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पांडवों ने बनवाया था केदारनाथ मंदिर, जानें इससे जुड़ी पौराणिक कथा

केदारनाथ मंदिर के खुले द्वार, भक्त कर पाएगे भोलेनाथ दर्शन

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12 ज्‍योर्तिलिंगों में से एक विश्व प्रसिद्ध भगवान केदारनाथ धाम के कपाट बीते दिनों एक बार फिर भक्‍तों के लिए खोल दिए गए हैं। हालांकि कोरोना संक्रमण के कारण यहां तीर्थयात्री और स्‍थानीय लोग कम ही पहुंच रहे हैं। साल के करीब 6 महीने बर्फ से ढंके रहने वाले इस पवित्र धाम को भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है।

ऐसी मान्यताएं है कि यहां भगवान शिव त्रिकोण शिवलिंग के रूप में हर समय विराजमान रहते हैं। वैसे तो पौराणिक ग्रंथों में इस धाम से जुड़ी कई कथाएं हैं, लेकिन आज हम महाभारत कालीन एक कथा के बारे में जानते हैं। गौरतलब हो कि महाभारत युद्ध जीत के बाद पांडवों में सबसे बड़े भाई युधिष्ठिर हस्तिनापुर नरेश बनाए गए थे। जिसके बाद करीब चार दशकों तक युधिष्ठिर ने हस्तिनापुर पर राज्य किया। इसी बीच एक बार पांचों पांडव भगवान श्रीकृष्ण के साथ बैठकर महाभारत युद्ध की समीक्षा कर रहे थे। तभी पांडवों ने श्रीकृष्ण से कहा हे कृष्‍ण! हम सभी भाइयों पर ब्रम्ह हत्या के साथ अपने बंधु-बांधवों की हत्या का कलंक है। इसे कैसे दूर करें?

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तब श्रीकृष्ण ने कहा कि ये सच है कि युद्ध में भले ही जीत तुम्हारी हुई है लेकिन तुम लोग अपने गुरु और बंधु-बांधवों को मारने के कारण पाप के भागी बन गए हो। जिस पाप से मुक्ति मिलना मुश्किल है। ऐसे में सिर्फ महादेव ही इन पापों से मुक्ति दिला सकते हैं। लिहाजा महादेव की शरण में जाओ उसके बाद श्रीकृष्ण द्वारका लौट गए।

श्रीकृष्ण की ये बातें पांडवो को लगातार कचोट रही थी कि कैसे पाप से मुक्ति मिले और कैसे भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करें। इसी बात को लेकर पांडव चिंतित रहने लगे। एक दिन पांडवों को पता चला कि वासुदेव ने अपना देह त्याग कर दिया है और वो अपने परमधाम लौट गए हैं। इसके बाद पांडवों को भी पृथ्वी पर रहना उचित नहीं लग रहा था। तब उन्‍होंने परीक्षित को राज्‍य सौंपकर, द्रौपदी को लेकर हस्तिनापुर छोड़ दिया और भगवान शिव की तलाश में निकल पड़े।

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शिव के दर्शन के लिए वे काशी समेत कई जगह गए लेकिन शिव उनके पहुंचने से पहले ही कहीं और चले जाते। तब वे शिव को खोजते-खोजते हिमालय पहुंच गए। ऐसा कहते हैं कि शिव यहां भी छिप गए। इस पर युधिष्ठिर ने भगवान शिव से कहा कि हे प्रभु! आप कितना भी छिप जाएं लेकिन हम आपके दर्शन किए बिना यहां से नहीं जाएंगे। मैं ये भी जानता हूं कि, “हमने पाप किया है कि इसलिए आप हमें दर्शन नहीं दे रहे हैं। इसके बाद पांचों पांडव आगे बढ़ने लगे।

तभी एक बैल उन पर झपट पड़ा। ये देख गद्दधारी भीम उससे लड़ने लगे। तभी बैल ने अपना सिर चट्टानों के बीच छुपा लिया तो भीम उसकी पुंछ पकड़कर खींचने लगे। इससे बैल का धड़ सिर से अलग हो गया और उस बैल का धड़ शिवलिंग में बदल गया। कुछ समय के बाद शिवलिंग से भगवान शिव प्रकट हुए। जिसके बाद शिव ने पांडवों के पाप क्षमा कर दिए, और पांडवों ने यहां मन्दिर का निर्माण कराया।

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