नीरज चोपड़ा की तरह 37 साल पहले सरनाम भी भाला फेंक में लाए थे गोल्ड, नहीं मिली वैसी प्रसिद्धि
नीरज चोपड़ा इन दिनों सोशल मीडिया पर सबके चहेते हीरो बने हुए हैं। इसकी वजह उनके द्वारा टोक्यो ओलंपिक में जीता गया भाला फेंक स्वर्ण पदक है। इसी के साथ वे गोल्ड जीतने वाले पहले भारतीय एथलीट भी बन गए हैं। आज के सोशल मीडिया के जमाने में खेल में शानदार प्रदर्शन करने वालों को बहुत प्यार और फेम मिल रहा है। लेकिन गुजरे जमाने में हालात कुछ और ही थे। अब फतेहाबाद के अई गांव के रहने वाले सरनाम सिंह को ही ले लीजिए।
सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी सरनाम सिंह ने 37 साल पहले 1984 में नेपाल में आयोजित पहले दक्षिण एशियाई खेलों (पूर्व सैफ गेम्स) में भाला फेंक में स्वर्ण पदक हासिल किया था। हालांकि तब उन्हें वह मान, सम्मान और आर्थिक मदद नहीं मिली थी जैसी आजकल के एथलीट को मिल रही है। नीरज चोपड़ा की जीत पर सरनाम सिंह कहते हैं कि गांव में रहने वाले बच्चों के अंदर अंतराष्ट्रीय स्पर्धाओं में गोल्ड हासिल करने की काबिलियत होती है। हमे बस उनकी प्रतिभा तराशने की आवश्यकता है।
सरनाम सिंह का कहना है कि वह गांवों में मुहिम चलाएंगे जिसके अंतर्गत हुनरमंद बच्चों को खोजकर उन्हें प्रशिक्षण दिया जाएगा। सरनाम को उम्मीद है कि इस मुहिम से चंबल के बीहड़ से भी नीरज जैसे गोल्ड जीतने वाले खिलाड़ी बाहर निकलेंगे।
सरनाम सिंह जब 20 साल के थे तभी (1976 में) सेना की राजपूत रेजीमेंट में भर्ती हो गए थे। छह फीट दो इंच लंबे सरनाम सिंह सेना में करीब चार साल तक बास्केटबाल खिलाड़ी भी रह चुके हैं। उनके साथ जवानों ने सरनाम की कद-काठी देख उन्हें एथलीट बनने का सजेशन दिया। ऐसे में सरनाम ने बास्केटबाल छोड़कर भाला फेंकने की प्रैक्टिस स्टार्ट कर दी।
इसके बाद सरनाम ने 1982 के एशियाई खेलों में ट्रायल दिया, यहां वह चौथे पायदान पर आए। हालांकि प्रैक्टिस के दौरान उनका हाथ चोटिल हो गया था जिसके चलते वे 6 महने तक अभ्यास से दूर रहे थे। फिर वह पल आया जब उन्होंने स्वर्ण पदक भारत के नाम किया। यह 1984 में नेपाल में हुए पहले दक्षिण एशियाई खेलों की बात है। गोल्ड हासिल करने के बाद भी वे रुके नहीं और 1985 में गुरुतेज सिंह के 76.74 मीटर के राष्ट्रीय रिकार्ड को तोड़ डाला। इस दौरान उन्होंने 78.38 मीटर भाला फेंक एक नया राष्ट्रीय रिकार्ड कायम किया।
सरनाम सिंह ने और भी कई स्पर्धाओं में भाग लिया। जैसे 1984 में मुंबई में आयोजित ओपन नेशनल गेम्स में वे दूसरे स्थान पर आए। वहीं 1985 में जकार्ता में हुए एशियन ट्रैक एंड फील्ड प्रतियोगिता में उन्होंने 5वां स्थान हासिल किया। इसके बाद 1989 में दिल्ली में हुए एशियन ट्रैक एंड फील्ड प्रतियोगिता में भी वे अपने हुनर का जलवा दिखाते नजर आए।
सरनाम सिंह बताते हैं कि 1985 में जब उन्होंने राष्ट्रीय रिकार्ड बनाया था तो मैदान में मौजूद एक कुलपति ने उत्तर प्रदेश सरकार के सचिव से बोला था कि ‘इस लड़के ने रिकार्ड बनाया है, इसे एक हजार रुपए का इनाम दे देना।’ हालांकि यह इनाम की राशि उन्हें आज तक नहीं मिल पाई है।
सरनाम सिंह की निजी लाइफ में भी कई दिक्कतें रही हैं। जैसे एक साल पहले एक रंजिश के चलते उन्हें अपना गांव छोड़कर धौलपुर आना पड़ा था। दरअसल वे भलोखरा गांव के माध्यमिक विद्यालय में लगभग दो दर्जन बच्चों को ट्रेनिंग दे रहे थे। उनके प्रशिक्षण में एक लड़का तो 70 मीटर तक भाला फेंक रहा था। यदि सही संसाधन उपलब्ध कराए जाते तो उसकी परफॉरमेंस और भी बेहतर हो सकती थी। लेकिन प्रैक्टिस के दौरान उसका हाथ टूट गया था।
सरनाम सिंह अब एक बार फिर गांव लौटने का इंतजार कर रहे हैं। यदि ऐसा नहीं हुआ तो वे धौलपुर के गांवों से बच्चों को खोजकर भाला फेंकने की ट्रेनिंग देंगे।