कोरोना से लड़ने वाली एंटीबॉडी हमारे शरीर में कितने दिनों तक रहती है, वैज्ञानिकों ने किया खुलासा
देश में कोरोना संक्रमण (Coronavirus infection rate) की रफ्तार बुलेट ट्रैन से भी तेज़ दौड़ रही है. देश में कोरोना से हर कोई परेशान है. इस बार कोरोना ने अपना वीभत्स रूप दिखाया है. कोरोना ने न सिर्फ काम धंधों को ठप किया है, बल्कि इस बार देश के कई लोगों की जान भी ली है. पिछले साल जहां ये कहा जा रहा था कि कोरोना सिर्फ उम्र दराज़ लोगों के लिए हानिकारक है वहीं इस बार ये जवान लोगों की भी जान ले रहा है. कोरोना संक्रमण से देश में रोज़ाना 4 लाख से अधिक केस सामने आ रहे है. वहीं मरने वालों की संख्या भी 4 हजार से अधिक है.
ऐसे में इस वायरस के खिलाफ लड़ने में सबसे बड़ा हथियार वैक्सीन (Covid vaccine) को ही माना जा रहा है. इसके साथ ही कोरोना वायरस संक्रमित मरीज के इलाज में प्लाज्मा थेरेपी (Plasma therapy) को भी बेहद कारगर माना जा रहा है. प्लाज्मा थेरेपी से ही एक इंसान से दूसरे इंसान में एंटीबॉडीज ट्रांसफर की जाती है. ये एंटीबॉडीज (Antibodies) वहीं है जो कोरोना वायरस संक्रमण से पूरी तरह से रिकवर हो चुके मरीजों के खून में मौजूद होती हैं. जो उन्हें बाद में कोरोना के सक्रमण से बचाती है.
एंटीबॉडीज क्या होती है ?
एंटीबॉडी शरीर में ही होती है इनका निर्माण हमारा शरीर खुद ही करता है. ये एंटीबॉडी हमारा इम्यून सिस्टम (Immune system) हमें कई तरह के वायरस से लड़ने के लिए बनाता है. किसी को भी एक बार संक्रमण होने के बाद एंटीबॉडीज बनने में कई बार एक हफ्ते से अधिक का समय लग जाता है. इस मामले में डॉक्टरों की मानें तो कोरोना वायरस से रिकवर हो चुके सभी मरीजों के शरीर में एंटीबॉडीज बन जाए इसका कोई सबूत नहीं है. लेकिन 98 प्रतिशत से अधिक मरीजों के शरीर में कोरोना से एंटीबॉडी विकसित हो जाती है.
अब हालिया कोरोना एंटीबॉडी (Corona Antibody) पर शोध कर रहे शोधकर्ताओं ने हाल ही इटली के आइएसएस राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान के साथ मिलकर कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके 162 लोगों का अध्ययन किया है. इस शोध के मुताबिक कोविड-19 (Covid-19) एंटीबॉडी कम से कम किसी भी इंसान में 8 महीने तक रहती है. इस शोध में सबसे अच्छी बात यह रही कि अस्पताल के अनुसार मरीजों की उम्र,रोग की गंभीरता या अन्य बीमारियों के बावजूद संक्रमितों के शरीर में ये एंटीबॉडी सक्रिय रहती हैं.
इस शोध के लिए शोधकर्ताओं ने मार्च और अप्रैल में और इसके बाद बचे लोगों से नवंबर के अंत में उनके खून के नमूने लेकर उनकी जाँच की थी. इस शोध में इस बात को भी दिखाया गया है कि पॉजिटिव होने के पहले 15 दिनों के अंदर जिन संक्रमितों के भीतर एंटीबॉडी नहीं बनती है, उनमें वायरस के गंभीर होने का खतरा सबसे ज्यादा होता है. इस शोध में दो तिहाई मरीज पुरुष शामिल हुए थे. इस शोध में औसत आयु 63 वर्ष थी और इनमें से लगभग 57 प्रतिशत में पहले से हाई बीपी और डाइबिटीज़ जैसी बीमारियां थी.
कोरोना संक्रमण के खिलाफ शरीर में बनी नेचुरल इम्यूनिटी 6 से 8 महीनों के अंदर ही ख़त्म हो जाती है उसी तरह से अगर वैक्सीन से मिलने वाली इम्यूनिटी भी कुछ महीनों के बाद खत्म हो जाएगी तो लोगों को आने वाले समय में हर साल वैक्सीन लगवाने की जरुरत पड़ेगी.