ये 4 राज्य होना चाहते हैं भारत से अलग! देश में 79 साल बाद फिर उठी ‘द्रविडनाडु’ की मांग!
नई दिल्ली – भारत से आजादी अब सिर्फ कश्मीरियों की मांग नहीं रही। सोशल मीडिया पर देश के टुकड़े करने की आग एक बार फिर फैलने लगी है। 79 साल पहले की गई द्रविड़नाडु देश की कल्पना अचानक से जाग उठी है। दक्षिण भारत के चार राज्यों में भारत से आजादी की मांग सिर उठाने लगी है। दरअसल, द्रविड़नाडु शब्द सोमवार को पूरे दिन टि्वटर पर ट्रेंड करता रहा। दक्षिण भारत के चार राज्य – तमिलनाडु, केरल, आंध्रप्रदेश और कर्नाटक के लोगों ने 79 साल पहले भी देश से अलग होने की मांग की थी। पहले ये मांग सिर्फ तमिलभाषी क्षेत्रों के लिए थी। लेकिन, बाद में इसमें अन्य राज्य भी शामिल हो गए। Voice for new country dravidanadu.
क्या है द्रविड़नाडु का इतिहास –
अगर, बात द्रविड़नाडु के इतिहास की करें तो साल 1916 में टीएम नायर और राव बहादुर त्यागराज चेट्टी ने जस्टिस पार्टी का गठन किया था। जिसने साल 1921 में स्थानीय चुनावों में जीत हासिल की और ये एक राजनीतिक पार्टी बन गई। जस्टिस पार्टी साल 1920 से लेकर साल 1937 तक मद्रास प्रेसीडेंसी में सत्ता में रही। ईवी रामास्वामी यानी पेरियार ने साल 1944 में जस्टिस पार्टी का नाम बदलकर ‘द्रविड़ कड़गम’ कर दिया। ‘द्रविड़ कड़गम’ पार्टी ने ही पहली बार द्रविड़नाडु (द्रविड़ों का देश) बनाने की मांग रखी थी। यहीं से द्रविड़नाडु देश के लिए आंदोलन शुरू हुआ। इस आंदोलन में उत्तर भारतीय आर्यों से अलग दक्षिण भारतीय द्रविड़ों के लिए द्रविड़नाडु की मांग की गई।
कैसे शांत हुआ था आंदोलन –
साल 1940 में जस्टिस पार्टी यानि ‘द्रविड़ कड़गम’ पार्टी के नेता पेरियार ने द्रविड़नाडु की मांग को लेकर एक नक्शा जारी किया, जिसमें तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम यानी द्रविड़भाषी लोगों के लिए अलग देश की मांग रखी गई थी। द्रविड़नाडु की मांग 40 से 60 के दशक में खूब चर्चा में रही, लेकिन जब अंग्रेजी की जगह हिंदी को मातृभाषा घोषित किया गया तो द्रविड़ों का आंदोलन और उग्र हो गया। हजारों लोगों को जेल में डाला गया और हजारों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। लेकिन, देश में मातृभाषा हिंदी के बजाय अंग्रेजी को तवज्जों देकर नेहरू ने देश के टुकड़े होने से बचा लिए।
फिर क्यों उठ रही है द्रविड़नाडु की मांग –
सोमवार को ट्विटर पर #dravidanadu टॉप ट्रेंड करता रहा। इस हैशटैग के साथ हजारों लोगों ने देश में द्रविड़नाडु की शांत आग को फिर से चिंगारी देने का काम किया। दरअसल, यह मांग इसलिए उठ रही है क्योंकि कुछ ही दिन पहले ही मोदी सरकार ने पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण अधिनियम की एक धारा में बदलाव करते हुए मवेशियों की खरीद और बिक्री संबंधी नियमों को कड़ा कर दिया है। इसी नियम का दक्षिण भारत में विरोध हो रहा है। लोगों का कहना है कि अगर मोदी सरकार हमारे खान-पान और अन्य सांस्कृतिक मामलों में हस्तक्षेप कर रही है तो इससे बेहतर है कि हमें इस देश से अलग कर दिया जाये।