अध्यात्म

सिर्फ़ भारत में ही नहीं इन देशों और धर्मो में स्वास्तिक चिन्ह्न का है विशेष महत्व…

हिन्दू धर्म में स्वास्तिक का महत्व और क्या है इसका इतिहास, जानिए सबकुछ...

हमारी भारतीय संस्कृति में सनातन काल से ही चिह्नों और संकेतों का महत्व रहा है। इतना ही नहीं प्राचीन काल से ही हमारे यहां प्रतीकों के माध्यम से बड़ी से बड़ी बात बयाँ करने का रिवाज़ रहा है। सोचिए जिस लोकगीत और लोककला को हम भूलते जा रहें। वह कितने सार्थक संदेश समाज को दे जाती थी, लेकिन आधुनिक बनने की होड़ में हम अपना बहुत कुछ खोते जा रहें। आइए हमने प्रतीक-चिन्हों से बात शुरू की है तो स्वास्तिक चिह्न के बारे में विस्तार से समझते हैं, कि क्या है इसका भारतीय संस्कृति में महत्व…

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आप सभी ने देखा होगा, ख़ासकर हिन्दू धर्म के लोगों में किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत से पहले स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर उसकी पूजा करने का विधान है। बता दें कि इसके पीछे मान्यता यह है कि, “ऐसा करने से कार्य सफल होता है। स्वास्तिक के चिन्ह को मंगल प्रतीक भी माना जाता है।” मालूम हो कि स्वास्तिक शब्द ‘सु’ और ‘अस्ति’ का मिश्रण योग माना जाता है। तो वहीं स्वास्तिक शब्द “सु+ अस” धातु से मिलकर बना हुआ है। जहां ‘सु’ का अर्थ कल्याणकारी और मंगलमय होता है। वही ‘अस’ का अर्थ अस्तित्व या सत्ता होता है। इस प्रकार स्वास्तिक का अर्थ हुआ ऐसा अस्तित्व जो शुभ भावना से परिपूर्ण हो, कल्याणकारी हो और मंगलदायी भी। संक्षेप में कहें तो शुभ हो, कल्याण हो। सनातन परंपरा में विवाह, मुंडन, संतान के जन्म और पूजा पाठ के विशेष अवसरों पर स्वास्तिक का चिन्ह अवश्य ही बनता है।

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जानकारी के लिए बता दें कि स्वास्तिक को सूर्य का प्रतीक भी माना जाता है। वहीं विघ्नहर्ता श्री गणेश जी की प्रतिमा की भी स्वास्तिक चिन्ह से संगति है। श्री गणेश जी के सूंड, हाथ, पैर, सिर आदि अंग इस तरह से चित्रित होते हैं कि यह स्वास्तिक की चार भुजाओं के रूप में परिलक्षित होते हैं। साथ ही साथ ॐ को भी स्वास्तिक का प्रतीक माना जाता है। भारतीय धर्म ग्रन्थों की मानें तो “ॐ” ही सृष्टि के सृजन का मूल है। ईश्वर के नामों में इसलिए तो यह सर्वोपरि है।

वहीं एक मान्यता के अनुसार स्वास्तिक को सभी दिशाओं से कल्याणकारी होने का प्रतीक माना गया है। यहां एक विशेष बात यह की स्वास्तिक में सभी तऱफ की सकारात्मक ऊर्जाओं को समेटने की क्षमता होती है।

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स्वास्तिक की हर रेखा का महत्व…

यह तो सभी को पता होगा कि स्वास्तिक में चार रेखाएं होती है। तो बता दें कि स्वस्तिक का यह चिन्ह क्या दर्शाता है, इसके पीछे ढेरों तथ्य हैं। स्वास्तिक में चार प्रकार की रेखाएं होती हैं, जिनका आकार एक समान होता है। आम लोगों का मानना है कि यह रेखाएं चार दिशाओं- पूर्व, पश्चिम, उत्तर एवं दक्षिण की ओर इशारा करती हैं। लेकिन यह इतने तक ही सीमित नहीं। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यह रेखाएं चार वेदों – ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद का प्रतीक भी हैं। मान्यताएं तो यह भी हैं कि, “ये चार रेखाएं सृष्टि के रचनाकार भगवान ब्रह्मा के चार सिरों को दर्शाती हैं। इसके अलावा इन चार रेखाओं को चार पुरुषार्थ, चार आश्रम, चार लोक और चार देवों यानी कि भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश और गणेश से तुलना की गई है।

