अध्यात्म

तीरों की शैया पर लेटे हुए पितामाह ने युधिष्ठिर को बताये थे सफल जीवन के मूल मंत्र, आप भी जान लें

महाभारत इस नाम को और इसकी कहानी के अंश को देश का बच्चा-बच्चा जानता है. महाभारत को हिन्दुओं के कुछ बड़े ग्रंथों में से एक बताया गया है. महाभारत को जीवन का सार भी कहा जाता है. महाभारत को पांचवां वेद माना जाता है. प्रत्येक भारतीयों को इसे पढ़ना चाहिए. महाभारत में वह सब कुछ है, जो मानव जीवन में घटित होता है या होने वाला है. महाभारत में धर्म से लेकर राजनीति तक का ज्ञान होता है. आध्यात्मिक दृष्टी से भी यह ग्रंथ काफी ज्ञान से परिपूर्ण है.

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महाभारत की कथा हमें जीवन को जीने की कला भी सीखाती है. महाभारत की इतनी बड़ी कथा सिर्फ कौरवों और पाण्डवों तक ही सीमित नहीं है. महाभारत में राजनीति, समाज, जीवन, धर्म, देश, ज्ञान, विज्ञान आदि सभी विषयों से जुड़ा ज्ञान है. महाभारत एक ऐसा ग्रंथ है, जो हमें जीवन जीने का श्रेष्ठ मार्ग बतलाता है. हमारे जीवन के हर काल में महाभारत की शिक्षा काफी प्रासंगिक रही है. महाभारत की कथा लंबी आयु और उत्तम स्वस्थ्य के बारे में भी महत्वपूर्ण जानकारी देती है.

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महाभारत को पढ़ने के बाद इससे हमें जो शिक्षा या सबक प्राप्त होता है, उसे याद रखना भी बेहद ही जरूरी है. इस कहानी के हर एक पात्र की अपनी महत्वता है. जहां पूरी महाभारत पांडव और कौरवों के युद्ध के बीच घूमती है वहीं दूसरी और हमें कृष्ण भगवान की लीलाएं देखने को मिलती है. इस कहानी में एक और अहम् पात्र देखने को मिलता है वह है भीष्म पितामह. भीष्म पितामह के बिना महाभारत की कथा अधूरी ही है.

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महाभारत के आंरभ से उसके अंत तक की कथा में भीष्म पितामह की भूमिका बहुत ही अहम और प्रभावशाली रहती है. भीष्म पितामह के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपने जीवन के अंत तक धर्म का पालन किया था. ये तो सभी को पता है कि महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक चला था. भीष्म पितामह कौरवों की सेना के सेनापति थी. युद्ध के दौरान जब भीष्म पितामह के तीर पाण्डवों की सेना पर भारी पड़ने लगे तो पाण्डवों की सेना में खलबली मच गई. ऐसे में पांडवों के सैनिक भयभीत होने लगे. ऐसे में श्रीकृष्ण ने भीष्म पितामह से हाथ जोड़कर विनम्रता से उनकी मृत्यु का उपाय पूछा.

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शिखंडी बना भीष्म पितामह की मौत का कारण
उनकी मृत्यु का उपाय जानने के बाद अगले दिन पांडव युद्ध में शिखंडी को भीष्म के समाने खड़ा कर देते हैं. भीष्म शिखंडी को सामने देखकर अपने अस्त्र और शस्त्र तुरंत ही त्याग देते हैं. इसी बीच अर्जुन छिपकर भीष्म पितामह को तीरों के वार से छलनी कर देते हैं और ऐसे में युद्ध के दसवें दिन भीष्म पितामह तीरों की शैया पर लेटे हुए मिलते हैं. तीरों की शैया पर लेटे हुए पितामाह भीष्म युधिष्ठिर को ज्ञान प्रदान करते हैं और आयु और सेहत से जुड़ी इन 12 बातों का खुलासा करते है.

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पहला हमेशा मन को काबू में रखना. दूसरा यह, घमंड कभी नहीं करना. तीसरी यह कि, विषयों की तरफ बढ़ती इच्छाओं को रोकना. कटु वचन सुनकर भी उतर नहीं देना. किसी भी चोट पर शांत और अपना धैर्य बनाये रखना. अतिथि व लाचार को सदैव आश्रय देना. निन्दा रस से खुद को दूर रखना. नियमपूर्वक शास्त्र पढ़ना व सुनना. दिन में कभी नहीं सोना. दसवीं, स्वयं आदर न चाहकर दूसरों को सदैव आदर देना. क्रोध के वशीभूत नहीं रहना. अंतिम व बाहरवीं बात, स्वाद के लिए नहीं स्वास्थ्य के लिए भोजन करना.

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