जानिए क्या होता है गंगा दशहरा और क्या है इसकी महिमा, क्यों मनाते हैं लोग?
हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार गंगा हिमालय से निकलकर धरती पर ज्येष्ठ महीने की शुक्ल पक्ष की दशमी को आयी थीं। धर्म ग्रंथो के अनुसार राजा सागर के 1000 पुत्रों की आत्मा की शांति के लिए राजा भागीरथ ने उत्तम व्रत का अनुष्ठान किया, इसके बाद नदियों में श्रेष्ठ गंगा धरती पर आयीं। माँ गंगा ने धरती पर आने के बाद सबसे पहले हरिद्वार में विश्राम किया।
आज भी की जाती है उस जगह पर ब्रह्मा जी की पूजा:
जिस स्थान पर माँ गंगा ने विश्राम किया था आज उसे ब्रह्मकुंड के नाम से जाना जाता है। उस जगह पर ब्रह्मा जी की पूजा की जाती है। जब गंगा नदी हिमालय में रहती थी, तब उनकी पूजा केवल देवता और सप्तऋषि की करते रहे। लेकिन धरती पर आने के बाद सभी ने उनकी पूजा शुरू कर दी और वह सभी के लिए मोक्षदायिनी बन गयीं।
उस दिन बने थे 10 तरह के योग:
माँ गंगा पृथ्वी के लिए ज्येष्ठ माहीने की शुक्ल पक्ष की दशमी को हस्त नक्षत्र में निकली थीं। स्कन्द पुराण में उस दिन के बारे में कहा गया है कि उस दिन 10 तरह के योग बन रहे थे, इसलिए इस दिन को दशहरा कहा गया है। उस दिन बनने वाले 10 योग इस प्रकार थे- ज्येष्ठ मास, शुकल पक्ष, दशमीं तिथि, बुधवार, हस्त नक्षत्र, गरकरण, आनंदय योग, कन्या का चन्द्रमा, वृष का सूर्य व व्यतिपात।
इसी दिन श्रीराम ने किया था पुल निर्माण का कार्य प्रारंभ:
भले ही यह सभी योग हर साल ना हो, लेकिन फिर भी इस दिन को गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है। भगवान राम लंका पर चढ़ाई करने के लिए रामेश्वरम में इसी दिन पुल निर्माण का काम शुरू किया था। माँ गंगा पृथ्वी के हर जीव का कल्याण करती हैं, इसलिए उन्हें माता गंगा, गंगा मैय्या, माँ गंगा आदि नामों से पुकारा जाता है।
स्नान करने से कट जाते हैं इंसान के सभी पाप:
गंगा नदी में स्नान करने से और उनकी जय-जयकार बोलने से व्यक्ति के सभी पाप कट जाते हैं। ऐसा कहा जाता है गंगा नदी में स्नान करने से गोदान, अश्वमेघ यज्ञ तथा सहस्त्र वृषभ दान करने के बराबर अक्षय फल की प्राप्ति होती है। जैसे सूर्य के प्रकाश से समस्त पृथ्वी का अन्धकार दूर होता है, ठीक वैसे ही गंगा नदी में स्नान करने से मनुष्य के मन का अंधकार दूर होता है। साथ ही वह कई प्रकार के रोगों से मुक्त रहता है।