गौत्र प्रणाली की वज़ह से भारत में कोरोना से कम हुई मौत। वैज्ञानिकों ने माना इसे तर्कसम्मत…
कोरोना काल में भी यह स्पष्ट हुआ कि गोत्र प्रणाली है वैज्ञानिक और तर्कसम्मत...
यूँ तो कोविड-19 का अपना कोई धर्म नहीं है लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि कोविड धर्मनिरपेक्ष है। कोविड कोई भारतीय संविधान थोड़े न जो उसे धर्मनिरपेक्ष कहा जाएं। जी हाँ अगर आंकड़ों को देखा जाए तो इस्लामिक देशों में संक्रमण और मृत्यु दर भारत जैसे देशों के मुकाबले काफ़ी अधिक है। भारत में मुख्य रूप से हिंदू, कोरोना वायरस की दूसरी लहर को प्रबलता के साथ झेलते दिखे।
महामारी के चरम पर भी भारत में मृत्यु दर मुख्य रूप से ईसाई देश अमेरिका की तुलना में छह गुना कम देखी गई। ऐसे में सवाल यही उठता है कि क्या मौत के कम आंकड़ों में गोत्र व्यवस्था ने योगदान दिया? आज जानेंगे हम इसी बात को, लेकिन उससे पहले जान लेते हैं कि क्या होता है गोत्र व्यवस्था? और कैसे गोत्र व्यवस्था ने हिन्दुओं को कोरोना जैसी महामारी से काफी हद तक बचाया? आइये जानते है इसी विषय को विस्तार से…
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, टेक्नोलॉजी एंड डेवलपमेंट स्टडीज (CSIR) के डॉ शिव नारायण निषाद ने हाल ही में एक खुलासा किया कि कोविड -19 से मृत्यु दर कई देशों में एक समान है, परन्तु भारत में अभी भी यह सबसे कम है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि भारत जहां बहुसंख्यक जनसंख्या हिन्दू है। यहां कोरोना से मौत के आंकड़े बाक़ी देशों से कम क्यों? क्या इसके पीछे का कारण हिन्दू धर्म की परम्पराएं और मान्यताएं हैं। जो सदियों से चली आ रही? सवाल यह भी। इन सवालों के जवाब भी तलाशेंगे, लेकिन पहले गोत्र व्यवस्था क्या होती। वह समझते हैं।
गौत्र व्यवस्था क्या है?…
बता दें कि हिंदू संस्कृति में, गोत्र का अर्थ कुल या वंश होता है। यदि दो व्यक्तियों का गोत्र एक समान है तो इसका अर्थ ये है कि वो दोनों एक ही कुल में जन्में हैं। यदि गोत्र एक है अर्थात वे एक ही पूर्वज की उत्पति हैं, ऐसे में वो दो लोग भाई-बहन के रिश्ते में बंध जाते हैं।
आम तौर पर, हिंदू धर्म एक ही परिवार में या एक ही कुल में शादी करने की अनुमति नहीं देता है, और अगर कोई ऐसा करता है तो उसे कौटुम्बिक व्यभिचार (Incest) कहा जाता है। परंतु किसी लड़के और लड़की का गोत्र अलग है और जाति समान है तो वो दोनों शादी के बंधन में बंध सकते हैं। इस प्रकार, हजारों साल पहले ही हिंदू समाज में एक ही गोत्र से शादी नहीं करना धीरे-धीरे एक मौखिक कानून बन गया है।
तो, क्या यह कहना व्यावहारिक होगा कि वैदिक सभ्यता के दौरान विकसित गोत्र प्रणाली, जो अपने ही गोत्र में विवाह को प्रतिबंधित करती है, उससे वैज्ञानिक रूप से आनुवंशिक बीमारियों का जोखिम कम होता है? क्या यह प्रणाली हिंदुओं को कोरोना जैसे घातक महामारी में भी बाकि लोगों की तुलना में अधिक immune बनाती है? खैर, 10 वीं कक्षा के जीव विज्ञान का ज्ञान रखने वाला व्यक्ति भी समझ सकता है कि आखिर ऐसा क्यों है।
