मृत्यु के उपरांत मृतक का सिर क्यों रखते हैं उत्तर दिशा में, जानिये
हिन्दू धर्म के कुछ ऐसे रीति-रिवाज़ जो हैं वैज्ञानिकता के काफी नज़दीक
हर धर्म की अपनी-अपनी परम्पराएं और कुछ मान्यताएं होती हैं। फ़िर वह चाहें हिन्दू धर्म हो या मुस्लिम, सिक्ख और ईसाई। इन्हीं मान्यताओं और परम्पराओं को केंद्र में रखते हुए अलग-अलग धर्म के लोग अपना जीवनयापन करते हैं। ऐसे में आज हम हिन्दू धर्म से जुड़े कुछ रोचक पहलुओं की चर्चा करते हैं, कि आख़िर उनका क्या है महत्व और उन परम्पराओं या रीति-रिवाजों के पीछे क्या है वैज्ञानिक कारण?
मुंडन संस्कार क्यों?
प्रत्येक बालक-बालिका के लिए जन्म मुंडन संस्कार बताया गया है। यह संस्कार प्रत्येक वर्ग के लिए अलग-अलग ढंग से बताया गया है। एक निश्चित अवधि के बाद मुंडन संस्कार आवश्यक है। जन्म के या गर्भ के बालों को छीलना ही मुंडन संस्कार कहलाता है। वैज्ञानिक परीक्षण के द्वारा यह प्रमाणित हो चुका है कि जन्म या गर्भ के बाल ना छीले जाएं तो युवा होने पर बालक या बालिका का स्वभाव चिड़चिड़ा और अक्खड़ हो सकता है, इसीलिए मुंडन संस्कार का काफी महत्व होता है।
यज्ञोपवीत क्यों?
एक समय था जब हिंदू धर्म में यज्ञोपवीत का काफी महत्व माना जाता था, लेकिन आज के दौर में यज्ञोपवीत का महत्व लगभग समाप्त हो गया है। लोगों ने उसको पहनना ही छोड़ दिया है। भारतीय समाज में लड़कों का यज्ञोपवीत संस्कार होता है।यज्ञोपवीत को कान पर लपेटने से कान सिकुड़ जाता है और नसों पर हल्का सा दबाव पड़ता है। इस दबाव के कारण मल-मूत्र सरलता से निकल जाता है। उसका कुछ भी अंक बाकी नहीं रहता। मल त्याग के उपरांत कुछ बूंदे रुक जाती हैं पर यज्ञोपवीत के दबाव के कारण यह रुकता नहीं। कान के सूक्ष्म नसों का संबंध शरीर के सभी अवयवों से है। इस प्रकार यज्ञोपवीत का यह प्रयोग पूर्णता वैज्ञानिक है।
दक्षिण दिशा वर्जित क्यों मानी जाती है?
कहा गया है कि दक्षिण दिशा की ओर पैर और उत्तर दिशा की ओर सिर रखकर नहीं लेटना चाहिए। पृथ्वी गुरुत्वाकर्षण पर टिकी है और वह अपनी दूरी पर घूम रही। इसकी दूरी के उत्तर-दक्षिण दो छोर हैं। यह चुंबकीय क्षेत्र है। अतएव मनुष्य जब दक्षिण दिशा की ओर पैर करता है तो वह पृथ्वी की दूरी के समानांतर हो जाता है। इस प्रकार दूरी के चुंबकीय प्रभाव से उसका रक्त प्रवाहित होता है। वही वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो सिर दर्द, हाथ पैर की ऐंठन, कमर दर्द, शरीर का कंपन जैसा दोष इसी कारण से आते हैं। इतना ही नहीं दक्षिण दिशा फेफड़ों की गति अत्यंत मंद कर देती है। इस कारण मृत व्यक्ति के पैर दक्षिण दिशा की ओर कर दिया जाता है, ताकि उसके शरीर का रहा-सहा जीवांश भी समाप्त हो जाएं।
दक्षिण दिशा की ओर पैर करके सोना या मुंह करके बैठना शरीर के लिए हानिकारक है। अपने निवास का मुख्य द्वार भी कभी दक्षिण दिशा की ओर नहीं रखना चाहिए। विशेष विशेष रूप से गुरुवार के दिन दक्षिण दिशा हानिकारक होती है।गुरुवार की प्रधानता के कारण उस दिन पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र प्रबल होता है।
गोबर का क्या है महत्व?
हमारे संस्कारों में गाय का बड़ा महत्व है। उसका मल गोबर हमारे संस्कारों में घर- आंगन में लेपन करने के काम आता है। विज्ञान मानता है कि ब्रह्मांड में लगातार उल्कापात हो रहा है। रेडियोधर्मी धूल प्रतिदिन टनो की मात्रा में गिर रही है और बड़ी हानिकारक है। गोबर के परीक्षण से पता चलता है कि उसमें रेडियोधर्मी धूल के अवगुणों को सोखने की अद्भुत क्षमता है। इस कारण गोबर से लिपे-पुते घरों में निवास करने वाले लोग निरोगी होते हैं।
सिंदूर का इस्तेमाल आख़िर क्यों?
विवाहित स्त्रियों को अपनी मांग में सिंदूर भरने का विधान है। फैशन के कारण सिंदूर का चलन कम होता जा रहा। पर वास्तव में लाल सिंदूर का अपना शारीरिक प्रभाव होता है। यह स्त्री की काम-वासना पर नियंत्रण रखता है और उसके स्वभाव में उत्तेजना नहीं आने देता। इसके अलावा स्त्रियों को रक्तचाप की बीमारी से भी बचाता है।
कर्ण छेदन का विधान क्यों?
भारतीय समाज में बालक के दोनों कानों और बालिका के कानों के साथ-साथ नाक का भी छेदन प्रचलित है। एक प्रकार से यह “एक्यूपंक्चर” प्रणाली है। शरीर के विभिन्न स्थानों पर छिद्रकर या सुईया चुभा कर इलाज करने की अत्यंत अच्छी प्रणाली है। यह भी एक प्रकार की चिकित्सा है। कान के छिद्र पुरुषों की कामवासना का उद्दीपन करते हैं। वही नारी के कान के छिद्र मन का उद्दीपन करते हैं और उसके यौवन का विकास करते हैं। नारी में स्थित कामवासना का उबाल रोकने के लिए नाक में छिद्र आवश्यक है। नासिका के छोर पर किया गया छिद्र वासना को नियंत्रित करता है।