मानव जीवन में काफ़ी मायने रखता है रंग, जानिए इसके पीछे का वैज्ञानिक और धार्मिक कारण…
रंगों का मानव जीवन में काफी महत्व होता है। रंग प्रकृति की अनूठी देन है। सदियों से रंगो के शक्तिशाली प्रभाव को मनुष्य अनुभव करता रहा है। हम किसी रंग को अधिक और किसी को कम पसंद करते हैं। रंग की इस पसंद से हम अपना और दूसरे का भविष्य भी जान सकते हैं। रंगों का सही उपयोग सुख, शांति, समृद्धि, वैभव और यश में वृद्धि करता है। जबकि रंगों के उपयोग को लेकर की गई लापरवाही मानसिक, शारीरिक स्तर पर नकारात्मक प्रभाव भी डाल सकती है। मनुष्य में शारीरिक, मानसिक कष्टों को तथा जीवन के अनेक नकारात्मक प्रभाव को दूर करने के लिए रत्न और खास रंग के परिधान पहनकर रोगों और समस्याओं से काफी हद तक निजात पाई जा सकती है। तो आइए हम जानते हैं, कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में रंग क्यों रखते हैं महत्वपूर्ण स्थान और क्या है इसके पीछे का धार्मिक और वैज्ञानिक कारण?
प्रत्येक मनुष्य के चारों और रंगों का एक आभामंडल है। जो उसके स्वभाव और स्वास्थ्य की स्थिति को दर्शाता है। इस आभामंडल के रंगों की कमी या अधिकता से मनुष्य में स्वभाव तथा आने वाले संभावित रोगों का अनुमान लगाया जा सकता है। क्या आप इस तथ्य से परिचित हैं कि प्रातः जो रंग पहना जाता है वह दिन भर आपके स्वभाव को प्रभावित करता है। सम्भवतः यही कारण है कि लोग सदियों से स्वास्थ्य लाभ के लिए रंगोपचार का उपयोग करते आ रहे हैं। यूनान में जहां लोगों को विभिन्न कांच के पैनल व खिड़कियों से आती रोशनी में बिठाया जाता है। वही मिस्रवासी उपचार को शरीर में ही सील करने के लिए व्यक्ति को रंग से भरे बड़े बर्तनों में बिठाया करते थे।
विभिन्न वैज्ञानिक शोधों से यह पता चलता है कि रंगों का सही उपयोग कर प्रेरणा, एकाग्रता और स्मरण शक्ति बढ़ाई जा सकती है। रंगों की संरचना का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है “इंद्रधनुष” जिसका शक्तिशाली रंग है उर्जा शक्ति व ओजस्विकता का प्रतीक “लाल”। यह रंग अवसाद को दूर करता है। लाल रंग पहनने का तात्पर्य है कि व्यक्ति शक्तिसंपन्न है। ऊर्जा की कमी अनुभव होने पर लाल रंग पहनने से सकारात्मक प्रभाव उत्पन्न होता है, क्योंकि ऊर्जा का स्तर बढ़ाने से शरीर का तापमान भी बढ़ता है। अतः इसे “प्रेम” का रंग भी कहा गया है। नीला रंग शांति का प्रतीक है। इनमें मानसिक शांति प्रदान करने की विशेषता है। यह रंग पहनकर अपने विचार रखने में सुविधा होती है। वही पीला रंग मस्तिष्क को स्पंदित और सुदृढ़ बनाने वाला होता है। पीला रंग पहनने से सृजनशक्ति और मानसिक सजगता बढ़ती है।
ऐसे में इन तीन रंगों को मिलाकर बना रंग पहनने से ही लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं। लाल और पीला रंग मिलाकर बना नारंगी या केसरिया रंग, लाल की शक्ति व पीले की मानसिक क्षमता दोनों प्रदान करता है। श्रीमद्भागवत के अनुसार तीन प्रकार के प्रकृति के व्यक्ति होते हैं। सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण। इन तीनों को नीले, पीले और लाल रंग से दर्शाया जा सकता है। सतोगुणी या नीला रंग सच्चाई एवं प्रेरक स्वभाव को दर्शाता है। यह शीतल प्रकृति का है। रजोगुण या पीला रंग क्रियाशीलता एवं साहस को संकेत करता है।