जानिए कहाँ से पैसे आते हैं तालिबान के पास की पूरे देश पर कब्ज़ा करने के लिए अपनी सेना बना ली
जानिए तालिबान का अर्थशास्त्र, जिसकी वज़ह से वह पूरे अफगानिस्तान पर करना चाहता है कब्ज़ा
अफगानिस्तान में हालात बिगड़ते जा रहें हैं। जिसको लेकर अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंता ज़ाहिर की जाने लगी है। जी हां संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतोनियो गुटेरस ने चिंता जताई है कि अफगानिस्तान में हालात काबू से बाहर हो रहे हैं। उन्होंने तालिबान से फौरन हमले रोकने को कहा है।
इसके अलावा उन्होंने कहा कि सैन्य ताकत के जरिए सत्ता छीनना एक असफल कदम है और यह सिर्फ और सिर्फ लंबे समय तक गृहयुद्ध चलने का और युद्धग्रस्त राष्ट्र के पूरी तरह से अलग-थलग होने का कारण बन सकता है। इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि, “अफगान लड़कियों और महिलाओं से जारी बर्ताव भयावह और हृदयविदारक है।”
जी हां यह तो आप सभी को पता होगा कि तालिबान काफी तेजी से अफगानिस्तान में पांव पसार रहा है और माना जा रहा है कि अगले तीन महीनों के अंदर तालिबान का अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा हो जाएगा। तालिबान ने 12 प्रांतों की राजधानियों पर नियंत्रण स्थापित कर लिया है और देश के कई प्रांतों के नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं को बंदी तक बना लिया गया है।
लेकिन, एक बात पर गौर करें तो 2021 का तालिबान 1990 के दशक के अंत के तालिबान से काफी अलग दिख रहा है। तालिबान की तरफ से जो वीडियो जारी किया जाता है और अलग अलग मीडिया स्रोतों के हवाले से तालिबान को लेकर जो वीडियो फ़ुटेज मिलते हैं, उससे साफ झलकता है कि तालिबानी नेताओं की भेषभूषा और कार्य करने की शैली में भी पहले से काफी अधिक परिवर्तन हुआ है।
कितना बदल गया है तालिबान?…
बता दें कि तालिबान को लेकर जो रिपोर्ट मिल रही हैं और जो वीडियो फ़ुटेज सामने आ रहें हैं। उससे पता चलता है कि तालिबान के पास अत्याधुनिक हथियार आ गए हैं और उनके पास आधुनिक एसयूवी गाड़ियां आ गई हैं। तालिबान के लड़ाके जो कपड़े पहनते हैं, वो नये और काफी हद तक साफ दिखते हैं, जबकि पुराने तालिबान की भेषभूषा भी पुराना होता था और उनका रहन-सहन भी कबीलों के जैसा होता था।
हालांकि, देखा जाए तो विचारधारा के स्तर पर तालिबान की सोच अभी भी बहुत हद तक पुराने तालिबान जैसा ही है और महिलाओं को लेकर तालिबान के विचार खतरनाक ही हैं, लेकिन 2021 के तालिबान में 1990 के दशक के तालिबान जैसा पागलपन नहीं दिख रहा है। तालिबान के लड़ाके अब अनुशासित नजर आते हैं और ऐसा लगता है कि उन्हें काफी अच्छी ट्रेनिंग दी गई है और वो आत्मविश्वास से लबरेज दिखते हैं और वो क्यों नहीं आत्मविश्वास से भरे दिखेंगे, आखिर उनके खजाने में पैसा जो भरा हुआ है।
2016 में पांचवें नंबर पर था तालिबान…
तो ऐसे में अब सवाल ये उठता है कि तालिबान के पास कितना पैसा है और ये पैसा कहां से आता है? बता दें कि 2016 में फोर्ब्स पत्रिका ने दुनिया के सबसे अमीर आतंकवादी संगठनों की लिस्ट जारी की थी, जिसमें तालिबान को पांचवां सबसे अमीर आतंकी संगठन बताया गया था। उस वक्त आतंकवादी संगठन आईएसआईएस को सबसे अमीर आतंकी संगठन बताया गया था और उसकी संपत्ति करीब 2 अरब अमेरिकी डॉलर आंकी गई थी।
हालांकि, आईएसआईएस ने इराक के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया था और उसे कई देशों में स्थिति इस्लामिक चरमपंथी संगठनों से फंड मिला हुआ था, लेकिन अमेरिका ने आईएसआईएस को तबाह कर दिया और उसके मुखिया अबु बकर अल बगदादी को अमेरिका ने बम से उड़ा दिया था। लेकिन, फोर्ब्स की रिपोर्ट के मुताबिक 2016 में तालिबान का वार्षिक कारोबार करीब 400 मिलियन डॉलर आंका गया था।
तालिबान के पास है कितनी संपत्ति…
