खुद की ही बेटी पर बुरी नज़र डाली थी लंकापति रावण ने, जिस के श्राप के वजह से हुआ उस का वध
भारत का सबसे बड़ा ग्रन्थ रामायण न सिर्फ लोगों को जीवन के मूल्य सिखाता है. बल्कि हमें कई तरह की सीख भी देता है. रामायण में हमने दो तरह के किरदार देखें जिन्होंने हमें यह बताया कि जीवन को किस तरह से आगे बढ़ाया जा सकता है. पहले पुरषों में उत्तम मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम. जिनके कर्मों और मर्यादा ने हमें एक संयमित जीवन जीना सिखाया. वहीं दूसरी तरफ था रावण जो सम्पति और तमाम ज्ञान होने के बाद भी अपने कर्मों की गति से मारा गया था.आज इसी रामायण से एक और प्रेरक प्रसंग हम आपको बताने जा रहे है. मिथिला नरेश जनक सीता माता के पिता थे. वह निसंतान थे उनकी कोई भी संतान नहीं थी. एक बार उन्हें धरती से एक बालिका मिली जिसे वह अपनी पुत्री मानकर लालन-पालन करने लगे.
स्वयंवर के दौरान उनकी पुत्री सीता, भगवान् श्रीराम की अर्धांगिनी बनीं. मगर असलियत में सीता रावण और मंदोदरी की बेटी थी. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह बनीं थी भगवान विष्णु की एक बड़ी उपासक वेदवती. सीता इन्हीं वेदवती का पुनर्जन्म बताई गई है. शास्त्रों के मुताबिक वेदवती बेहद सुंदर, सुशील और धार्मिक कन्या थीं. वह विष्णु उपासक होने के साथ-साथ उनसे ही विवाह करना चाहती थीं.
अपनी इच्छा पूर्ति के लिए सांसारिक जीवन छोड़ वेदवती उपवन में कुटिया बनाकर तपस्या में लीन हो गईं. इस दौरान एक दिन रावण वहां से गुजरा तो उनकी सुंदरता देखकर मोहित हो उठा. उसने अपनी पुरानी आदत के चलते वेदवती से दुर्व्यवहार करना चाहा, उसके इस व्यवहार से आहात होकर वेदवती ने हवन कुंड में कूदकर जान दे दी. मरने से पहले वेदवती ने रवां को श्राप दे दिया कि वो खुद रावण पुत्री के रूप में जन्म लेकर उनकी मृत्यु का कारण बनेंगी.
पौराणिक कथाओं की माने तो इस श्राप के कुछ समय बाद ही रावण की रानी मंदोदरी गर्भवती हो गईं थी. जिससे उन्हें एक पुत्री प्राप्त हुई थी. इस लड़की को वेदवती के श्राप का असर समझकर रावण ने उसे तुरंत ही सागर में फिंकवा दिया था. सागर में डूबती कन्या सागर देवी वरुणी को मिली, जिन्होंने उस बालिका को धरती की देवी पृथ्वी को सौंप दिया. धरती से वह राजा जनक और रानी सुनैना को प्राप्त हुई. कालांतर सीता के रूप में जानी और पूजी गईं. इसके बाद राम विवाह और पंचवटी में सीता के अपहरण के चलते श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई कर रावण का वध किया था.
गौरतलब है कि सीता मैया दिव्य स्वरूप मानी जाती हैं. कहा जाता है कि जब रावण उनके अपहरण के लिए आया, इसके पहले ही सीता माता ने अपना असली शरीर अग्निदेव को सौंप दिया था. माना जाता है कि अगर वास्तविक रावण सीताजी को बुरी निगाह से देखता तो वह वहीं भस्म हो जाता. यही एक बड़ी वजह थी कि अंत में भगवान राम ने अग्नि परीक्षा के रूप में माता सीता को अग्नि देवता से पुनः प्राप्त किया था , लेकिन धरती से उत्पन्न हुईं सीता माता अंत में उसी धरती में समा गईं थी. इसके साथ ही शास्त्रों में रावण के अंत के कई और कारण भी बताये गए है.