रिलायंस ने प्रदूषण से बचने के लिए निकाला अनोखा तरीका, कि खड़ा हो गया व्यवसाय का एक नया साम्राज्य
बड़े इंडस्ट्रियल प्रोजेक्ट्स पर अमूमन यह देखने को मिलता है कि ज़मीन, पानी और मजदूर आदि को लेकर कई समस्याएं सामने आती ही है। इतना ही नहीं कई बार तो कृषि भूमि को लेकर विवाद भी उठता है। लेकिन हम आपको यहां एक ऐसी इंडस्ट्री के बारे में बताने जा रहा। जिसने अपने लिए खड़ी हुई समस्याओं को ही अपने लिए नया रास्ता बना लिया। जी हां हम बात कर रहें गुजरात के एक बड़े इंडस्ट्री की। जिसने पर्यावरण संरक्षण के लिए एक अनूठा क़दम उठाया जिसकी वज़ह से कंपनी को काफ़ी फ़ायदा भी हुआ। जी हां हम जिस इंडस्ट्री की बात कर रहें उसने कई एकड़ बंजर पड़ी ज़मीन को आमों के बाग में तब्दील कर दिया।
अब हम आपसे पूछें कि मुकेश अंबानी की विशाल भारतीय बहुराष्ट्रीय कंपनी- रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड किन-किन क्षेत्रों से जुड़ी हुई है। तो शायद आपका जवाब यही मिलें कि पेट्रोलियम के उत्पादन और दूरसंचार तक ही यह कम्पनी सीमित है। लेकिन हम आपको बता दें कि यह कंपनी सिर्फ़ पेट्रोलियम और दूरसंचार तक ही सीमित नहीं, बल्कि वह अब एशिया में आमों के सबसे बड़े बाग के मालिक होने का भी दावा कर रही है। जी हां रिलायंस और आम के बाग़ से जुडी कहानी काफ़ी दिलचस्प है। यह कहानी नब्बे के दशक के उत्तरार्ध की है। वर्ष 1997 में, कंपनी जामनगर में अपनी रिफाइनरी में होने वाले भारी प्रदूषण को लेकर चिंतित थी। इतना ही नहीं प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों से कई बार चेतावनियाँ भी कंपनी को मिल रही थी। ऐसे में रिलायंस समूह ने महसूस किया कि इस समस्या को हल करने के लिए कुछ उपायों करने की आवश्यकता है। तभी रिलायंस ने प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए रिफाइनरी के पास आम का बाग बनाने पर विचार किया। रिलायंस की जामनगर रिफाइनरी के पास की बंजर भूमि को तब हरित पट्टी में तब्दील किया गया, और वहां 200 से अधिक प्रजातियों के आम के लगभग 1.3 लाख पौधे लगाए गए।
रिलायंस इंडस्ट्रीज के संस्थापक धीरूभाई अंबानी के नाम पर इस बाग का नाम “धीरूभाई अंबानी लखीबाग अमराई” रखा गया। रिलायंस के बाग का नाम 16 वीं शताब्दी में मुगल सम्राट अकबर द्वारा बनाए गए आम के बाग से प्रेरित था, जिसे बिहार के दरभंगा में स्थित “लखीबाग” कहा जाता था। रिलायंस का प्रदूषण से बचने का यह फॉर्मूला दोहरा लाभ देने वाला साबित हुआ और यह आम का बाग 600 एकड़ की भूमि में फैल गया।
बता दें कि बड़ी हरित पट्टी के लिए पानी कंपनी के विलवणीकरण संयंत्र से आता है जो समुद्री जल को शुद्ध करता है। चूंकि बाग का क्षेत्र बड़ा है और पानी की कमी और शुष्क भूमि की समस्या बनी हुई है, इसलिए इससे निपटने के लिए, जल संचयन और ड्रिप सिंचाई विधि के साथ-साथ निषेचन जैसी उपयुक्त तकनीकों का उपयोग किया जाता है। इस बाग में केसर, अल्फांसो, रत्ना, सिंधु, नीलम और आम्रपाली जैसी प्रमुख भारतीय किस्मों के अलावा, यहां पर फ्लोरिडा, अमेरिका से टॉमी एटकिंस और केंट और इज़राइल से लिली, कीट और माया जैसे विदेशी आम भी पाएं जाते हैं। वही कंपनी के प्रवक्ता का कहना है कि, “हर साल, धीरूभाई अंबानी लखीबाग अमराई उत्कृष्ट गुणवत्ता के लगभग 127 किस्मों के आमों का उत्पादन करता है। जो स्थानीय स्तर पर और साथ ही वैश्विक स्तर पर निर्यात किए जाते हैं।
बता दें रिलायंस समूह अपने आम के बागान में किसानों को भी आमंत्रित करती है। जिससे वह बाग में आकर वहां इस्तेमाल की जा रही नवीन प्रथाओं को सीख सकें। इतना ही नहीं कंपनी हर साल किसानों को 1 लाख मुफ्त पौधे भी वितरित करता है। इसी विषय पर परिमल नाथवानी कहते हैं, कि रिलायंस के निर्णयकर्ताओं ने जिस तरह से अपना रास्ता निकाला, वह अभिनव, प्रेरक और पर्यावरण के अनुकूल भी है। कुछ वर्षों में, बंजर भूमि को हरे भरे ग्रामीण इलाकों में बदल दिया गया और जामनगर, गुजरात में दुनिया की सबसे बड़ी रिफाइनरी को इसके पर्यावरण के अनुकूल बदल दिया गया। जो कहीं न कही एक बेहतर बात है।
बता दें कि लगभग 600 एकड़ में फैली इस अमराई में अब करीब डेढ़ लाख पेड़ हैं। इस अमराई की कमान मुकेश की पत्नी नीता अंबानी के हाथ है। वहीं इस बागान में पैदा होने वाले आम की ज़्यादा मांग एनआरआई गुजरातियों के बीच होती है। वहीं एक दिलचस्प बात यह भी है कि मुकेश के पिता धीरूभाई अंबानी बहुत बड़े मैंगो लवर थे। इसलिए कहा जाता है कि उनकी याद में ही अमराई को उनका नाम दिया गया है। वहीं खुद मुकेश भी आमों के बड़े शौकीन हैं।