20 साल से खाली पड़े खँडहर को RSS ने अपनी मेहनत से बदला 200 बेड वाले कोविड सेण्टर में
आरएसएस के इस महान कार्य के बारे में पढ़ने के बाद वामी और कांग्रेसियों का भी हो जाएगा ह्रदय परिवर्तन...
देश के सामने कोई भी विकट परिस्थिति हो। सबसे पहले अगर मदद को कोई हाथ बढ़ता है। तो वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का होता है। निःस्वार्थ भाव से देश और समाज हित का पाठ सीखना हो तो उसके लिए आरएसएस से अच्छी कोई पाठशाला नहीं। जी हां ऐसा कहने के पीछे वाज़िब कारण है।
जब कोरोना की दूसरी लहर से देश में हाहाकार मचा हुआ है। इस महामारी ने मानवता को भी कुचल कर रख दिया है। यदि कोई संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आता है, तो वो भी संक्रमित हो जाता है। ऐसे में जब अपने ही अपनों से बेगाना हो रहें। उस दौरान भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक अपनी जान जोखिम में डालकर पूरी तत्परता के साथ लोगों की मदद करने का काम कर रहे हैं।
कहते हैं न कि, “मानव सेवा ही माधव सेवा” है। इस उक्ति का मर्म कोई समझता है तो शायद वह स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ता ही हैं। जिस दौरान कई राजनीतिक और सामाजिक संगठन कोरोना के भय से चारदिवारियों में छिपकर बैठ गए हैं। उस मुश्किल घड़ी में भी आरएसएस के कार्यकर्ता “समर्थ भारत अभियान” के माध्यम से लगातार मानवता की रक्षा में जुटे हुए हैं।
आरएसएस का सेवा भाव, समाज और देश में सबसे अनोखा है। एक राष्ट्रीय पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट में यह कहा गया है कि आरएसएस ने कर्नाटक में एक बड़े ब्रिटिश युग के अस्पताल को पुनर्जीवित करने के लिए कदम बढ़ाया है। कोरोना वायरस से राज्य को बचाने के लिए भारत गोल्ड माइंस लिमिटेड अस्पताल या बीजीएमएल अस्पताल, जिसे लोकप्रिय नाम से जाता जाता है। दो दशकों से वीरान और खंडहर के रूप में पड़ा था। जिसे अब आरएसएस द्वारा 200 से अधिक बेड के कोविड सेंटर के रूप में पुनर्जीवित किया जा रहा।
गौरतलब हो कि यह अस्पताल 1880 में डॉ. टीजे ओ’डोनेल और उनके भाई जेडी ओ’डोनेल ने बनवाया था और उस दौरान इस अस्पताल में 800 बिस्तरों की क्षमता थी। इस अस्पताल की तुलना 20 वीं सदी के शुरुआती दिनों में एशिया के सबसे बड़े अस्पतालों में की जाती थी। यहां हम आपको बता दें कि कर्नाटक के कोलार जिले में कोविड-19 के लगातार बढ़ते केस को देख कर सांसद एस मुनीस्वामी ने महसूस किया कि बढ़ते मामलों को नियंत्रित करने के लिए एक नया अस्पताल स्थापित करने में अधिक समय लगेगा। ऐसे में उन्होंने ब्रिटिश युग के अस्पताल को फिर से चालू करने और संचालित करने का फैसला किया। जो लगभग 20 से अधिक वर्षों से निष्क्रिय पड़ा हुआ था। उन्होंने अस्पताल को जल्दी से ठीक करने और इसे एक कोविड केयर सेंटर में बदलने के लिए स्वयंसेवकों की सेवाएँ ली।
