शिवलिंग पर दूध अर्पित करने के पीछे जुड़ी है ये कथा, शिवपुराण में मिलता है इसका उल्लेख
शिव की पूजा करते हुए इन्हें दूध जरूर चढ़ाया जाता है। मान्यता है कि शिव जी को दूध अर्पित करने से हर कामना पूर्ण हो जाती है। हालांकि क्या आपने कभी सोचा है कि क्यों शिव जी को दूध इतना पसंद है और इनकी पूजा दूध के बिना क्यों अधूरी मानी जाती है? शिवलिंग पर दूध अर्पित करने से एक कथा जुड़ी हुई है। इस कथा का उल्लेख भागवत पुराण और शिव पुराण में किया गया है और आज हम आपको यहीं कथा बताने जा रहे हैँ। तो आइए पढ़ते हैं इस कथा को।
समुद्र मंथन से जुड़ी कथा
कथा के अनुसार दैत्यराज बलि ने तीनों लोकों पर अपना कब्ज कर लिया था। जिससे इन्द्र सहित देवतागण भयभीत हो गए। इस स्थिति के निवारण के लिए ये सभी विष्णु के पास पहुंचे। इन्होंने विष्णु जी से मदद मांगी। तब भगवान मधुर वाणी में बोले दैत्य, असुर एवं दानव का प्रकोप बढ़ रहा है और वो तुमसे ज्यादा बलवान हो गए हैं। ऐसे में तुम दैत्यों से मित्रता कर लो और क्षीर सागर से मथन कर उसमें से अमृत निकालकर पी लो। दैत्यों की सहायता से ये कार्य आसानी से हो जाएगा। इस कार्य के लिए उनकी हर शर्त मान लो और अन्त में अमृत पीकर तुम अमर हो जाओगे। ऐसा करने से तुम्हें दैत्य नहीं मार सकेंगे।
विष्णु जी की बात को मानते हुए देवता दैत्यों के पास गए और उनसे मिलकर समुद्र मंथन करने को कहा। समुद्र मंथन करते हुए सबसे पहले विष निकला। उस विष की ज्वाला से सभी देवता और दैत्य जलने लगे। तब इन्होंने भगवान शंकर से प्रार्थना की कि वो ये विष ग्रहण कर लें। दरअसल केवल भगवान शिव के पास ही इस विष की तीव्रता को सहने की ताकत थी।
उनकी प्रार्थना पर महादेव ने विष को हथेली पर रख लिया और उसे पी गए। किन्तु उसे कण्ठ से नीचे नहीं उतरने दिया। विष के प्रभाव से शिव जी का कण्ठ नीला पड़ गया। वहीं उनकी हथेली से थोड़ा सा विष पृथ्वी पर टपक गया था जिसे साँप, बिच्छू आदि विषैले जन्तुओं ने ग्रहण कर लिया।
दूध से कम हुई विष की तीव्रता
ये विष शिव और शिव की जटा में विराजमान देवी गंगा पर घातक प्रभाव डालने लगा। इस प्रभाव को कम करने के लिए देवताओं ने इन पर जल अर्पित किया। ताकि जल की शीतलता से विष का प्रभाव कम किया जा सके। जल चढ़ाने से विष का प्रभाव कम होने लगा। इसके बाद सभी देवताओं ने महादेव से दूध ग्रहण करने का आग्रह किया। ताकि विष का प्रभाव एकदम खत्म हो जाए।
भोले शंकर ने दूध ग्रहण किया जिससे विष की तीव्रता काफी कम हो गई। लेकिन उनका गला यानि कि कंठ हमेशा के लिए नीला हो गया और उन्हें नीलकंठ के नाम से जाना जाने लगा। तब से ही शिवलिंग पर दूध चढ़ाने की परंपरा चली आ रही है। कहते हैं कि दूध भोले बाबा का प्रिय है और उन्हें सावन के महीने में दूध से स्नान कराने पर सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
इसलिए सोमवार के दिन और सावन के दौरान शिव की पूजा करते हुए उन्हें दूध जरूर अर्पित किया जाता है।