यहां मर्द खुद करता है अपनी औरत की दलाली, प्रेरणा समाज की महिलाओं का दिन रात से शुरू होता है
दिल्ली के बाहरी इलाके में बसता है प्रेरणा समाज, इस समुदाय की आजीविका का मुख्य साधन है देह व्यापार। घर के खर्च के लिए पुरुष महिलाओं पर निर्भर रहते हैं। इस बात से इस इस समुदाय को कोई समस्या नहीं है, बल्कि उनका तो मानना है कि औरतें इसीलिए बनी हैं। लेकिन इस समाज में इससे भी अजीब बात ये है कि कोई महिला इस बात के खिलाफ नहीं सोचती और ना ही झिझकती है, वो भी इसकी आदती बन चुकीं हैं।
अपनी पत्नियों के इस गोरख धंधें में उनके पति उनकी सहायता ही नहीं करते बल्कि वो तो अपनी पत्नियों को इसके लिए प्रेरित भी करतें हैं। ये भी कैसी विडम्बना है, है ना? यहाँ जब किसी लड़की की शादी हो जाती है, तो वो यह जानती है कि अब उसे उसका पति पैसे कमाने के लिए ऐसे पेशे में धकेल देगा और वह इस बात से सहमत भी है। वो सोचती है यही तो रिवाज़ है और इसके खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाती।
प्रेरणा समुदाय की महिलाओं का दिन रात से शुरू हो जाता है।
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पैसिफिक स्टैण्डर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, इनमे से एक औरत रानी जिसकी 17 साल की उम्र में शादी कर दी गयी। वह सुबह 2 बजे अपने घर से काम के लिए निकल लेती है। भीड़ में रस्ता बना कर निकलती, पुलिस से छुपती और ग्रहक ढूंढती है। वो ऐसा इसलिए नहीं करती है कि वेश्यावृत्ति गैरकानूनी है, बल्कि वो उनसे अपने पैसे बचाने और उन्हें मुफ्त सुविधाएं देने से बचने के लिए ऐसा करती है।
एक अच्छा दिन तभी माना जाता है, जब ये सुबह 7 बजे तक 5 ग्राहकों से कमा लें। वापस घर आते वक़्त वो अपने 6 बच्चों और पति के लिए नाश्ता बनाती है। फिर दोपहर का खाना और रात का कहना बनाने के बाद थोड़ी नींद ले कर वो फिर ग्राहकों की तलाश में तड़के ही निकल जाती है।
दूसरी औरत जिसका नाम होरबाई था, जिसके माँ-बाप की मौत के बाद उसके चाचा-चची ने उसकी शादी करा दी। उसकी होने वाली दुर्दशा उसके शादी के कार्ड पर ही लिखी थी, जिससे वो भली-भाँती परिचित थी और इसे अपना नसीब मान चुकी थी, क्योंकि सबके साथ यही तो होता आया है। हालाँकि उसके पति का निधन हो गया, जो कि अच्छा ही हुआ क्योकि इससे वो खुलकर अपने बच्चों की शिक्षा पर खर्च कर सकती थी। वो दिन रात अपनी देह बेच-बेच कर अपने बच्चियों को पढ़ाती रही ताकि उन्हें इस दलदल में न रहना पड़े।
इस समुदाय का कुछ हिस्सा होरबाई की तरह ही सोचने वाला है जो अपने बछो को पढ़ा-लिखा कर आत्मनिर्भर बनाना चाहता है वही कुछ के बच्चे अपनी माँ के ही नक़्शे-कदम पर चल रहे हैं।
होरबाई की बड़ी बेटी जो की 12 साल की है , संवाददाता बनना चाहती है तो उनकी 10 साल की छोटी बेटी अभिनेत्री बनने का शौक रखती है। दोनों ही अपने अपने हुनर के लिए क्लासेज करती है जो एक नॉन-प्रॉफिट वकालत संगठन जिसका नाम अपने आप वुमन वर्ल्डवाइड है द्वारा दी जाती है। यह संस्था वैश्याओं के बच्चों को वैकल्पिक हुनर सिखाने का कार्य करती है।
अपने बच्चों को अपने गलत धंधों से बचाने के लिए और सही रास्ते पर ले जाने का इनका दृढ़ विश्वाश अपने आप में ही एक साबुत है कि ये भी इस काम से उतनी ही घृणा करती हैं, जितना की हम और आप।
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