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रिलो ओलंपिक की हार के बाद वेटलिफ्टिंग छोड़ने वाली थी मीराबाई चानू, मां ने सुनाई संघर्ष की कहानी

23 जुलाई से टोक्यो ओलंपिक 2020 की शुरुआत हो चुकी है. इसके अगले ही दिन यानी कि 24 जुलाई को भारत की बेटी मीरा बाई चानू ने सिल्वर मैडल अपने नाम कर इतिहास रच दिया और करोड़ों भारतीयों को गौरवान्वित करने का काम किया है. हर ओर मीरा बाई चानू के नाम की ही चर्चा हो रही है. बता दें कि मीरा बाई ने 202 किग्रा वजन उठाकर रजत पदक अपने नाम किया.

mira bai chanu

गौरतलब है कि यह ओलंपिक का 32वां संस्करण है. जहां मीरा बाई ने 49 किलोग्राम महिला वर्ग के वेटलिफ्टिंग इवेंट में यह ऐतिहासिक उपलब्धि अपने नाम की है. उन्हें इस ऐतिहासिक जीत पर देश भर से बधाईयां और शुभकामनाएं मिल रही हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित देश की बड़ी फ़िल्मी हस्तियों ने भी उन्हें सिल्वर मेडल अपने नाम करने पर शुभकामनाएं दी है. वहीं इसी बीच मीरा बाई की मां ने सभी को मीरा के कड़े संघर्ष और उनकी मेहनत से परिचित करवाया है.

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मीरा बाई चानू की मां टोंबी देवी ने अपनी बेटी और अपने पुराने दिनों को याद किया है और बताया है कि कैसे उन्होंने यहां तक का सफ़र तय किया है. मीरा बाई की मां के मुताबिक़, मीरा जंगल में लकड़ियां बिनने के लिये पास के जंगल में करीब आधा एकड़ दूर तक जाती थी. उनका बचपन बेहद गरीबी में बीता है.

बता दें कि, मीरा बाई चानू ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीतने वाली 5वीं खिलाड़ी बनीं हैं. उनकी इस जीत पर देशभर से जहां उन्हें आम व्यक्ति से लेकर ख़ास लोग तक खूब बधाई दे रही हैं और उन पर गर्व कर रहे हैं तो वहीं इस मौके पर उनकी 60 वर्षीय मां टोंबी देवी, उनके पिता सहित परिवार के 5 रिश्तेदार साइखोम रंजन, रंजना, रंजिता, नानव और सनातोंबा अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख सके.

टोंबी देवी ने बेटी की ऐतिहासिक जीत के बाद कहा कि उनके 6 बच्चे है और 6 बच्चों में सबसे छोटी मीराबाई है. मीरा बाई के पिता मनिपुर के पब्लिक वर्क विभाग में करते थे. मीरा बाई चानू एक माध्यम वर्गीय परिवार से संबंध रखती है और उनकी परवरिश सीमित साधनों के बीच हुई है. मीरा बाई की मां उनके पिता का हाथ बंटाने के लिए और 6 बच्चों को पालने के लिए चाय की एक दुकान से दूसरी दुकान पर काम करती थी.

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मीरा बाई की मां के मुताबिक़, मीरा वेटलिफ्टर नहीं बल्कि एक तीरंदाज बनना चाहती थी. उनकी मां कहती है कि, ”मीराबाई ने अपने दोस्तों और पड़ोसियों से वेटलिफ्टिंग सेंटर का पता कर लिया था और जब उन्होंने शारीरिक और बाकी के टेस्ट पास कर लिये तो उन्हें मौका मिला. वह एक नैचुरल वेटलिफ्टर नजर आ रही थी.” बता दें कि, मीरा बाई ने शुरुआत में वेटलिफ्टिंग की ट्रेनिंग एशियन मेडलिस्ट अनीता चानू की कोचिंग में ली है.

मीरा बाई इससे पहले साल 2014 में कॉमनवेल्थ गेम्स में सिल्वर पदक जीत चुकी है. साल 2016 में 192 किग्रा का भार उठाकर कुनजरानी के 12 साल पुराने नेशनल रिकॉर्ड को तोड़कर नया कीर्तिमान स्थापित किया था. फिर उन्हें रियो ओलंपिक में क्वालीफाई करने का अवसर प्राप्त हुआ. हालांकि उनके लिए यह ओलंपिक बुरे सपने की तरह साबित हुआ और वे साफ तरीके से वजन उठा पाने में नाकाम रही और क्वालिफाई नहीं कर पाई.

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इस घटना के बाद मीरा बाई चानू काफी परेशान हो गई थी और यह खबर जब उन तक पहुंची तो वे बेहोश हो गई थी. इस बुरे समय में उनकी मां ने उन्हें संभाला और उन्हें हिम्मत बंधाई. मीरा वेटलिफ्टिंग तक छोड़ने वाली थी, हालांकि मां के समर्थन, साहस और त्याग के कारण वे संभल कर खड़ी हुई और अब कड़ी मेहनत और संघर्ष से टोक्यो ओलंपिक 2020 में सिल्वर मेडल जीतकर इतिहास रच दिया.

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