साथ ही यह चिड़चिड़ेपन को नियंत्रित करता है। तमोगुण या लाल रंग उग्रता तथा उत्तेजक स्वभाव का प्रतीक है, लेकिन सत्वरस और तम इनके प्रतिनिधि रंगों को लेकर विद्वानों में मतभेद है। जैसे तमोगुण में आसुरी प्रवृत्ति अधिक होती है जबकि लाल रंग उत्साह का रंग है इसीलिए कई विद्वान लाल रंग को रजोगुण का प्रतीक मानते हैं, क्योंकि सक्रियता रजोगुण का प्रमुख लक्षण है। तमोगुण का रंग इसलिए काला है, गहरा नीला भी माना जा सकता है। इसी प्रकार श्वेत, केसरिया, पीला रंग सत्व रंग का आत्मचिंतन सात्विकता, पवित्रता का प्रतीक कई विद्वान मानते हैं।
हर रंग कुछ बोलता है। बिना रंगों के तो आम जीवन की कल्पना ही नही कर सकते। हर रंग का कुछ अर्थ है जिसे प्रायः हम समझ नही पाते। आपको अपने भाव प्रकट करने हो या किसी को कुछ उपहार में देना हो इस का चुनाव आप रंगों के माध्यम से ही करते हैं। रंग सत्य है। रंग आनंद है। रंग ही सौंदर्य है। रंग भी विमुखता अंधकार है। सो आदिदेव भोले शंकर ने अपने को श्मशान धूलि से रंग लिया। परित्यक्त रंग “त्रिपुंड” बन गया। विष्णु की पूजा की अनंत बामनाओं के संरक्षण का भावबोध था। ऐसे में उन्हें अनंत का नीला रंग ही अनुकूल लगा।
ब्रह्मा सबसे बुद्धिमान, ये बुद्धिमान को सयाना रंग ही शोभा देता है। जीव- अजीव, जितने रूप उतने रंग। सबका अपना-अपना रंग। रंग नाम बन गया। रंग पहचान बन गया। हरे रंग से आच्छादित पृथ्वी को “हरि” कहा गया। हरिताभ के कारण दूर्वा के लिए “हरिद्रा” नाम स्वीकृति हुआ।
रंग और रूप एक दूसरे के पूरक है। रंग रूप का श्रृंगार है और रूप का रंग आधार। रंगों की अपनी उर्जा होती है, वह गतिशीलता प्रदान करती है। विचारों भावनाओं तक को हम रंगों के माध्यम से व्यक्त कर सकते हैं। इसीलिए विज्ञापनों में रंग के द्वारा कई बार कठिन संदेशों को व्यक्त करते हुए पाया जाता है। न्याय का प्रतिनिधित्व शनि करता है। जो व्यक्ति के कर्मों के अनुसार शुभ अशुभ फल देता है। इसीलिए अगर न्यायाधीश और वकील काला कोट पहनते हैं तो ठीक है। सूर्य की किरणों में सात रंगों का समावेश है। जिसे प्रकृति ने मानव के स्वास्थ्य को उत्तम बनाए रखने के लिए प्रदान किया है।
सूर्य की किरणों में बैगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी और लाल रंग होते हैं। इन रंगों के अलावा इंफ्रारेड और अल्ट्रावायलेट किरणें भी सूर्य के प्रकाश में पाई जाती है। इन किरणों को नंगी आंखों से नहीं देखा जा सकता। राहु और केतु इन दोनों के प्रतिनिधि हैं। जीवन में ज्ञान, प्रेम, शुभ कर्म करने का उत्साह, शक्ति, त्याग और ईश्वर शक्ति आदि सभी इन रंगों के गुलाम है। प्राचीन काल में रंगों को प्राकृतिक शक्तियों से जोड़ा जाता था। उसके बाद अग्नि का रंग लाल होने के कारण लाल रंग को अग्नि का प्रतीक माना जाने लगा। आधुनिक समय में भी हम अपने अनजाने अपनी परंपरा में प्रचलन के तौर पर रंगों का जो प्रयोग कर रहे हैं उसमें प्रकृति के साथ तालमेल तथा स्वास्थ्य रक्षा का भाव बना हुआ।