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मोदी कैबिनेट विस्तार के बाद विपक्ष की स्थिति खिसयानी बिल्ली जैसे हो गई है। जानिए कैसे?…

मंत्रियों का इस्तीफ़ा कोई लोकतांत्रिक इतिहास में पहली बार नहीं, मोदी सरकार का एक ही लक्ष्य सबका साथ, सबका विश्वास...

मोदी 2.0 में बीते दिनों बड़ा फेरबदल हुआ। जी हां राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 43 नेताओं को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। वहीं, मोदी मंत्रिमंडल में हुए फेरबदल को लेकर विपक्षी दलों के नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाने पर लेते हुए घेरा है। मालूम हो कि शपथ ग्रहण के पूर्व करीब दर्जन भर केंद्रीय मंत्रियों ने अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को सौंपा। जिसके बाद से ही विपक्ष मोदी सरकार और इस्तीफा देने वाले मंत्रियों को मोहरा बनाकर अपनी राजनैतिक ज़मीन तलाशने की कोशिश शुरू कर दी है। रविशंकर प्रसाद, प्रकाश जावड़ेकर, डॉ. हर्षवर्धन के अलावा और कई अन्य मंत्रियों के इस्तीफ़े को लेकर विपक्ष लगातार चुटकी ले रहा है।

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कांग्रेस के महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला ने मोदी कैबिनेट में हुए फेरबदल को लेकर तंज कसते हुए कहा कि, ”खराबी इंजन में है और बदले डिब्बे जा रहे है! यही तो है ‘दुर्दशाजीवी मोदी मंत्रिमंडल’ के विस्तार की सच्चाई!” साथ ही उन्होंने कहा कि, ”कोविड-19 के आपराधिक कुप्रबंधन के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण जिम्मेदार है। इसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं। क्या पीएम अपनी नाकामियों की जिम्मेदारी लेंगे? या पीएम डॉ हर्षवर्धन को ही विफलताओं के लिए बलि का बकरा बनाएंगे?”


वहीं समाजवादी पार्टी के आईपी सिंह ने ट्वीट कर कहा कि, ”जिस आदमी को खुद पद छोड़ देना चाहिए, वो अपनी नाकामी छुपाने के लिए दूसरे मंत्रियों से इस्तीफा ले रहें हैं। सिर्फ एक इस्तीफे की जरूरत है, सरकार भी सुधर जाए और देश भी।


कैबिनेट विस्तार पर कांग्रेस सांसद मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा है कि, ”कई दलितों, पिछड़ी जातियों को मंत्री बनाया जा रहा है। वे ऐसा चुनाव के बिंदु से कर रहे हैं। ऐसा लोगों का ध्यान भटकाने के लिए किया जा रहा है। वे समुदायों के कल्याण के लिए नहीं, बल्कि अपनी मजबूरी के कारण ऐसा कर रहे हैं।”


एनडीए के मंत्रिमंडल विस्तार पर चुटकी लेने में पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता पी चिदंबरम भी पीछे नहीं रहें और उन्होंने कहा कि, ”केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री और स्वास्थ्य राज्य मंत्री का इस्तीफा एक स्पष्ट स्वीकारोक्ति है कि मोदी सरकार महामारी के प्रबंधन में पूरी तरह विफल रही है। इन इस्तीफे में मंत्रियों के लिए एक सबक है। अगर चीजें सही होती हैं, तो इसका श्रेय प्रधानमंत्री को जाएगा और अगर चीजें गलत हुईं, तो मंत्री पतनशील व्यक्ति होंगे। यह वह कीमत है, जो एक मंत्री निहित आज्ञाकारिता और निर्विवाद अधीनता के लिए चुकाता है।”


कुछ भी हो और विपक्ष चाहें जो भी कहें। लेकिन एक बात तो सत्य है कि मोदी सरकार ने लगातार जनहितकारी कार्य किए हैं। उसमें कोई दो राय नहीं हैं। रही बात मंत्रियों के इस्तीफ़े की। तो उसके पीछे सरकार ही ख़राब होने का तर्क विपक्ष का बचकाना लगता है। मोदी सरकार के कई सारे काम है। जिनको आँखों पर पट्टी बांधकर भुलाया नही जा सकता। कोरोना काल में मोदी सरकार ही ऐसी रही, कि जिसने वैक्सीन विदेशों में मदद के लिए भेजी। उज्ज्वला योजना, एक देश- एक राशन कार्ड, आत्मनिर्भर भारत कितने सारे काम हैं। जो कोरोना काल में ही हुए है। फ़िर इंजन ही ख़राब होने की बात कहां से आ गई?

वहीं विपक्ष को यह पता होना चाहिए, कि रविशंकर प्रसाद, प्रकाश जावड़ेकर और हर्षवर्द्धन जैसे जिन मंत्रियों के इस्तीफ़े को आधार बनाकर मोदी सरकार को बदनाम किया जा रहा। उन मंत्रियों ने कई अच्छे काम भी किए है। डॉ. हर्षवर्धन का पोलियो उन्मूलन अभियान की रूपरेखा तैयार करने में विशेष योगदान रहा है। तो वहीं रमेश पोखरियाल निशंक ने संस्कृति से जुड़ी किताबें लिखी है, अनुभव की उनमें कमी नहीं। बशर्तें अब स्वास्थ्य उनका साथ नहीं दे रहा। इतना ही नहीं रविशंकर और जावेडकर भी कोई कमतर नेता नहीं।

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ऐसे में इन मंत्रियों के इस्तीफ़े के पीछे संगठनात्मक रणनीति भी हो सकती। उसे क्यों दरकिनार किया जा रहा? दूसरी बात मंत्रियों के इस्तीफे कोई पहली बार नहीं हुए हैं। यह हर सरकार में होते आया है। तीसरी बात यह है कि मोदी को चिंता विपक्ष के बेवज़ह प्रपंच की नहीं, बल्कि देश की है इसलिए उन्होंने नौजवानों की टीम खड़ी की है। बता दें कि मोदी हुकूमत ने सात साल में सबसे यंग और हाइली एजुकेटेड टीम को तैयार की है। नए मंत्रीमंडल में 13 वकील, 6 डॉक्टर और 5 इंजीनियर हैं। जबकि 7 पूर्व सिविल सर्वेंट हैं। यानी 43 शपथ लेने वालों में 31 हाईली एजुकेटेड मिनिस्टर हैं।

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मोदी की नई टीम के वज़ीरों की औसतन उम्र 58 साल है। 14 मंत्री ऐसे हैं जो 50 साल से कम हैं। वहीं 11 महिला सांसद है। यह सब एक बदलाव का नतीजा है और वैसे भी बदलाव तो प्रकृति का नियम है। फ़िर मंत्री का इस्तीफ़ा हुआ तो इसका मतलब यह तो नहीं कि सरकार ही कमज़ोर है, हो सकता है कि सरकार और संगठन का विज़न कुछ बड़ा हो। इसके लिए कई मंत्रियों के इस्तीफे लिए गए हो। ऐसे में विपक्ष को संयम से काम लेना चाहिए और कई बार सकारात्मक होकर सोचना चाहिए, सिर्फ़ उतावलेपन से कुछ नहीं होता। यह विपक्ष कब समझेगी?

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