यहां बसा है यमराज का यमलोक, बड़ा ही शानदार और आलिशान है यमराज का राजमहल, देखें तस्वीर
हिन्दू धर्म में कई मान्यताएं और कई तरह के ग्रन्थ और पुराण है. इन्ही में से सबसे मशहूर है गरुड़ पुराण. गरुड़ पुराण को 18 महापुराण में से एक माना जाता है. लोक और परलोक के साथ ही गरुड़ पुराण में कई तरह की अहम् जानकारी दी गई है. यह एक अकेला ऐसा पुराण है जिसमे मृत्यु के बाद की स्थितियों का भी वर्णन दिया गया है. व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो तमाम लोग घर में गरुड़ पुराण का पाठ कराते हैं. कहा जाता है कि मरने के बाद 13 दिनों तक आत्मा उसी घर में रहती है.
इन सब बातों के अलावा भी इस महापुराण में ऐसी तमाम बातें बताई गई हैं जो सर्वसाधारण को धर्म के रास्ते पर चलने की प्रेरणा देती हैं. इसी वजह से आत्मा को गरुण पुराण का पाठ सुनाया जाता है. ऐसा करने से व्यक्ति को यमराज के दंड से मुक्ति मिलती है और सद्गति मिलती है. इसके साथ ही इसे सुनने से अन्य लोगोंं को भी धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है. व्यक्ति को कर्म के आधार पर गरुड़ पुराण में स्वर्ग और नर्क लोक मिलने की बात कही गई है.
इंसान के प्राण कैसे निकलते हैं, मरने के बाद आत्मा का क्या होता है, आत्मा कब और कितने समय के लिए यमलोक रहती है, इन सभी सवालों के जवाब आसानी से गरुड़ पुराण में प्राप्त होते है. इसलिए आज हम आपको मृत्यु के देवता यमराज के निवास स्थान यमलोक के बारे में कुछ बड़े तथ्य बताते है.
गरूड़ पुराण और कठोपनिषद में यमलोक के बारे में जिक्र करते हुए कहा गया है कि ‘मृत्युलोक’ के ऊपर दक्षिण में 86,000 योजन की दूरी पर यमलोक बना हुआ है. इसी वजह से दक्षिण दिशा का दीपक यमराज को समर्पित किया जाता है. योजन प्राचीन काल में दूरी नापने का एक यंत्र था. एक योजन 4 किलोमीटर के बराबर होता है.
शास्त्रों के मुताबिक यमराज के राजमहल का नाम ‘कालीत्री’ है और वे विचार भू नाम के सिंहासन पर विराजमान रहते हैं. यमराज अपने राजमहल में ‘विचार-भू’ नाम के सिंहासन में बैठते हैं. इसके साथ ही यमराज के महल में चार द्वार हैं. कर्मों के मुताबिक अलग द्वार से लोगों को प्रवेश होता है. पापी लोग दक्षिण दिशा से जाते है तो दान-पुण्य करने वाले लोगों का प्रवेश पश्चिमी द्वार से होता है. वहीं सत्यवादी और माता पिता व गुरुजनों की सेवा करने वाले लोग उत्तर दिशा से जाते है.
वहीं उत्तर वाले द्वार को स्वर्ग का द्वार माना जाता है. यहां गंधर्व और अप्सराएं आत्मा का स्वागत करने के लिए रहती हैं. आपको बता दें कि यमराज के सेवकों को यमदूत कहा जाता है. महाण्ड और कालपुरुष इनके दो रक्षक होते हैं. वहीं वैध्यत द्वारपाल होता है. वहीं दो कुत्ते यमलोक होते है. चित्रगुप्त का निवास भी यमलोक में होता है. चित्रगुप्त महाराज लोगों के कर्मों का लेखा जोखा अपने पास रखते है. चित्रगुप्त के भवन से 20 योजन की दूरी पर यमराज का महल होता है. यमराज के भवन का निर्माण विश्वकर्मा द्वारा किया गया है. यमराज की सभा में कई चन्द्रवंशी और सूर्यवंशी राजा मौजूद होते है.