एसडीएम ने क्यों माँगा भगवान का आधार कार्ड, जानिए विस्तार से…
पुजारी बेचने निकला फ़सल, तो एसडीएम ने मांग लिया भगवान का आधार कार्ड, जानिए क्या है मामला...
कई बार हमारे आसपास कुछ ऐसी घटनाएं घटित होती है। जो हमें अचंभित करती हैं। इन्हीं घटनाओं में कुछ ऐसी भी होती हैं। जो हंसने पर मजबूर कर देती हैं। तो कुछ ऐसी भी। जिसे देखने-सुनने के बाद समझ ही नहीं आता कि उसको लेकर कैसे रिएक्ट किया जाएं। ऐसा ही एक वाकया भगवान राम की जन्मभूमि उत्तरप्रदेश से निकलकर आ रहा है। पहली मर्तबा आप इस ख़बर के बारें में सुनेंगे तो सोच में पड़ जाएंगे कि आख़िर इसको लेकर क्या प्रतिक्रिया ज़ाहिर की जाएं। अब आप सोच रहें होंगे कि ऐसा क्या हो गया। जो उसके लिए कोई प्रतिक्रिया न सुझें। चलिए ज़्यादा देर बात को जलेबी जैसा गोल-गोल नहीं घुमाते। सीधा मुद्दे पर आएं तो उत्तर प्रदेश में फ़सल बेचने जा रहें एक पुजारी से एसडीएम ने “भगवान” का आधारकार्ड मांग लिया। अब समझ आ गया न कि क्यों हम कह रहे थे कि बात ऐसी है जिसपर कोई प्रतिक्रिया देते नहीं बनेगी।
जानकारी के लिए बता दें कि उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में पुजारी और कार्यवाहक परेशान हैं क्योंकि उन्हें मंदिरों और मंदिर मठों की भूमि पर उगाई जाने वाली फसलों की उपज बेचने के लिए उनको “देवताओं” के आधार कार्ड दिखाने को कहा गया है। जिले के सब डिविजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) सौरभ शुक्ला ने कहा है कि, “उन्होंने कुछ दिन पहले निर्देश जारी किए थे कि कृषि उपज की बिक्री के लिए ‘देवताओं’ का आधार कार्ड अनिवार्य है।” अब ऐसे में एसडीएम साहब के इस फ़रमान पर न हंसते बन रहा। न ही कोई अलग तरीक़े का रिएक्शन। जिस देश में सभी लोगों का ही आधार कार्ड न बना हो वहां भगवान का आधारकार्ड कैसे बनें अब सवाल उठता है तो सिर्फ़ इतना।
बता दें कि अट्टार्रा तहसील के खुरहर गांव में राम जानकी मंदिर के एक कार्यवाहक पुजारी के मंदिर की जमीन पर उगाई गई फसल को बेचने के लिए सरकारी मंडी पहुंचने के बाद ऑफबीट ऑर्डर सामने आया। लेकिन उसे डायट का आधार कार्ड बनाने के लिए कहा गया, जिसके नाम भूमि पंजीकृत किया गया था। इसी विषय पर राम जानकी मंदिर के महंत राम कुमार दास ने कहा कि, “मैंने सरकारी मंडी में फसलों की बिक्री के लिए ऑनलाइन पोर्टल पर पंजीकरण कराया था, जिसे हमने मंदिर की जमीन पर उगाया था और लेखपाल द्वारा सत्यापन की प्रतीक्षा कर रहा था। पंचायत चुनावों और सीओवीआईडी स्थिति के कारण हमने थोड़ा और इंतजार करने का फैसला किया, यह सोचकर कि अधिकारी चुनाव में व्यस्त रहे होंगे। चुनाव खत्म होने के बाद, जब मैंने पूछताछ की, तो लेखपाल ने मुझे बताया कि एसडीएम ने हमारे आवेदन को खारिज कर दिया है।”
अब ऐसे में महंत राम कुमार दास पूछते हैं कि, “हम भगवान का आधार कार्ड कहां से लाएं? अब, किसी के पास देवी-देवताओं का आधार कार्ड कैसे हो सकता है? मैंने एसडीएम से बात की कि जमीन के मालिक के लिए आधार कार्ड कैसे होना चाहिए। विकल्प मांगने पर, उन्होंने कहा कि हमें अपनी फसल अरथिया (कमीशन एजेंट) को बेचनी चाहिए। लेकिन अरथिया हमारी फसल को थोड़े से दाम पर खरीदेंगे।” इतना ही नहीं महंत का कहना है कि, “अगर हम मंडी में फसल नहीं बेच सकते हैं तो हम खर्च कैसे पूरा करेंगे और अपना भोजन कैसे प्राप्त करेंगे?”
यहां बता दें कि हो सकता कुछ लोगों को लग रहा हो कि भगवान का आधार कार्ड कोई कैसे मांग सकता है। यह मनगढ़ंत कहानी हो सकती। तो हम आपको पुख़्ता तौर पर बता दें कि यह बात सोलह आने सच है कि एसडीएम द्वारा भगवान का आधार कार्ड माँगा गया है। जिसकी पुष्टि एसडीएम शुक्ला ने ख़ुद की। उन्होंने वास्तव में यह कहते हुए आदेश दिया था कि सभी को फसलों की बिक्री के लिए आधार कार्ड बनाने की जरूरत है, चाहे वह मानव हो या देवता।
एसडीएम ने कहा कि, “चाहे वह इंसान हो या भगवान, अगर आप फसल बेचना चाहते हैं, तो आपको आधार कार्ड लाना होगा।” इतना ही नहीं जिला उर्वरक अधिकारी गोविंद कुमार दास ने भी देश की एक प्रतिष्ठित समाचार एजेंसी के हवाले से यह कहा है कि, “वे मंदिरों और मस्जिदों की भूमि पर उत्पादित फसलों की बिक्री की अनुमति तभी दे पाएंगे जब इसके लिए ऑनलाइन पंजीकरण पोर्टल में प्रावधान होगा।” उन्होंने आगे कहा कि अगर सरकार अनुमति देती है, तो हम निश्चित रूप से फसल खरीदेंगे। ऐसे में कहीं न कहीं अब अगर पुजारी को अपनी फ़सल बेचनी है तो भगवान का आधारकार्ड दिखाना होगा, वरना फ़सल बिकने से रह जाएगी।