गरीबी एक ऐसी जंजीर है जिसकी जकड़ आसानी से नहीं छूटती। यह ना तो सपने पूरे करने देती है और ना ही इंसान को आगे बढ़ने देती है। एक ऐसा ही किस्सा दो बहनों का जो देश के लिए हॉकी खेलने की तमन्ना रखती है लेकिन गरीबी ने सारे सपने तोड़ दिए। न सिर्फ गरीबी बल्कि पिता की मौत ने भी दोनों बहनों को अंदर तक तोड़ दिया। हम बात कर रहे हैं शाहपुर हलके की प्रेई पंचायत के परसेल गांव की नेशनल हॉकी खिलाड़ी रिया और रश्मि की, जो देश के लिए मेडल जीतने की ख्वाहिश रखती है।
बता दें, हॉकी खिलाड़ी रिया और रश्मि चार बार नेशनल खेल चुकी है। गरीबी रेखा के नीचे के (बीपीएल) परिवार से संबंध रखने वाली 20 वर्षीय रिया और 17 वर्षीय रश्मि देश के लिए खेलना चाहती हैं। रिया और रश्मि की छोटी बहन नेहा दसवीं में पढ़ती। यह तीनों बहन अपनी मां के साथ स्लेटपोश मकान के एक कमरे में रहती है। साल 2016 में पिता की मौत होने के बाद मानों इस परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा हो। बेटी रिया के मुताबिक, पिता प्रभात सिंह की बीमारी से मौत हो गई। वहीं सरकारी से मदद के नाम पर 10 हजार रुपए ही मिले थे। दोनों बहनों के मुताबिक प्रभात सिंह की जमा पूंजी उनके इलाज में खर्च हो गई। इसके साथ बची पूंजी दोनों बहनों की कोचिंग पर खर्च कर दी गई। मां कल्पना का कहना है कि, रिया स्पोर्ट्स हॉस्टल माजरा व रश्मि ने साईं धर्मशाला में हॉकी की बारीकियां सीखी थी लेकिन उन्हें पैसों की कमी के कारण स्पोर्ट्स हॉस्टल नहीं भेज पा रही है। जानकारी के मुताबिक, मां कल्पना मनरेगा में मजदूरी कर बेटियों का पालन पोषण कर रही हैं।
तमन्ना देश के लिए खेलने की है। मेडल जीतने की, लेकिन पिता की मौत ने सारे सपने तोड़ दिए। शाहपुर की प्रेई पंचायत की ये प्रतिभावान बहनें चार बार नेशनल लेवल पर खेल चुकी हैं। लेकिन अब गरीबी ने इनके सपनों की उड़ान रोक दी है।@mygovhimachal @CMOFFICEHP @JagranNews https://t.co/mrJbCHVH1y pic.twitter.com/6GhKlVpRwl
— Rajesh Sharma (@sharmanews778) August 7, 2021
एक ही कमरे में रहते हैं सारे लोग
तीनों बहने अपनी मां के साथ स्लेटपोश घर के एक ही कमरे में रहती हैं। इस कमरे में शौचालय तक की सुविधा भी नहीं है। वैसे तो इस परिवार का नाम बीपीएल सूची में शामिल है लेकिन अभी तक इन्हें ना तो घर मिला है और ना ही शौचालय की सुविधा प्राप्त हुई है। कल्पना देवी के मुताबिक, “पति प्रभात सिंह के गुजरने के बाद मैं ही अपनी बेटियों का सहारा हूं।। जैसे तैसे इनकी पढ़ाई करवा रही हूं, मेरे पति हॉकी खिलाड़ी थे तो उन्होंने बेटियों को भी हॉकी के गुर सिखाएं। मेरी बेटियां दो बार नेशनल खेल चुकी है और आगे भी खेलना चाहती हैं लेकिन अधिक पैसे ना होने के कारण मैंने अपनी बड़ी बेटी रोमा की शादी करवा दी। मैं अब रिया रश्मि व नेहा का ही पालन पोषण का जुगाड़ कर सकती हूँ..।”
पिता ने सिखाई हॉकी की बारीकियां
रिया और रश्मि ने बताया कि, “हमारे पिता प्रभात सिंह एक अच्छे हॉकी खिलाड़ी थे। हमने उन्ही से ही हॉकी की एबीसी सीखी। जब हमारे पिताजी जिंदा थे तो हमें किसी भी कोच की जरूरत नहीं थी। हमने बचपन से ही खिलोने की जगह हॉकी थाम ली थी और अपने पिताजी से ही कोचिंग सीखी और नेशनल खेल पाई। पिता के गुजरने के बाद अब कोई सहारा नहीं मिल पा रहा है।”