटी में तालिबान के विरोधी नेता रहते हैं। जिनमें अहमद मसूद, अमरुल्लाह सालेह, मोहमम्द खान जैसे नेताओं के नाम शामिस हैं। अमरुल्ला सालेह मौजूदा वक्त में कहां है यह साफ़ नहीं है। लेकिन स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वो पंजशीर घाटी में ही हैं।
कहा जाता है नॉर्दर्न एलायंस
पंजशीर घाटी क्षेत्र को नॉर्दर्न एलायंस के नाम से भी जाना जाता है। दरअसल नॉर्दर्न एलायंस 1996 से लेकर 2001 तक काबुल पर तालिबान शासन का विरोध करने वाले विद्रोही समूहों का गठबंधन था। इस गठबंधन में अहमद शाह मसूद, अमरुल्ला सालेह के साथ ही करीम खलीली, अब्दुल राशिद दोस्तम, अब्दुल्ला अब्दुल्ला, मोहम्मद मोहकिक, अब्दुल कादिर, आसिफ मोहसेनी आदि शामिल थे।
अमरुल्लाह सालेह ने अफगान पर तालिबान के कब्जे के बाद 19 अगस्त को एक ट्वीट किया था। जिसमें इन्होंने लिखा था कि ‘देशों को कानून के शासन का सम्मान करना चाहिए, हिंसा का नहीं। अफगानिस्तान इतना बड़ा है कि पाकिस्तान निगल नहीं सकता है। ये तालिबान के शासन के लिए बहुत बड़ा है। अपने इतिहास को अपमान पर एक अध्याय न बनने दें और आतंकी समूहों के आगे नतमस्तक न हों।’
कहा जा रहा है कि अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद भी पश्चिमी देशों से मदद मांग रहे हैं। वॉशिंगटन पोस्ट में उन्होंने लिखा है, ‘मैं पंजशीर घाटी से लिख रहा हूं। मैं अपने पिता के नक्शेकदम पर चलने को तैयार हूं। मुजाहिदीन लड़ाके एक बार फिर से तालिबान से लड़ने को तैयार हैं। हमारे पास गोला-बारूद और हथियारों के भंडार हैं। जिन्हें मैं अपने पिता के समय से ही जमा करता रहा हूं क्योंकि हम जानते थे कि यह दिन आ सकता है।
‘ इन्होंने आगे लिखा है, ‘तालिबान सिर्फ अफगान लोगों की समस्या नहीं है। तालिबान के नियंत्रण से अफगानिस्तान कट्टरपंथी इस्लामी आतंकवाद का मैदान बन जाएगा और यहां एक बार फिर लोकतंत्र के खिलाफ साजिश रची जाएगी।’