दिल्ली के जंतर-मंतर पर किसानों द्वारा ‘किसान संसद’ लगाई गई और इन्होंने अपने बीच में से ही एक स्पीकर, एक डिप्टी स्पीकर व एक कृषि मंत्री की नियुक्ती की। जिसके बाद कृषि कानून पर चर्चा की गई। चर्चा करते हुए नियुक्त हुए कृषि मंत्री से सवाल किए गए। जिसका जवाब वो दे न सके और अंत में इस्तीफा दे दिया। सिंघु बॉर्डर से जंतर-मंतर पहुंचे किसानों ने करीब 11.20 बजे ये संसद लगाई। जो कि करीब 5 बजे खत्म हुई। जिसके साथ ही किसान संसद का सत्र सोमवार तक के लिए स्थगित कर दिया गया।
सरकार द्वारा पारित किए तीन कृषि कानून के विरोध में दिल्ली के जंतर-मंतर पर किसानों द्वारा प्रदर्शन किया जा रहा है। विरोध दर्ज करवाने के लिए किसानों ने ये अनोखा तरीका निकाला और जंतर-मंतर पर ‘किसान संसद’ का आयोजन किया। किसान संसद में शुक्रवार की कार्यवाही संसद के कामकाज की तरह ही हुई। जिसका मानसून सत्र चल रहा है।
किसान संसद में हरदेव अर्शी को स्पीकर, जगतार सिंह बाजवा को डिप्टी स्पीकर और रवनीत सिंह बरार (37) को किसान मंत्री बनाया गया। 200 किसान प्रतिनिधियों की संसद में जमकर हंगामा हुआ। कृषि मंत्री चुने गए किसान नेता रवनीत सिंह बराड़ विपक्ष के सवालों से घिरे रहे। जवाब देने में नाकाम रहे। जिसके कारण आखिरीकार अपने पद से इस्तीफा दे दिया। संसद में अपने इस्तीफे की पेशकश करते हुए इन्होंने कहा कि वो किसानों के मुद्दे हल करने में नाकाम रहे और उन्हें कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे सके। इसलिए ये पद छोड़ रहे हैं।
कृषि मंत्री बनें पंजाब यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र रवनीत सिंह बराड़ ने किसान संसद पर कहा कि एक दिन के लिए किसान संसद में मंत्री बनाए जाने पर बेहद खुश हुआ। लेकिन सदस्यों के सवालों का जवाब देना मुश्किल हो गया तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया। सदस्य बार-बार दोहरा रहे थे कि न तो उनकी आय दोगुना हुई है और न ही सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के लिए कोई कानून बनाया। मंडी कानूनों पर भी सदस्यों ने असहमती जताई और मंत्री से इस्तीफे की मांग पर अड़ गए।
कृषि कानून मानने से किया मना
इस दौरान किसान प्रतिनिधियों ने केंद्र सरकार के कानून को सिरे से खारिज कर दिया। साथ ही केंद्रीय मंत्री मीनाक्षी लेखी के बयानों की भी आलोचना की। दरअसल मीनाक्षी लेखी ने एक प्रेस वार्ता में कहा कि वे किसान नहीं हैं। वे मवाली हैं। ये आपराधिक कृत्य है। 26 जनवरी को जो हुआ वह भी शर्मनाक और आपराधिक गतिविधि थी। इनके इस बयान का विरोध भी किसान संसद में किया गया।
आखिर में शाम को किसान संसद का सत्र सोमवार सुबह तक के लिए स्थगित कर दिया गया। सोमवार की किसान संसद में सिर्फ महिलाएं हिस्सा बनेंगी। 200 महिला किसान प्रतिनिधियों पर सत्र के संचालन से लेकर हर गतिविधि तक की जिम्मेदारी होगी। ये महिलाएं भी किसान कानून पर चर्च करेंगी और अपना पक्ष रखेंगी।
गौरतलब है कि सरकार द्वारा पारित किए गए तीन कृषि कानूनों का विरोध किसान कर रहे हैं और इन्हें वापस लेने की मांग पर अड़े हैं। किसान इन कानूनों के विरोध में कई महीनों से धरने पर बैठे हैं।