वही फोर्ब्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि तालिबान के पास पैसे कमाने का मूल स्रोत मादक पदार्थों की तस्करी, सुरक्षा देने के नाम पर वसूली, अलग अलग चरमपंथी संगठनों से मिला दान और उन इलाकों से वसूला गया धन था, जहां तालिबान का नियंत्रण था। फोर्ब्स ने 400 मिलियन वार्षिक ‘व्यापार’ की ये रिपोर्ट 2016 में जारी की थी और उस वक्त तालिबान काफी कमजोर था और उसके पास कुछ ही छोटे छोटे इलाकों पर नियंत्रण था। लेकिन अब तालिबान का नियंत्रण अफगानिस्तान के कई बड़े और महत्वपूर्ण शहरों पर हो गया है और उसकी संपत्ति में काफी ज्यादा वृद्धि दर्ज की गई है।
बता दें कि रेडियो फ्री यूरोप/रेडियो लिबर्टी ने नाटो की गोपनीय रिपोर्ट के हवाले से तालिबान की संपत्ति को लेकर बड़ा खुलासा किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि तालिबान की संपत्ति में कई गुना इजाफा हुआ है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019-2020 वित्त वर्ष में तालिबान का वार्षिक बजट करीब 1.6 अरब डॉलर था, जो 2016 के फोर्ब्स के आंकड़ों की तुलना में चार सालों में 400 प्रतिशत की वृद्धि है। इस रिपोर्ट में लिस्ट बनाकर दिखाया गया है कि तालिबान के पास कहां से और कितने पैसे आते हैं। इसके अलावा इन पैसों को तालिबान किन मदों में कहां कहां खर्च करते हैं।
आत्मनिर्भर बनने की कोशिश में है तालिबान…
गोपनीय नाटो रिपोर्ट ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला है कि तालिबान नेतृत्व एक स्वतंत्र राजनीतिक और सैन्य इकाई बनने के लिए आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ रहा है और इस कोशिश में है कि उसे पैसों के लिए किसी और देश या किसी और संगठन पर मोहताज नहीं होना पड़े। रिपोर्ट के मुताबिक, कई सालों से तालिबान इस कोशिश में है कि पैसों के लिए विदेशी संगठनों और विदेशी देशों खासकर पाकिस्तान पर निर्भरता कम की जाए। नाटो की खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक, 2017-18 में कथित तौर पर तालिबान को विदेशी स्रोतों से अनुमानित $ 500 मिलियन डॉलर मिले थे, जिसे 2020 में तालिबान काफी कम कर चुका है।
अफगानिस्तान सरकार पर उठते हैं सवाल…
वही सबसे हैरानी की बात ये है कि 2020 में जारी बजट के मुताबिक अफगानिस्तान सरकार का आधिकारिक बजट करीब 5.5 अरब डॉलर था, जिसमें 2 प्रतिशत से कम रक्षा बजट को दिया गया था। हालांकि, ‘तालिबान को अफगानिस्तान की सीमा पर खदेड़कर रखने में ज्यादातर पैसा अमेरिका खर्च कर रहा था, लेकिन एक्सपर्ट बताते हैं कि अफगानिस्तान सरकार ने रक्षा बजट पर पैसे खर्च नहीं किए हैं। जिसकी वजह से आज की स्थिति पूरी तरह बदली हुई है और तालिबान को रोकने में अफगानिस्तान सरकार पूरी तरह से नाकाम हो गई है।’
अमेरिका ने खर्च किए 1 ट्रिलियन रुपए…
आखिर में जानकारी के लिए बता दें कि अमेरिका दावा करता है कि उसने पिछले 20 सालों में अफगानिस्तान में सैनिकों को ट्रेनिंग और हथियार देने में करीब एक ट्रिलियन डॉलर खर्च किए हैं, जिसमें तालिबान से लड़ना भी शामिल है। लेकिन, अमेरिका ने अफगानिस्तान को अभी तक पूरा खाली नहीं किया है और उससे पहले ही तालिबान द्वारा काबुल को घेर लिया जाना अमेरिका की मजबूती पर भी सवाल खड़े करता है।
व्यापारिक नजरिए से देखा जाए तो तालिबान ने लगातार तरक्की की है और उसने पैसों का स्रोत बनाए रखा है और उसी की बदौलत आज का तालिबान काफी बदला- बदला नजर आता है और उसने अपनी विचारधारा में थोड़ा परिवर्तन करते हुए अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से बातचीत शुरू की है, क्योंकि तालिबान अब जानने लगा है कि अगर उसे वैश्विक मंच पर रहना है तो उसे बातचीत करनी होगी और उसे अगर अपने संगठन को जिंदा रखना है तो पैसे कमाने के अलग अलग स्रोतों के बारे में सोचना होगा।