वैसे मालूम हो कि प्राचीन भारतीय परंपरा के अनुसार हिंदू धर्म की सभी जातियों में गोत्र पाए जाते हैं। इनका नामकरण प्राय: किसी न किसी ऋषि के नाम से हुआ। कुछ गोत्रों के नाम ‘कुलदेवी’ के नाम पर भी प्रचलित हुए। सामान्य रूप से गोत्र का मतलब कुल अथवा वंश परंपरा से है। संस्कृत व्याकरण के जनक महर्षि पाणिनि की अष्टाध्यायी में एक सूत्र आता है ‘अपात्यं पौत्रप्रभृति गोत्रम्’ अर्थात् गोत्र शब्द का अर्थ है बेटे के बेटे के साथ शुरू होने वाली संतान।
गोत्र व्यवस्था का वैज्ञानिक आधार…
बता दें कि गोत्र व्यवस्था प्रमुख रूप से हिंदुओं में अंत:प्रजनन यानी इनब्रीडिंग (Inbreeding) होने से रोकती है। हालाँकि आनुवंशिक विकृति (Genetic Defects) के लिए इनब्रीडिंग सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं है। यह सिर्फ समयुग्मकता (Homozygosity) की आवृत्ति (frequency) को बढ़ाता है। समयुग्मकता (Homozygosity) उस स्थिति को कहते हैं जिसमें एक ही व्यक्ति में identical alleles of a gene पाए जाते हैं।
यौन प्रजनन (Sexual Reproduction) से जब नई प्रजाति का जन्म होता है तो वो अपने जनक से भिन्न होते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस प्रक्रिया में नर और मादा के बीच यौन संबंध से बनने वाले भ्रूण में दोनों के ही DNA होते हैं। जिस वजह से शिशु में दोनों के गुण पाए जाते हैं। शिशु का DNA नर और मादा के DNA से मिलकर बनता है तो ऐसे में जीन में म्युटेशन होता है और प्रकृति में विविधता बनी रहती है जो नेचर को बैलेंस करने के लिए जरुरी भी है।
मनुष्य के लिए आनुवंशिक परिवर्तन (Hereditary Change) का काफी महत्व है और इसका जिम्मेदार जेनेटिक मटेरियल होता है। जेनेटिक मटेरियल में म्युटेशन अच्छा भी है और बुरा भी। अगर ये अच्छा होता है तो नई पीढ़ी शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होती है और उसमें कई नए गुण विकसित होते हैं लेकिन अगर यही म्युटेशन गलत हुआ तो नई पीढ़ी में कुछ ऐसे असमान्य बदलाव होते हैं जो उसे बीमार या जीवन भर के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से ‘अपाहिज’ बना देते हैं।
एक ही गोत्र में विवाह करने ने दुष्प्रभाव…
चूंकि हिंदू धर्म में एक ही गोत्र के होने के कारण लड़का-लड़की भाई बहन हो जाते हैं। भाई बहन होने के कारण शादी की बात करने को भी पाप माना जाता है। यही कारण है कि तीन गोत्र छोड़कर शादी करने की बात कही जाती है। पहला गोत्र खुद का, दूसरा मां का और फिर दादी का और फिर नानी का। हिंदू धर्म में एक ही गोत्र में शादी करने की अनुमति नहीं दी जाती है। एक ही गोत्र के होने के कारण गुण सूत्र एक जैसे होते हैं। समान गुण सूत्र होने के कारण शादी करने से कई तरह ही समस्याएं पैदा हो सकती हैं। इस तरह के विवाह से पैदा हुए संतान में कई तरह के रोग और कई तरह के अवगुण पाए जाते हैं। इसलिए एक ही गोत्र में शादी न करनी की बात कही जाती है।
गोत्र व्यवस्था पर हुए शोध…
वैसे देखा जाएं तो गोत्र व्यवस्था का सिर्फ हिन्दुओं द्वारा ही पालन किया जाता है। इसी कारण से इस्लाम और इसाई धर्मों के अनुयायियों में इनब्रीडिंग होने की सम्भावना होती है। मुस्लिम बहुल देशों में सजातीय विवाह (Consanguineous Marriages) का प्रचलन अधिक है, और सऊदी अरब जैसे देशों में यह अनुपात लगातार बढ़ रहा है। सऊदी अरब में होने वाली सभी शादियों में से लगभग आधी शादियां चचेरे भाइयों के साथ होती हैं। कतर और संयुक्त अरब अमीरात जैसे इस्लामी देशों में भी यह संख्या समान रूप से अधिक है। ऐसे में अभी तक तो आप समझ गए होंगे कि गोत्र व्यवस्था क्या है? और इनके वैज्ञानिक आधार क्या है? अब हम बात इसको लेकर हुए शोध की करते हैं।
