शिव जी को क्यों कहते हैं ‘भोलेनाथ’। जानिए इनसे जुड़ी कहानियां…
भगवान भोलेनाथ से जुड़ी ये रोचक कहानियां पता होनी चाहिए आपको। जानिए क्यों होती शिवलिंग की आधी परिक्रमा...
सावन का महीना चल रहा है और इस महीने को लेकर हिन्दू धर्म में काफ़ी मान्यताएं है। हिन्दू धर्म में भगवान शिव को अनादि, अनंत, अजन्मा माना गया है यानि उनका न कोई आरंभ है न अंत है। न उनका जन्म हुआ है, न वह मृत्यु को प्राप्त होते हैं। इस तरह भगवान शिव अवतार न होकर साक्षात ईश्वर हैं। भगवान शिव को कई नामों से पुकारा जाता है। कोई उन्हें भोलेनाथ तो कोई देवाधि देव महादेव के नाम से पुकारता है। वे महाकाल भी कहे जाते हैं और कालों के काल भी।
इतना ही नहीं भगवान शिव को मृत्युलोक का देवता माना जाता है। ब्रम्हा जी सृष्टि के रचयिता, विष्णु को पालनहार और भगवान शंकर संहारक है। ये केवल लोगों का संहार करते हैं। भगवान भोलेनाथ संहार के अधिपति होने के बावजूद भी सृजन का प्रतीक हैं। वे सृजन का संदेश देते हैं। हर संहार के बाद सृजन शुरू होता है।
इसके अलावा पंच तत्वों में शिव को वायु का अधिपति भी माना गया है। वायु जब तक शरीर में चलती है, तब तक शरीर में प्राण बने रहते हैं। लेकिन जब वायु क्रोधित होती है तो प्रलयकारी बन जाती है। जब तक वायु है, तभी तक शरीर में प्राण होते हैं। शिव अगर वायु के प्रवाह को रोक दें तो फिर वे किसी के भी प्राण ले सकते हैं, वायु के बिना किसी भी शरीर में प्राणों का संचार संभव नहीं है।
बता दें कि सावन के इस खास माह में भोलेनाथ की विशेष पूजा आराधना होती है, जिसमें उनका जलाभिषेक किया जाता है। सावन के महीने में भगवान शिव को उनकी हर प्रिय चीजों को अर्पित किया जाता है। इस माह में भगवान भोलेनाथ जल्द प्रसन्न होकर सभी तरह की मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। सावन के महीने में भगवान शिव मात्र जल, फूल, बेलपत्र और भांग-धतूरा से ही प्रसन्न हो जाते हैं। इस पवित्र माह में शिव भक्त कांवड़ यात्राएं निकालकर प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में भगवान शिव का गंगाजल से जलाभिषेक करते हैं। सावन के पवित्र महीने में आइए जानते हैं भगवान शिव और शिवमंदिर से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियां…
शिवलिंग हमेशा मंदिर के बाहर ही स्थापित होता है…
बता दें कि भगवान शिव ऐसे अकेले देव हैं जो गर्भगृह में नहीं होते हैं। भगवान शिव अपने भक्तों का विशेष ध्यान रखते हैं और उनके दर्शन दूर से ही सभी लोग जिसमें बच्चे, बूढ़े, आदमी और महिलाएं सभी कर सकते हैं। भगवान शिव थोड़े से जल चढ़ाने मात्र से ही प्रसन्न हो जाते हैं।
शिवलिंग की ओर ही नंदी का मुंह क्यों?…
अगर हमनें सही से किसी शिव मंदिर को गौर किया हो। तो किसी भी शिव मंदिर में हमें पहले शिव के वाहन ‘नंदी’ के दर्शन होते हैं। शिव मंदिर में नंदी देवता का मुंह शिवलिंग की तरफ होता है। नंदी शिवजी का वाहन है। नंदी की नजर अपने आराध्य की ओर हमेशा होती है। नंदी के बारे में यह भी माना जाता है कि यह पुरुषार्थ का प्रतीक है।
शिवजी को बेलपत्र चढ़ाने का विधान क्यों?
पौराणिक कथाओं के अनुसार जब देवताओं और दैत्यों के बीच समुद्र मंथन चल रहा था तभी उसमें से विष का घड़ा भी निकला। विष के घड़े को न तो देवता और न ही दैत्य लेने को तैयार थे। तब भगवान शिव ने इस विष से सभी की रक्षा करने के लिए विषपान किया था। विष के प्रभाव से शिव जी का मस्तिष्क गर्म हो गया। ऐसे समय में देवताओं ने शिवजी के मस्तिष्क पर जल उड़लेना शुरू किया जिससे मस्तिष्क की गर्मी कम हुई। बेल के पत्तों की तासीर भी ठंडी होती है इसलिए शिव जी को बेलपत्र भी चढ़ाया गया। इसी समय से शिवजी की पूजा हमेशा जल और बेलपत्र से की जाती है। बेलपत्र और जल से शिव जी का मस्तिष्क शीतल रहता और उन्हें शांति मिलती है। इसलिए बेलपत्र और जल से पूजा करने वाले पर शिव जी प्रसन्न होते हैं।
शिव को भोलेनाथ क्यों कहा जाता है?…
बता दें कि जैसा कि हम सभी जानते है कि भगवान शिव को कई नामों से पुकारा और पूजा जाता है। भगवान शिव को भोलेनाथ कहा जाता है। भोलेनाथ यानी जल्दी प्रसन्न होने वाले देव। भगवान शंकर की आराधना और उनको प्रसन्न करने के लिए विशेष साम्रगी की जरूरत नहीं होती है। भगवान शिव जल, पत्तियां और तरह -तरह के कंदमूल को अर्पित करने से ही जल्द प्रसन्न हो जाते हैं। इसलिए उन्हें ‘भोलेनाथ’ कहा जाता है।
शिवलिंग की आधी परिक्रमा क्यों?…
शिव मंदिर में भगवान भोलेनाथ के दर्शन और जल चढ़ाने के बाद लोग शिवलिंग की परिक्रमा करते हैं। शास्त्रों में शिवलिंग की आधी परिक्रमा करने के बारे में कहा गया है। शिवलिंग की परिक्रमा हमेशा जलाधारी के आगे निकले हुए भाग तक जाकर फिर विपरीत दिशा में लौट दूसरे सिरे तक आकर परिक्रमा पूरी करें। इसे शिवलिंग की आधी परिक्रमा भी कहा जाता है।