संसद भवन के भीतर रंगदारी पर उतर आएं थे संजय गांधी तो कुछ यूं पासवान ने दूर की थी उनकी रंगदारी
28 सितंबर 2013 का वह दिन तो आप सभी को याद होगा। जब राहुल गांधी ने मनमोहन सिंह कैबिनेट द्वारा पारित एक अध्यादेश फाड़ दिया था।
साथ ही साथ आप सभी को यह भी पता होगा कि जिसे हम लोकतंत्र का मंदिर कहते हैं। वहां कितनी ड्रामेबाजी चलती है। कई बार लोकसभा टीवी पर संसद सत्र या सदन की कार्यवाही सुनो तो ऐसा लगता ही नही कि यही वो जगह जहां से देश चलता है। संसदीय कार्यवाही के दौरान आरोप-प्रत्यारोप तो चलता ही रहता है। साथ ही साथ वहां तू-तू-मैं-मैं भी सदस्यों के बीच काफ़ी होती है। आज हम संसद में हुए एक ऐसे ही दिलचस्प वाक़ये से आप सभी को रूबरू कराने जा रहें है। जिसे सुनकर आप भी चौंक जाएंगे कि हमारे देश की संसद में यह सब भी होता है।
जी हां आप सभी ने राम विलास पासवान का नाम तो सुना ही होगा, जिन्हें राजनीति का मौसम वैज्ञानिक भी कहा जाता था। बीते वर्ष ही उनका निधन हुआ था। राम विलास पासवान एक ऐसे नेता थे।
जो लगभग हर दल की सरकार का हिस्सा बनते थे। यह किस्सा उन्हीं से जुड़ा हुआ है। बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे और राजीव गांधी के छोटे भाई संजय गांधी ने बहुत कम उम्र में ही राजनीति में अपनी जगह बना ली थी। वह कांग्रेस पार्टी में न केवल एक दमदार नेता थे, बल्कि विपक्ष के लिए एक खौफ भी थे। देश के राजनीतिक परिदृश्य में कई ऐसी बड़ी घटनाएं हुई हैं, जिसमें संजय गांधी सीधे-सीधे जुड़े थे। वह स्वभाव से बहुत आक्रामक थे, लेकिन कई बार उनका यह आक्रामक रवैया उनके लिए मुसीबत बन जाता था।
कहा तो यहां तक जाता है कि देश में आपातकाल लगाए जाने के पीछे कहीं न कहीं इन्हीं का बड़ा हाथ था। इन्होंने ही मारुति कार उद्योग की स्थापना की थी। 1977 में कांग्रेस की हार के पीछे भी यही वजह बनें थे। साथ ही 1980 में अपनी पार्टी कांग्रेस को अपनी मां इंदिरा गांधी के नेतृत्व में फिर से सत्ता में पहुंचाने का श्रेय भी संजय गांधी को ही दिया जाता है। एक बार संसद के अंदर संजय गांधी का तत्कालीन लोकदल के वरिष्ठ नेता राम विलास पासवान से विवाद हो गया। 1980 के बजट सत्र के पहले दिन ही राम विलास पासवान सदन में बोल रहे थे। इसी दौरान पहली बार सांसद बने संजय गांधी व्यंग्यात्मक लहजे में लोकसभा चुनाव में विपक्ष की करारी हार को लेकर कुछ बोले। इस पर राम विलास पासवान ने उन्हें कड़ी चेतावनी दी।
रामविलास पासवान ने कहा कि, “ऐ संजय गांधी, हम 1969 में विधायक बने थे और अब दूसरी बार लोकसभा में आया हूं। इसलिए मुझसे तमीज से बात करो। मैं बेलछी में नहीं बल्कि देश की संसद में बोल रहा हूं और यहां रंगबाजी नहीं चलेगी। और अगर रंगबाजी ही करनी है तो बताओ, कहां फरियाना है चांदनी चौक में या कनाट प्लेस में?” इस पर मामला गरम हो गया और स्थिति बिगड़ने लगी। ऐसे में सदन में बैठी इंदिरा गांधी बीचबचाव के लिए आगे आईं। उन्होंने रामविलास पासवान से कहा, “रामविलास जी, आप वरिष्ठ हैं इसलिए संजय गांधी को माफ कर दीजिए। संजय तो न्यूकमर है और उसे अभी संसदीय परंपराओं के बारे में बहुत कुछ सीखना है।”
जिसके बाद लंच के दौरान इंदिरा गांधी ने रामविलास पासवान और संजय गांधी को आपस में मिलवाया और दोनों पक्षों का एक-दूसरे के प्रति गुस्सा खत्म कराया। मालूम हो कि संजय गांधी राजनीति में बहुत तेजी से उठे थे, लेकिन दुर्भाग्य से वह बहुत जल्दी ही दुनिया छोड़कर चले गए। 23 जून 1980 को एक विमान हादसे में उनका निधन हो गया। वहीं रामविलास उसके बाद भी लगातार केंद्र सरकार का हिस्सा बनते रहें फिर सरकार किसी भी दल की आएं-जाएं। उन्हें इससे फ़र्क नहीं पड़ा। बीते वर्ष अक्टूबर महीने में उन्होंने 74 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस ली। रामविलास पासवान की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि वो 6 अलग-अलग प्रधानमंत्रियों की कैबिनेट में बतौर केंद्रीय मंत्री रहे।