मोल्डरिंग अस्पताल को कोविड-19 सेंटर में बदलने की अपनी योजना पर बात करते हुए, मुनिस्वामी ने कहा, “संघ परिवार और अन्य संगठनों के साथ विचार-विमर्श करने के बाद हमने 200 से ज्यादा बेड का कोविड केयर सेंटर स्थापित करने का निर्णय लिया। इसे तैयार करने के लिए भाजपा और आरएसएस के लगभग 250 स्वयंसेवकों ने कड़ी मेहनत की। अब चारपाई और बिजली का काम हो गया है और अस्पताल 2-3 दिनों के भीतर ही चालू हो जाएगा।”
मालूम हो कि एशिया के सबसे बड़े अस्पतालों में से एक 20 वर्ष से निष्क्रिय पड़े अस्पताल को कोविड सेंटर में तब्दील करना इतना आसान भी नहीं था, लेकिन जहां संघ किसी काम की जिम्मेदारी संभाल ले तो सबकुछ संभव हो सकता है। हुआ भी कुछ यूं ही आरएसएस और भाजपा के स्वयं सेवकों ने अस्पताल की सफ़ाई का ज़िम्मा अपने ऊपर लिया। जिसके बाद क़रीब 400 ट्राली कचरे को साफ़ किया गया। अस्पताल की साफ़-सफाई को लेकर कार्यकर्ता प्रवीण एस के ने कहा कि, “अस्पताल की सफ़ाई का काम इतना आसान नहीं था। वर्षों से अस्पताल जीर्ण-शीर्ण अवस्था में था। अस्पताल के चारों ओर फैले हुए चमगादड़ और 2-3 इंच मिट्टी के टीले थे। यह जालों से भरा हुआ था। जब हमने इस कार्य को अपने हाथ में लिया तो कई लोगों को संदेह था कि क्या हम इस कार्य को पूरा कर पाएँगे। हालाँकि आरएसएस, भाजपा, विहिप, सेवा भारती, जन जागरण समिति के स्वयंसेवक अस्पताल की सफाई के अपने संकल्प में अडिग थे। हमने यह काम 27 अप्रैल को शुरू किया था और सात मई तक पाँच एकड़ के इस परिसर की पूरी सफाई का काम पूरा कर लिया गया।”
सोचिए जिस स्वयं सेवक संघ को कांग्रेस और अन्य दलों के दुर्बुद्धिजीवी “भगवा आतंकवाद” से जोड़कर देखते है। उसका मानवतावादी दृष्टिकोण कितना अटूट और विहंगम है। ऐसे में कांग्रेसियों को यह सोचना चाहिए कि कहीं वह राजनीतिक रोटी सेंकने मात्र के लिए तो अपने ज़मीर से सौदा नहीं कर बैठते? राजनीति करना ठीक बात है, लेकिन अंतरात्मा को मारकर और झूठ की बुनियाद पर राजनीति करना सरासर ग़लत है! स्वयंसेवको की कोरोना काल और अन्य विकट परिस्थितियों में देशहित और मानव हित के लिए किए जा रहें प्रयासों को देखने के बाद दिग्विजय सिंह जैसे सरीखें नेताओं से यही सवाल पूछना बनता है कि आख़िर क्या अब वे स्वयं सेवकों से माफ़ी मांगेगे?
यहां बता दें कि भले ही विपक्ष स्वयं सेवकों की निष्ठा भाव और देश प्रेम पर सवाल खड़ें करता हो, लेकिन यह स्वयं सेवकों की ही देन है कि 20 वर्ष से खण्डहर पड़े 140 वर्ष पुराने अस्पताल को पुनः पुनर्जीवित किया गया। वैसे कोरोना काल कोई पहली बड़ी आपदा नहीं जब स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता देश की सेवा में जुटे हैं। इसके पहले भी केरल में आई बाढ़ हो या उत्तराखंड में आई तबाही। देश के सामने जब भी कोई बड़ी समस्या आती है तो एकमात्र राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ही है जो तन, मन और धन के साथ निःस्वार्थ भाव से सेवा करने के लिए आगे आता है। बाक़ी क्या राजनीति करने के लिए देश में हज़ारों संगठन और राजनीतिक दल हैं, लेकिन वह सिर्फ़ राजनीति करने को ही अपना सामाजिक और संवैधानिक कर्तव्य समझते हैं।