क्यों मनाई जाती है निर्जला एकादशी और क्या होता है इससे लाभ? जानें इसकी व्रत कथा!
निर्जला एकादशी हिन्दू धर्म का एक ख़ास और पवित्र दिन होता है। इस दिन व्यक्ति निर्जल रहकर व्रत रखते हैं, ताकि उनकी सभ मनोकामनाएं पूरी हो सकें। कुछ लोगों को इसके बारे में कुछ भी नहीं पता होता है, बस उनसे इसका व्रत रखने के लिए कहा जाता है और वह व्रत रख लेते हैं। लेकिन कुछ भी करने से पहले उसके बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए। इसलिए आज हम आपके लिए लायें हैं, निर्जला एकादशी की व्रत कथा।
स्वर्ग पाने के लिए रहना ही पड़ेगा एकादशी का व्रत:
बहुत पहले की बात है। एक बार पंडू के पुत्र भीमसेन से श्रील वेदव्यास जी से पूछा, “हे परमपूज्य विद्वान पितामह, मेरे परिवार के सभी लोग एकादशी का व्रत करते हैं और वो लोग मुझे भी करने के लिए कहते हैं। लेकिन मैं पुरे दिन भूखा नहीं रह सकता हूँ। कृपया आप मुझे बताएँ कि बिना उपवास किये कैसे एकदशी का फल पाया जा सकता है।“
श्रील वेदव्यास जी ने कहा, “हे पुत्र भीमसेन, अगर तुम्हें स्वर्ग जाने की इच्छा है और तुम्हें नर्क से डर लगता है तो हर माह में पड़ने वाली दोनों एकादशी का व्रत तुम्हें करना ही पड़ेगा। यह सुनकर भीमसेन ने कहा कि यह तो मुझसे नहीं हो पायेगा। तो श्रील वेदव्यास जी ने उन्हें बताया कि, “अगर तुम हर महीने की एकादशी का व्रत नहीं कर सकते तो तुम ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी का व्रत करना।
पुरे साल का फल मिलता है एकसाथ:
उसे निर्जला एकादशी कहते हैं। उस दिन अन्न तो क्या, जल भी ग्रहण नहीं करना होता है। एकादशी का व्रत करने के बाद अगले दिन प्रातः काल उठकर जल और स्वर्ण का दान करना। यह करने के उपरांत अपना व्रत खोलने के लिए ब्राह्मणों और परिवार के साथ अन्न ग्रहण करना। उसके बाद ही अपने व्रत को विश्राम देना।
जो व्यक्ति एकादशी के सूर्योदय से लेकर द्वादशी के सूर्योदय तक निर्जल रहकर व्रत करता है, उसे पुरे साल में पड़ने वाली सभी एकादशियों का फल एक साथ मिलता है। यह सुनकर भीमसेन ने निर्जला एकादशी का व्रत रहना शुरू कर दिया और अपने सभी पापों से मुक्त हो गए। उसी समय से हर व्यक्ति निर्जला एकादशी रहकर अपने सभी पापों से मुक्ति पाने लगे।