दीर्घायु बनाने वाला महामृत्युंजय मंत्र ऐसे बना था, यमराज ने शिवलिंग पर ही चला दिया था अपना पाश
हिन्दू धर्म में और शास्त्रों में कई मन्त्रों का उल्लेख किया गया है. इन्हीं मन्त्रों में से एक है महामृत्युंजय मंत्र. महामृत्युंजय मंत्र का हमारे शास्त्रों में काफी महत्त्व बताया गया है. महामृत्युंजय मंत्र के जाप से व्यक्ति को लंबी आयु प्राप्त होती है. साथ ही ये भी बताया गया है कि इस मन्त्र का जप करने वालो को यमराज भी कोई कष्ट नहीं देते हैं. महामृत्युंजय मंत्र को हर तरह के कष्ट हरने वाला कहा जाता है. महामृत्युंजय मंत्र के रोजाना जप करने से लोगों को कई तरह के फायदें मिलते है.
महामृत्युंजय मंत्र की उत्पत्ति के बारे में यह पौराणिक कथा प्रचलित है. इस कथा के अनुसार, शिव भक्त ऋषि मृकण्डु ने संतान प्राप्ति के लिए भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने ऋषि मृकण्डु को इच्छानुसार संतान प्राप्ति का वर तो दिया. इसके साथ ही शिव जी ने ऋषि मृकण्डु को बताया कि यह पुत्र अल्पायु ही होगा. इसके कुछ समय बाद ऋषि मृकण्डु को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. ऋषियों के मुताबिक उनकी संतान की उम्र केवल 16 साल ही थी. यह सुनते ही ऋषि मृकण्डु विषाद से घिर गए.
उन्हें ऐसा देख जब उनकी पत्नी ने उनसे दुःख का कारण पूछा तो उन्होंने पूरी बात बताई. इसके बाद उनकी पत्नी ने कहा कि शिव जी की कृपा होगी, तो यह विधान भी वे बदल देंगे. इसके बाद उन ऋषि ने अपने पुत्र का नाम मार्कण्डेय रखा और उन्हें शिव मंत्र भी दिया. मार्कण्डेय बचपन से ही शिव भक्ति में लीन रहते थे. जब समय बीत गया तो उन्होंने अपने पुत्र मार्कण्डेय को अल्पायु की बात बताई. इसके साथ ही उन्होंने कहा अगर शिव जी चाहेंगे तो इसे टाल देंगे.
माता-पिता के इस इस दुःख को देखकर उसे दूर करने के लिए मार्कण्डेय ने शिव जी से दीर्घायु का वरदान पाने के लिए शिवजी को प्रसन्न करने के लिए तपस्या भी शुरू कर दी. मार्कण्डेय जी ने दीर्घायु का वरदान महादेव से पाने के लिए शिवजी की आराधना के लिए महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और शिव मंदिर में बैठ कर इसका अखंड जाप करना शुरू कर दिया.
महामृत्युंजय मंत्र : ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
उनका समय होने पर मार्कण्डेय के प्राण लेने के लिए यमदूत उनके पास आए परन्तु उन्हें शिव की तपस्या में लीन देखकर वे वापस यमराज के पास लौट गए. उन्होंने यमराज को पूरी बात सुनाई. इसके बाद मार्कण्डेय के प्राण लेने के लिए यमराज स्वयं आये. यमराज ने जब अपना पाश मार्कण्डेय पर डाला, तो बालक मार्कण्डेय शिवलिंग से लिपट गए. इस तरह वह पाश गलती से शिवलिंग पर गिर गया. यमराज की इस आक्रामकता पर शिव जी को बहुत गुस्सा आया. ऐसे में मार्कण्डेय की रक्षा के लिए भगवान शिव खुद प्रकट हुए. इस पर यमराज ने विधि के विधान की याद दिलाई. ऐसे में शिवजी ने मार्कण्डेय को दीर्घायु का वरदान देकर उस विधान को ही बदल दिया.
ज्ञात हो कि महामृत्युंजय मन्त्र को (“मृत्यु को जीतने वाला महान मंत्र”) जिसे त्रयम्बकम मन्त्र भी कहा जाता है, यजुर्वेद के रूद्र अध्याय में, भगवान शिव की स्तुति हेतु की गयी एक वन्दना है. इस मन्त्र में शिव को ‘मृत्यु को जीतने वाला’ बताया गया है.