जिस परिवार के सदस्य ने देश के लिए दी अपने प्राणों की आहुति, आज वही परिवार दर-दर रहा भटक…
पुलवामा में शहीद हुए इस सैनिक का परिवार आज पाई पाई का हो रहा मोहताज़, कोई नहीं सुनने को तैयार..
हर व्यक्ति की कहीं न कहीं यह दिली ख्वाहिश होती है कि वह देशहित के लिए कुछ न कुछ करें। ऐसे में अनगिनत लोग देशसेवा के लिए सेना में शामिल होते हैं। देश की रक्षा में शामिल होने वाले ये सैनिक ख़ुशी-ख़ुशी अपने प्राणों की आहुति देने से भी कभी नहीं कतराते। यह लगभग हर परिवार के लोगों को पता होता है कि अगर उनके परिवार का कोई सदस्य सेना में शामिल हो रहा है। तो कभी भी उसके साथ कोई अनहोनी हो सकती है, लेकिन फ़िर भी देशसेवा का यह जुनून किसी भी परिवार का कम नही होता, बल्कि देशसेवा में शहीद होने को लोग बहुत बड़ा काम समझते हैं।
देश की मिट्टी के लिए शहादत लोग हँसते हुए क़बूल करते है, लेकिन हम आपको यहां जो कहानी बताने जा रहें वह आपके रौंगटे खड़े कर देगी।
जी हां जो शहीद देश के लिए ख़ुशी-ख़ुशी अपने प्राण त्याग देता है। अगर उसके परिवार को न्याय न मिलें तो यह शर्म की बात है हमारे समाज और हमारी व्यवस्था के लिए। लेकिन क्या करें कई बार हमारी व्यवस्था और समाज इन बातों से मुँह मोड़ लेता है। फिर दुःख होता है। ऐसे में सोचिए उस परिवार पर क्या बीतती होगी? जिस परिवार का कोई व्यक्ति देश के लिए अपनी जान गंवा दें। फ़िर अगर उसे धरना देना पड़े तो काहें की व्यवस्था और काहें की सरकार? आइए जानते है क्या है पूरी कहानी…
बता दें कि यह कहानी आगरा के एक शहीद परिवार की है। जो परिवार अब धरने पर बैठा है। मालूम हो कि पुलवामा हमले में शहीद हुए कौशल रावत की शहादत के दौरान परिवार को कुछ धनराशि मिलनी थी लेकिन 2 साल बीत जाने के बाद भी परिवार तक ये पैसा नहीं पहुंचा।
इसी मामले में शहीद की पत्नी ममता का कहना है कि, “परिवार की आर्थिक सहायता के लिए शिक्षा विभाग, पुलिस और विकास कर्मियों ने एक-एक दिन वेतन दिया था, वह पैसा परिवार को मिलने की जगह मुख्यमंत्री राहत कोष में भेज दिया गया। दो साल से परिवार अपनी मांगों को लेकर मुख्यमंत्री से लेकर जिलाधिकारी कार्यालय तक चक्कर काट रहा है।
वहीं इसी मामले पर शुक्रवार को उप-मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा ने कहा कि सरकार से जितना हो सकता था, उतनी सहायता राशि दे चुकी है। जिलाधिकारी को शहीद के नाम पर द्वार बनवाने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा अगर परिवार हमसे शहीद प्रतिमा का अनावरण कराना चाहता है तो हमें आमंत्रित करे।
बता दें कि जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में फरवरी 2019 में आतंकी हमला हुआ था, जिसमें आगरा के सीआरपीएफ (CRPF) कौशल किशोर रावत समेत प्रदेश के 12 और कुल 40 जवान शहीद हुए थे। शहीद कौशल रावत के परिजनों का कहना है कि सरकार ने शहादत के समय जो वादे किए थे, वह दो साल बाद भी पूरे नहीं किए गए। शिक्षकों ने एक-एक दिन वेतन के रूप में 67.50 लाख रुपए एकत्र किया। जिसे शहीद परिवार की जगह प्रशासन ने मुख्यमंत्री राहत कोष में भेज दिया।
शहीद की पत्नी ममता ने प्रशासन पर आरोप लगाते हुए कहा कि अगर प्रशासन ने मांगें नहीं मानीं, तो वह आत्मघाती कदम उठाने के लिए मजबूर होंगी। उन्होंने कहा कि दो साल से डीएम से लेकर सीएम कार्यालय तक चक्कर काटते-काटते थक गई, लेकिन जो उनका हक है वो उन्हें नहीं मिल रहा।
अब ऐसे में सवाल कई उठते हैं। राज्य में सरकार किसी की भी हो, लेकिन उप मुख्यमंत्री ने जो बयान दिया वह कहीं न कहीं निंदनीय है। आख़िर कोई यह कैसे कह सकता है कि सरकार से जितना हुआ उतनी मदद की गई? क्या अब सरकारें सैनिक के प्राणों की आहुति को भी पैसे से तौलेंगी? यह अपने आपमें बड़ा सवाल है। जो सैनिक देश की रक्षा में अपने प्राण की आहुति देता है। उसके परिवार को सरकार और समाज को सिर-आँखों पर बैठाना चाहिए, लेकिन सरकार का यह रवैया ठीक नही।