अफ़गानिस्तान को बचा सकते हैं ये 4 बड़े चेहरे, तालिबान के लिए बन सकते हैं काल
पूरी दुनिया में अफ़गानिस्तान की चर्चा हो रही है. एक के बाद एक तालिबान अफ़गानिस्तान के कई बड़े शहरों पर कब्जे करते जा रहा था, वहीं 15 अगस्त की सुबह अफ़गानिस्तान की राजधानी काबुल को भी तालिबान के लड़ाकों ने अपने कब्जे में ले लिया. इसके साथ ही तालिबान के हौंसले बुलंद हो गए है, हालांकि अब भी अफ़गानिस्तान को बड़े उलटफेर की उम्मीद है. अफगान के पास 4 ऐसे चेहरे है जो तालिबान को खदेड़ सकते हैं. आइए इनके बारे में जानते हैं.
बता दें कि, लगभग-लगभग तालिबान ने अफ़गानिस्तान को पूरी तरह से अपने कब्जे में ले लिया है, लेकिन पंजशीर घाटी (Panjshir Valley) में अब तक तालिबान घुस नहीं पाया है. यहां 20 साल पहले भी तालिबान अपने कदम नहीं रख सका था. इसी क्षेत्र से अफगानिस्तान के कार्यवाहक राष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह (Amrullah Saleh) आते हैं. बताया जा रहा है कि, सालेह ने तालिबान के खिलाफ नॉर्दर्न अलायंस की रेजिस्टेंस फोर्स को लेकर तालिबान के खिलाफ मोर्चा संभाल लिया है.
अफ़गानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी जब देश छोड़कर भाग चुके हैं. उन्होंने UAE में शरण ले ली है. ऐसे में सबकी निगाहें अफगानिस्तान के कार्यवाहक राष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह (Amrullah Saleh) पर टिकी हुई है. सालेह ने कहा है कि, ‘मैं ये स्पष्ट करना चाहता हूं कि इस परिस्थिति के लिए कई कारण जिम्मेदार हैं, लेकिन मैं उस अपमान का हिस्सा बनने के लिए तैयार नहीं हूं जो विदेशी सेनाओं ने सहा था. मैं अपने देश के साथ और देश के लिए खड़ा हूं और युद्ध अभी समाप्त नहीं हुआ है.’
अहमद मसूद…
तालिबान द्वारा कभी पंजशीर घाटी पर कब्जा न कर पाने का एक बड़ा कारण अहमद शाह मसूद को भी माना जाता है. कभी उन्हें शेर ए पंजशीर के नाम से जाना जाता था. बता दें कि, अहमद नॉर्दर्न एलायंस के नेता थे. अब उनके बेटे अहमद मसूद मोढ़ा संभाल रहे हैं. गौरतलब है कि, 80 के दशक में जब सोवियत रूस ने भी पंजशीर घाटी को नियंत्रण में लेने का प्रयास किया था तो अहमद मसूद ने उसका डटकर सामना किया था.
मार्शल अब्दुल रशीद…
मार्शल अब्दुल रशीद अफ़गानिस्तान की सत्ता संभाल चुके हैं और वे अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हैं. ऐसे में देश के लिए वे एक बड़ा चेहरा है और उनके रूप में तालिबान के सामने भी बड़ी चुनौती है. वे भी तालिबान के ख़िलाफ़ लड़ाई में मोर्चा संभाल रहे हैं. कुछ दिनों पहले मार्शल अब्दुल रशीद ने कहा था कि, ‘देश के उत्तरी हिस्सों से तालिबान का सफाया कर दिया जाएगा. तालिबान के पास बचने का कोई रास्ता नहीं है. मिलिशिया अफगान सेना के साथ मिलकर तालिबान के खिलाफ युद्ध लड़ रही है’.
अता मोहम्मद नूर…
अता मोहम्मद नूर सालों से तालिबान के ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं. साल 1996 में जब तालिबान ने अफ़गानिस्तान की सत्ता अपने कब्जे में ली थी तब अता ने अहमद शाह मसूद के साथ मिलकर एक संयुक्त मोर्चा तैयार किया था. हालांकि हाल ही में यह ख़बर भी आई है कि वे अफ़गानिस्तान छोड़कर तजाकिस्तान जा चुके हैं माना जा रहा है कि तालिबान के ख़िलाफ़ वे कोई रणनीति पर काम कर रहे हैं.