नहीं थी पक्की सड़क, भरा था कीचड़ तो ब्याह रचाने ऐसे पहुंचा ससुराल। तस्वीरें देख आप भी कहेंगे यह कैसा है विकास…
आज़ादी के 73 सालों में हुए इस विकास को देख आप भी कह देगें, "तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है, मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है।"
हम कहने को तो 21वीं सदी में जी रहें हैं। देश की आजादी के भी 73 साल हो गए हैं। सरकारों का दावा भी होता है कि उसने प्रधानमंत्री सड़क योजना के माध्यम से गांव-गांव को पक्की सड़कों से जोड़ दिया है। इन सब के बावजूद भी एक ऐसा गांव भी है जहां पहुंचने के लिए आज़तक सड़क नहीं बन पाई है। ऐसे में गर्मी के दिनों में तो लोगों को आवागमन की कोई समस्या नहीं होती लेकिन, हल्की बारिश भी हो जाएं तो गांव के लोगों का बाहर निकलना मुश्किल भरा हो जाता है। ऐसे में एक पंक्ति याद आती है कि, “तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है, मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है। उधर जम्हूरियत का ढोल पीटे जा रहे हैं वो इधर परदे के पीछे बर्बरीयत है, नवाबी है।” जी हां सरकारी तंत्र के वादों और दावों पर यह पंक्ति सटीक बैठती है।
बता दें सोशल मीडिया पर एक तस्वीर जमकर वायरल हो रही, जो कहीं न कहीं सरकारी विकास की पोल-पट्टी खोलने का काम कर रही है। जी हां इस गांव के लोगों के लिए ज़रा सी बारिश भी बड़ी मुसीबत खड़ी कर देती है। जिस वज़ह से इस गांव में अगर किसी को शादी करनी हो तो वह सिर्फ़ गर्मी के दिनों में ही करना उचित समझते हैं।
जानकारी के लिए बता दें कि हम बात कर रहे हैं बिहार के बक्सर ज़िले में स्थित डुनमरांव गांव की। यह वही बिहार है जहां कहते हैं सबसे पहले लोकतंत्र की स्थापना हुई थी। जहां कुछ दिनों पहले हुई बेमौसम बरसात के कारण लोगों के समक्ष भारी संकट की स्थिति पैदा हो गई। दो-तीन दिन पहले हुई एक शादी के दौरान एक दूल्हे को कंधे पर बैठाकर तकरीबन 3 किलोमीटर दूर तक कीचड़ और पानी में बचते बचाते हुए लेकर जाने का एक वीडियो सामने आया है। पूछने पर स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि यह समस्या वर्षों से बनी हुई है लेकिन इस पर ना तो जनप्रतिनिधि और ना ही अधिकारी ध्यान देते हैं।
दरअसल, ये मामला बक्सर जिले के डुमराव अनुमंडल मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर स्थित पुरैना गांव से जुड़ा हुआ है। जहां मुख्य सड़क से गांव में जाने के लिए कोई रास्ता नहीं है। सड़क की सुविधा नहीं होने के कारण लोग 3 किलोमीटर तक पैदल चलने को मजबूर हैं। लंबे समय से सड़क की मांग कर रहे ग्रामीणों का कहना है कि उनकी मांग पर कोई सुनवाई नहीं होती।
इसी मामले में ग्रामीणों ने आगे बताया कि हल्की बारिश होने के बाद कच्चे रास्ते से गाड़ियों का आवागमन बंद हो जाता है। ऐसे में लोगों को बचते-बचाते पैदल मुख्य सड़क तक आना पड़ता है। ग्रामीणों का कहना है कि प्रखंड स्तरीय अधिकारी से लेकर जिले के वरीय अधिकारियों से लेकर जन प्रतिनिधियों तक से कई बार इस संदर्भ में अनुरोध किया गया लेकिन उनकी तरफ से कोई पहल नहीं शुरू हुई।
इतना ही नहीं पुरैनी गांव की दुर्दशा के बारे में बताते हुए समाजसेवी रविकांत बताते हैं कि,”इस गांव में जब तक बारिश नहीं होती तब तक ठीक है। अगर बारिश हो गई तो भगवान ही मालिक है। अगर गांव का कोई आदमी या औरत बीमार पड़ जाए तो सबसे पहले चार आदमी खोजे जाते हैं क्योंकि गांव का रास्ता पार करना होता है।”
वहीं, गांव में कभी भी शादी बरसात में नहीं की जाती। अगर लड़के वाले तैयार नहीं हुए तो मजबूरी है। इस बार यही हुआ है। बेमौसम बारिश के कारण गांव की सड़क बर्बाद हो गई। ऐसे में दूल्हे को कंधे पर बिठाकर ले जाना पड़ा। वैसे ये कोई एक बक्सर ज़िले या बिहार की तस्वीर नहीं है, बल्कि देश के अलग-अलग हिस्सों में ऐसी तस्वीरें देखने को मिल जाएगी। ऐसे में सरकारों को खोखले दावे न करते हुए सच्चें मन से काम करना चाहिए ताकि दोबारा देश में किसी व्यक्ति को इस दौर से न गुजरना पड़े, क्योंकि शादी जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। अगर उस दिन भी दूल्हे को बारात ले जाने के लिए सड़क ही न मिले तो यह देश के लिए ठीक बात नहीं…