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इस जगह दूल्हे के कपड़े पहनती है दुल्हन, शादी में होती है ड्रेस की अदला-बदली। जानिए क्या है वज़ह

भारतीय संस्कृति में शादी को दो लोगों के साथ दो आत्मा और दो परिवार की भी शादी होती है जो एक दूसरे से हमेशा के लिए जुड़ जाते हैं। जी हां इसलिए भारतीय संस्कृति में शादी की बहुत अहमियत होती है। इतना ही नहीं दुनिया में शादी को एक पवित्र बंधन माना गया है। बता दें कि हिंदू धर्म में हर काम के लिए अलग-अलग विधि विधान है और हिन्दू धर्म में इसका काफी महत्व भी होता है।

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हिन्दू धर्म में माना जाता है कि शादी दो पवित्र आत्माओं का मिलन होती है। शादी हर किसी के जीवन का सबसे बड़ा सपना होता है। हिंदू धर्म में विवाह को सोलह संस्कारों में से एक संस्कार माना गया है। तो आइए आज हम आपको शादी से जुड़े एक ऐसे दिलचस्प वाकये से रूबरू कराते हैं। जिसे पढ़कर आप भी यही कह उठेंगे कि भाई! ये बड़ी अजीबोगरीब परंपरा है।

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जी हां भारतीय समाज में कई तरीके की परम्पराएं व्याप्त हैं। इन्हीं में से एक वेस्ट गोदावरी जिले में निभाई जाती है। जो अपने आप में काफ़ी अजीब है। बता दें कि वेस्ट गोदावरी जिले की यह परंपरा कोई आज की नहीं बल्कि काकतिया शासकों के काल से यहां ऐसा होता आ रहा है। शादी के एक दिन पहले दुल्हन को दूल्हे के कपड़े पहनने होते हैं और दूल्हा लड़कियों जैसा भेष बनाकर कोई साड़ी या लहंगा पहनता है। यह परंपरा भले ही अजीब है लेकिन गन्नामनि लोग इसका पूरे जोश के साथ पालन करते आ रहे हैं।

साड़ी पहनता है दूल्हा…

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गौरतलब हो कि इस प्रथा के जरिए लड़का-लड़की के भेदभाव को तोड़ने की कोशिश तो है ही, साथ ही यह हमारे देश की विविधता का भी एक अनोखा उदाहरण पेश करती है। शादी में लड़का न सिर्फ दुल्हन के कपड़े पहनता है बल्कि लड़की की तरह ही सज-धज कर तैयार होता है। इसके लिए उसे ज्वेलरी से लेकर अन्य आभूषण भी पहनने होते हैं।

दुल्हन पहनती है लड़के के कपड़े…

वहीं बता दें कि इसी तरह दुल्हन भी पेंट-शर्ट या धोती-कुर्ता में तैयार होकर समारोह में शामिल होती है। इसके अलावा वह इस दौरान जूड़ा या चोटी नहीं बांधती बल्कि लड़कों की हेयर स्टाइल बनाती है। साथ में लड़कों जैसा चश्मा पहनने का भी चलन है। इसके अलावा बात इस परंपरा के शुरुआत की करें।

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तो इस परंपरा की शुरूआत काकतिया साम्राज्य की महारानी रुद्रमा देवी के वक्त हुई थी। बता दें कि उनके सेनापति गन्नामनि परिवार से ताल्लुक रखते थे। महारानी ने 1263 से लेकर 1289 तक साम्राज्य की सत्ता संभाली थी और इस परंपरा के पीछे का मकसद पुरुषों की छवि को दुनिया के सामने बेहतर तरीके से पेश करना था।

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जंग में पहने पुरुषों के कपड़े…

वहीं युद्ध के दौरान जब सैकड़ों सैनिकों की जान चली गई तो फैसला किया गया कि औरतें सेना में पुरुषों के कपड़े पहनकर जंग लड़ेंगी। इसके बाद यह कदम काम आया और काकतिया साम्राज्य को कई जंगों में इसका फायदा भी हुआ। साथ ही गन्नामनि परिवारों की शादियों में भी कपड़ों की अदला-बदली की यह परंपरा शुरू हो गई, जिसका आजतक पालन किया जा रहा है।

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