एक ऐसा फ़िल्मी कलाकार जिसकी कलम से डर गई थी कांग्रेस सरकार …
वाम पंथ का समर्थक था यह फ़िल्मी कलाकार, जिसकी कलम से हिल गई थी कांग्रेस...
कहते हैं जो हमारे आस-पड़ोस घटित हो रहा। उसे ही फिल्मों में दिखाया जाता है। जी हां ऐसी कई फिल्में हैं, जो हमारे सामाजिक परिवेश को या तो आईना दिखाने का काम करती हैं या फ़िर वह हमारे सामाजिक ताने-बाने के उधेड़बुन पर बनी हुई होती हैं। भले आजकल मसाला फिल्मों का दौर हो, जिसमें आइटम नंबर वगैरह को तरज़ीह दी जा रही हो, लेकिन एक दौर ऐसा भी भारतीय फ़िल्मी इतिहास का रहा है। जब समानांतर सिनेमा का दौर था। हर फ़िल्म समाज को कुछ न कुछ सिखाती है और समाज पर कुछ छाप छोड़ती है। ऐसे ही फिल्मों के कुछ किरदार भी होते हैं जो समाज पर अपनी छाप छोड़ने का काम करते हैं।
हां बशर्तें यह है कि कोई कलाकार अपनी पॉजिटिव छाप समाज पर छोड़ता है तो किसी की नेगेटिव इमेज भी समाज पर अपना प्रभाव दिखाती है। ऐसे में हम बात कर रहें ऐसे ही एक फ़िल्मी कलाकार उत्पल दत्त। ये 70 के दशक में मशहूर कॉमेडियन थे। फिल्म ‘गोलमाल’ में अमोल पालेकर के साथ इन्होंने लोगों को खूब हंसाया था। विशेष बात है कि उत्पल दत्त अभिनेता होने के साथ-साथ एक राजनीतिक कार्यकर्ता भी थे, जिसकी झलक उनकी फिल्मों में दिखाई देती है। उन्होंने हिंदी और बंगाली सिनेमा में अमिट छाप छोड़ी। ऐसा कहते हैं कि उत्पल दत्त एक ऐसे कलाकार थे जिनकी फिल्मों को देखकर तो दर्शक आनंद लेते थे, लेकिन सरकारों की बेचैनी बढ़ जाती थी।
मालूम हो कि उत्पल दत्त का जन्म 29 मार्च, 1929 को बारीसाल, पूर्वी बंगाल में हुआ था। इनके पिता का नाम गिरिजारंजन दत्त था। वहीं वर्ष 1960 में उत्पल दत्त ने थिएटर और फ़िल्म एक्ट्रेस शोभा सेन से विवाह किया। उत्पल दत्त और शोभा सेन की बेटी का नाम डॉक्टर बिष्णुप्रिया है। वे उनकी इकलौती संतान हैं। वैसे हम यहां बात उत्पल दत्त के फ़िल्मी जीवन की कर रहें तो बता दे कि वह अपनी पिक्चर के माध्यम से लगातार सरकार पर तंज कसते थे। जिसका नतीजा यह होता था कि उन्हे कई बार जेल की सलाख़ों के पीछे जाना पड़ा।
अंग्रेजी साहित्य से ग्रेजुएशन करने वाले उत्पल दत्त को शेक्सपियर से काफ़ी लगाव था। जिसकी वजह से वह सन 1940 में अंग्रेजी थिएटर से जुड़े और अभिनय की शुरूआत की। इन्हें “ओथेलो” नाटक से काफ़ी वाहवाही भी मिली थी। धीरे-धीरे इनका मन बंगाली नाटक में भी रमने लगा और इन्होंने बंगाली फिल्मों के साथ थियेटर में काम करना शुरू कर दिया। इतना ही नही बंगाली राजनीति पर लिखे इनके कई नाटकों ने कई बार विवाद को भी जन्म दिया। उसके बाद समय आता है 1950 का। जब उन्होंने हिंदी फ़िल्मो की तरफ रुख़ किया और वहां भी झंडे बुलन्द किए। बॉलीवुड में हास्य कलाकार के रूप में उनकी पहचान बनी। उन्होंने ‘गोलमाल’, ‘नरम गरम’, ‘रंग बिरंगी’, ‘शौकीन’ और ‘गुड्डी’ जैसी फिल्मों में काम किया। अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘सात हिंदुस्तानी ’ में वे हिस्सा बने थे। गोलमाल फिल्म में उनके द्वारा बोला गया एक डायलॉग बहुत प्रसिद्ध हुआ था। जब वो कहते थे “बेटा रामप्रसाद…”। वास्तव में उनकी डायलॉग डिलीवरी का अंदाज काफ़ी निराला था।
अब बात उसकी जिसकी वज़ह से बेबाक़ बात रखने वाले उत्पल दत्त को जाना पड़ा था जेल। गौरतलब हो कि वह अपने नाटकों के जरिए अपनी बेबाक राय रखा करते थे. फिर वह चाहे समाज को लेकर हो या सरकार को लेकर। इतना ही नहीं कहा यह भी जाता है कि उत्पल दत्त कॉम्युनिस्ट वामपंथी विचारधार से ताल्लुक रखते थे। उन्होंने सरकार और उनकी नीतियों के विरुध कई नाटकों की कहानी लिखी और फिर उनका मंचन भी किया। इसी के तहत इन्होंने वर्ष 1963 में एक नाटक “कल्लोल” लिखा। जो भी विवादों में घिरा।
बता दें कि इसमें नौसैनिकों की बगावत की कहानी को दिखाया गया था और तब की कांग्रेस सरकार पर इस नाटक के माध्यम से निशाना साधा गया था। जिसमे बाद 1965 में उत्पल दत्त को कई महीनों के लिए जेल जाना पड़ा था। कुछ लोग तो यहां तक कहते हैं, कि 1967 में जब बंगाल विधानसभा के चुनाव हुए तो कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस की हार की वजह उत्पल दत्त की गिरफ्तारी भी मानी गई। इसके बाद जब देश में आपातकाल लगा तो उत्पल ने तीन नाटक लिखे। इनमें ‘बैरीकेड’, ‘सिटी ऑफ नाइटमेयर्स’, ‘इंटर द किंग’ थे। उस वक्त सरकार ने तीनों नाटकों को प्रतिबंधित कर दिया था। ऐसे में कहीं न कहीं उत्पल दत्त एक सफ़ल हास्य कलाकार तो थे ही साथ ही साथ एक ऐसे कलमकार भी। जिसकी कलम की धार से केंद्र सरकार भी घबराती थी।