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इतना ही नहीं स्वास्तिक की चार रेखाओं को जोडऩे के बाद मध्य में बने बिंदु को भी विभिन्न मान्यताओं द्वारा परिभाषित किया जाता है। मान्यता है कि यदि स्वास्तिक की चार रेखाओं को भगवान ब्रह्मा के चार सिरों के समान माना गया है, तो फलस्वरूप मध्य में मौजूद बिंदु भगवान विष्णु की नाभि है, जिसमें से भगवान ब्रह्मा प्रकट होते हैं। इसके अलावा यह मध्य भाग संसार के एक धुर से शुरू होने की ओर भी इशारा करता है।

इसके अलावा स्वास्तिक से जुड़ी अन्य धार्मिक मान्यताओं की बात करें तो स्वास्तिक की चार रेखाएं एक घड़ी की दिशा में चलती हैं, जो संसार के सही दिशा में चलने का प्रतीक है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यदि स्वास्तिक के आसपास एक गोलाकार रेखा खींच दी जाए। तो यह भगवान सूर्य का चिन्ह बन जाता है।

वैसे स्वास्तिक की महत्ता सिर्फ़ हिन्दू धर्म तक सीमित नहीं है। यह बौद्ध और जैन धर्म में भी काफ़ी महत्व रखता है। जैन धर्म में तो स्वास्तिक को सातवें जिन का प्रतीक माना गया है, जिसे सब तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ के नाम से भी जानते हैं। वही श्वेताम्बर जैनी स्वास्तिक को अष्ट मंगल का मुख्य प्रतीक मानते हैं। इसके अलावा बता दें कि जर्मनी और फ्रांस में तो इसकी ऊर्जाओं को लेकर अध्ययन भी किया जा रहा।

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स्वास्तिक बनाते वक्त ध्यान देने योग्य बातें…

स्वास्तिक का अर्थ शुभ कार्य या मंगल होता है। ऐसे में स्वास्तिक का निर्माण शरीर की बाहरी शुद्धि के उपरांत ही किया जाना चाहिए। साथ ही साथ स्वास्तिक पवित्र भावनाओं से नौ अंगुल का 90 डिग्री के एंगल में सभी भुजाओं को बराबर रखते हुए बनाया जाना चाहिए। वही ऐसी मान्यताएं है कि अगर केसर, कुमकुम, सिन्दूर और तेल के मिश्रण से अनामिका अंगुली से ब्रह्म मुहूर्त में विधिवत स्वास्तिक बनाया जाए तो कुछ समय के लिए घर का वातावरण बेहतर महसूस किया जा सकता है। घर के मुख्य द्वार पर स्वास्तिक बनाने से घर में सकारात्मक ऊर्जाओं का आगमन होता है। ऐसे में एक बात तो स्पष्ट है सनातन धर्म की हर परंपरा और रीति-रिवाज़ कहीं न कहीं वैज्ञानिक दृष्टिकोण के काफ़ी समीप होते हैं। भले ही हम आधुनिकता की चादर ओढ़ने के चक्कर में उसे भूला रहे हो।

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स्वास्तिक से होने वाले लाभ….

अब बात स्वास्तिक से होने वाले फायदों की करें। तो अगर व्ययसाय ठीक नहीं चल रहा है या आर्थिक तंगी रहती है तो अपनी तिजोरी या बहीखाते पर लाल रोली से स्वास्तिक चिन्ह बनाना चाहिए और उसे उत्तर पूर्व में रखना फलदायक सिद्ध होता है। इसके अलावा नौकरी और व्यवसाय की परेशानियों को दूर करने के साथ ही स्वास्त‍िक पढ़ाई में भी लाभकारी है। अगर घर में बच्चों का मन पढ़ाई में नहीं लगता तो सफेद कागज पर लाल रोली से स्वास्तिक चिन्ह बनाएं। फिर सरस्वती मंत्र लिखें और पढ़ने के स्थान पर रख दें। इससे काफी फायदा होता दिखेगा। स्वास्तिक से जुड़ा एक स्मरणीय तथ्य यह भी है कि सिंधु घाटी की खुदाई के दौरान स्वास्तिक प्रतीक चिन्ह मिला था। ऐसा माना जाता है हड़प्पा सभ्यता के लोग भी सूर्यदेव की उपासना को महत्व देते थे। हड़प्पा सभ्यता के लोगों का व्यापारिक संबंध ईरान से भी था। जेंद अवेस्ता में भी सूर्य उपासना का महत्व दर्शाया गया है। प्राचीन फारस में स्वास्तिक की पूजा का चलन सूर्योपासना से जोड़ा गया था, जो एक काबिल-ए-गौर तथ्य है।

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