बता दें कि वर्ष 2017 में, हैदराबाद के सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (Center for Cellular and Molecular Biology) ने बताया कि मृत्यु दर और रुग्णता दर (Morbidity Rates) आम तौर पर अपने ही खून के रिश्तेदारों से विवाह या यौन संबंध के कारण बढ़ जाती है। इसके अलावा, यह भी बताया गया है कि रक्तसंबंधता (Consanguinity) कई बीमारियों का कारण है। जैसे कि हृदय रोग, multiple sclerosis, अवसाद, अस्थमा और PID। अब कोरोना वायरस की ही बात की करे। तो इस साल कई मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से बताया गया कि कैसे कोरोना वायरस के कारण इस्लामिक देशों में दूसरे देशों की तुलना से कई गुणा अधिक मृत्यु हो रही है।
विदेशों से प्राप्त रिपोर्ट एवं आकड़े…
फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम और इज़राइल की रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि इन देशों में COVID-19 महामारी के कारण मुस्लिम समुदायों में होने वाली मौतें, COVID-19 मृत्यु दर से होने वाली मौतों से बहुत अधिक है। वहीं विदेशी न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स की माने तो सब सहारा अफ्रीकन (Sub-Saharan Africa) देश में पैदा हुए फ्रांसीसी निवासी के बीच फ्रांसीसी मूल के निवासियों की तुलना में 4.5 गुना अधिक मौतें दर्ज की गई। इंग्लैंड में, कोविड (COVID-19) से होने वाली मौतों के आंकड़ों से पता चलता है कि वहां रहने वाले मुसलमान सबसे ज्यादा प्रभावित समुदाय हैं। ब्रिटेन में रहने वाले मुसलमानों की मृत्यु दर देश में रहने वाले ईसाइयों की तुलना में दोगुनी है। इस बीच इज़राइल में पिछले महीने स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा प्रकाशित अध्ययन से पता चला है कि इज़राइली अरबों में कोरोना वायरस की मृत्यु दर पूरे इज़राइली आबादी की तुलना में तीन गुना अधिक है।
वही कॉगप्रिन्ट डॉट ओआरजी (Cogprints.org) में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, मुस्लिम समुदाय में कुल विवाहों में से 13.56 फ़ीसदी सजातीय (Consanguineous) श्रेणी में आते हैं। हिंदुओं में यह संख्या 5.04 फ़ीसदी तो वहीं ईसाइयों में यह 1.08 प्रतिशत ही है। हालाँकि, अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में सजातीय (Consanguineous) विवाह की अवधारणा सामाजिक रूप से अधिक स्वीकार्य है। कुछ रिपोर्टों से पता चलता है कि कुछ देशों में ईसाइयों में सजातीय (Consanguineous) विवाहों की वास्तविक दर 15 फ़ीसदी तक हो सकती है।
हालाँकि, यह स्पष्ट है कि गोत्र क्या है व इसका पालन क्यों करना चाहिए और पालन नहीं करने वाले लोगों को घातक महामारी के आगे घुटने टेकने की अधिक संभावना रहती है। ऐसे में कहीं न कहीं अगर भारत में कोरोना की वजह से कम मौतें हुई। तो उसके लिए जिम्मेदार हिन्दू धर्म की गोत्र प्रणाली है। वैसे भी सनातन धर्म में जितने भी नियम क़ानून हैं। वह कहीं न कहीं विज्ञान सम्मत है और एक बार फ़िर इस बात को बल मिला है।